गोधरा ट्रेन आगजनी के 11 दोषियों की फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील, हाईकोर्ट ने मृतकों के परिजनों को दस लाख का मुआवजा दिया [निर्णय पढ़ें]
गुजरात हाईकोर्ट ने एक बडे फैसले में 2002 के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाने वाले 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। इस वारदात के बाद गुजरात में भडके दंगों में एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।
जस्टिस अनंत एस दवे और जस्टिस जीआर उद्धवानी ने सोमवार को पीडितों के परिजनों को दस दस लाख रुपये मुआवजा देने के आदेश भी दिए हैं। ये राशि राज्य सरकार और रेलवे बराबर बराबर देंगे। 6 हफ्ते के भीतर राज्य सरकार और रेलवे मुआवजे की राशि जमा करेंगे और इसके 6 हफ्ते बाद राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण या जिला विधि सेवा प्राधिकरण परिजनों को मुआवजा देंगे।
हाईकोर्ट ने फैसले में फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने के दो कारण बताए हैं। पहला ये कि इस आगजनी से ट्रेन खचाखच भरी होने की वजह ये ज्यादा मौते हो सकती थीं। जबकि दूसरा ये कि दोषी ये नहीं चाहते थे कि मौते ज्यादा हों इसलिए ट्रेन के एक हिस्से में ही आग लगाई गई जबकि दूसरे हिस्से को लोगों के भागने के लिए छोड दिया गया। कोर्ट मे कहा कि सबूतों को देखते हुए दोषी करार दिया जाना काफी है लेकिन इनके आधार पर मौत की सजा नहीं दी जा सकती। तथ्यों व हालात को देखते हुए वैकल्पिक सजा के तौर पर सश्रम उम्रकैद की सजा दी जाती है।
मुआवजे पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि दोषी गरीब तबके से संबंध रखते हैं और वो सभी 59 लोगों को मुआवजा नहीं दे सकते। सरकार ने 1.5 लाख रुपये मुआवजा देने का नोटिफिकेशन जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि ये मुआवजा अपर्याप्त है और कानून व्यवस्था बनाए रखने में राज्य की नाकामी की वजह से ये घटना हुई। ये मामला एक या दो मौतों का नहीं था बल्कि बडे पैमाने पर मौते हुईं और ऐसे में राज्य की जिम्मेदारी कई गुना बढ जाती है। इसलिए जीने के अधिकार के तहत मृतक और घायल सरकार से मुआवजा पाने के हकदार हैं क्योंकि राज्य से कानून व्यवस्था की उम्मीद की जाती है। इसी तरह रेल मंत्रालय भी जिम्मेदार है क्योंकि यात्रा सुरक्षित तौर पर हो उसे ये सुनिश्चित करना है। इसलिए मुआवजे की राशि का भुगतान दोनों करेंगे।
कोर्ट ने जख्मी लोगों के लिए तीन लाख रुपये मुआवजा तय किया है। ये मुआवजा अक्षमता के आधार पर विचार के बाद बढाया जा सकता है।