फर्जी अस्पतालों पर जुर्माना काफी नहीं,होने चाहिए कडे कानूनी प्रावधान : आंध्र हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 और रूल्स 2003 और टीएस एलोपैथिक मेडिकल केयर एस्टाब्लिशमेंट ( रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन ) एक्ट, 2002 और रूल्स 2007 में कुछ वैधानिक बदलाव की आवश्यकता बताते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि बीमार सज्जा के साथ बिना लाइसेंस के फर्जी अस्पताल चलाने वाले निर्लज लोगों को कडी सजा का प्रावधान होना चाहिए। अभी तक इन कानून के तहत सिर्फ जुर्माने का ही प्रावधान है जोकि आर्थिक प्रकृति का है।
जस्टिस चल्ला कोडांडा राम ने ये भी कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के सेक्शन 5(2) के तहत रजिस्टर्ड प्रैक्टिसनर के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा गर्भपात कराने के लिए सजा का प्रावधान है लेकिन किसी रजिस्टर्ड प्रैक्टिसनर द्वारा MTP एक्ट और नियमों की अवहेलना करने को लेकर कोई प्रावधान नहीं है।
दरअसल कोर्ट एक अस्पताल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें अवैध तरीके से गर्भपात किया गया और उसके बाद अस्पताल को सीज करने का नोटिस जारी किया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि TSAPMC Est एक्ट के सेक्शन 8 (2) के तहत जांच, छानबीन, विश्लेषण या सबूत के लिए किसी उपकरण, कागजात या सामान ही जब्त किया जा सकता है। कोर्ट ने कानूनी प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि अदालत के पास इस मामले में कोई विकल्प नहीं है सिवाय इसके कि ये घोषित किया जाए कि अस्पताल को सीज करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसलिए ऐसे हालात में अथॉरिटी को अस्पताल की सील खोलने के निर्देश दिए जाते हैं।