मध्यस्थता सिर्फ लंबित मामलों को नहीं घटाती, समाज में शांति और सामंजस्य भी स्थापित करती है : जस्टिस बोबडे
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एस ए बोबडे ने शनिवार को कहा है शासन के लिए भले ही विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के कार्य भले ही अलग हों लेकिन तीनों का उद्देश्य एक ही है। तीनों शाखाओं की उद्देश्य एक मजबूत संगठित भारत और कानून और न्याय के राज्य, समानता, भाईचारा और स्वतंत्रता पर आधारित शासन है।
उन्होंने कहा कि कार्यों के बंटवारे को गलत तरीके से विभाजन समझा जाता है। एेसा नहीं है और झारखंड देश के संविधान का उद्देश्य समझने के लिए सबसे अच्छा राज्य है। दरअसल जस्टिस बोबडे रांची में ज्यूडिशियल अकादमी में मध्यस्थता पर आयोजित समारोह में बोल रहे थे। जस्टिस बोबडे ने कहा कि शनिवार की बैठक इसलिए खास है क्योंकि इसमें सरकार से संबंधित मामलों में मध्यस्थता के सिस्टम पर जोर दिया गया। सब जानते हैं कि सरकार अदालतों में सबसे बडी मुकदमेबाज है। इसकी वजह है कि सरकार के पास धन है और मुकदमे धन के पीछे चलते हैं। जमीन, रोजगार और राजस्व, जिसका नाम लो उसमें सरकार मुकदमेबाज है। किसी कारणवश ये समझा जाता रहा है कि सरकार समझौते के बाहर है और ये सिर्फ प्रक्रिया दो सामान्य पक्षों के बीच विवाद को लेकर हो सकती है। हालांकि ये देखना है कि सरकार अब समझौता प्रक्रिया में हिस्सा लेने को तैयार है।
जस्टिस बोबडे ने कि उन्होंने शायद ही कभी न्यायपालिका की योजना पर किसी राज्य सरकार के एेसी पॉजिटिव प्रतिक्रिया को देखा है। मध्यस्थता विवाद का हल निकालने का काम करती है, ये खुद विवाद नहीं है। मध्यस्थता ना केवल लंबित मामलों को कम करती है बल्कि समाज में शांति और सामंजस्य भी स्थापित करती है। उन्होंने कहा कि अदालती मामले जो कि आमतौर पर दोनों पक्षों द्वारा आखिर तक लडे जाते हैं वो पक्षकारों के परिवार में तनाव और बीमारी बढाते हैं। अगर मुकदमों के प्रभाव पर कोई स्टडी की जाए तो खुलासा होगा कि ये मुकदमेबाजों पर आपदा की तरह प्रभाव डालता है। सरकारी अफसर मध्यस्थता को मंजूरी देकर नागरिकों को बडे स्तर की परेशानियों से निजात दिलाएंगे।
झारखंड हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल ने कहा कि राज्य सरकार को सिर्फ मुकदमों के लिए ही मुकदमें दायर नहीं करने चाहिएं। झारखंड हाईकोर्ट के मध्यस्थता केंद्र की सफलता 70 फीसदी है। ये बैठक इसलिए भी अहम है कि ये राज्य की मुकदमेबाजी की पालिसी लागू करने को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी।
बोंबे हाईकोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि झारखंड हाईकोर्ट के इस कदम को दूसरे राज्यों को भी अपनाना चाहिए। इस मौके पर जस्टिस अपरेश कुमार सिंह, जस्टिस चंद्रशेखर, एडिशनल चीफ सेकेट्री अमित खरे और एडवोकेट जनरल अजीत कुमार ने भी इसमें हिस्सा लिया।