'निजता के अधिकार का उल्लंघन है शादी में शारीरिक संबंध की बाध्यता,' दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा
क्या शादी में शारीरिक संबंध की बाध्यता संबंधी कानून हाल ही में मौलिक अधिकार का दर्जा हासिल करने वाले निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है ? क्या ये अंसवैधानिक है ? दिल्ली हाईकोर्ट अब इसी मामले की सुनवाई करेगा। दिल्ली हाई कोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल ने केंद्र सरकार से आठ दिसंबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है।
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट के कुछ प्रावधान निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
दरअसल हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत प्रावधान है कि पति या पत्नी दोनों में से कोई अगर छोड़कर चला जाता है तो दूसरा अर्जी दाखिल कर अपने वैवाहिक जीवन को बहाल करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस प्रावधान में कोर्ट के आदेश से वैवाहिक जीवन बहाल किया जाता है यानी पति और पत्नी में संबंध बहाल होता है। याचिकाकर्ता की दलील है कि ये निजता के अधिकार का उल्लंघन है क्योंकि किसी को भी सेक्सुअल संबंध के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
वहीं हिंदू मैरिज एक्ट के एक अन्य प्रावधान में कहा गया है कि अगर पति या पत्नी दोनों में से कोई भी सेक्सुअल संबंध बनाने से मना करें तो इसे क्रूरता माना जाएगा और इस आधार पर दूसरा पक्ष तलाक ले सकता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि किसी का भी यह निजी फैसला है कि वह संबंध चाहता है या नहीं।
हाईकोर्ट में संजीव कुमार की ओर से याचिका दाखिल कर कहा गया है कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-9 के तहत वैवाहिक संबंध को बहाल (रेस्टिट्यूशन ऑफ कंजुगल राइट) करने का प्रावधान है। लेकिन ये प्रावधान निजता के अधिकार का उल्लंघन है क्योंकि किसी भी महिला का ये निजी फैसला है कि वह पति से शारीरिक संबंध बनाना चाहती हैं या नहीं। याचिका में कहा गया है कि ये महिला के निजता के अधिकार के साथ-साथ उसकी गरिमा और शारीरिक पवित्रता व पूर्णता के अधिकार को प्रभावित करता है। इस अधिकार में राज्य दखल नहीं दे सकता। महिला की सहमति और उसकी इच्छा पर निर्भर है कि वो संबंध के लिए हां करे या ना करे । हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पति या पत्नी को ये अधिकार होता है कि अगर एक ने वैवाहिक संबंध तोड़ा हुआ है तो दूसरा उसे बहाल करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। अदालत संतुष्ट होने पर वैवाहिक जीवन (जिसमें शारीरिक संबंध भी शामिल है) को बहाल करने के आदेश पारित कर सकता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि महिला या पुरुष का इसके लिए सहमति देना या न देना निजता के अधिकार के दायरे में आ गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है निजता के अधिकार के दायरे में स्वायत्त जीवन, परिवार, शादी और सेक्सुअल ओरिंएंटेशन है। ऐसे में राज्य पति या पत्नी को इस बात के लिए बाध्य नहीं कर सकता कि दोनों संबंध में साथ रहें और सहमति नहीं भी हो तो भी वह पार्टनर से संबंध बनाए।
अर्जी में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने कहा है कि निजता मौलिक अधिकार है और ये अधिकार लोगों के आंतरिक दायरे को संरक्षित करता है। राज्य इसमें दखल नहीं दे सकता। व्यक्ति को इस बात की छूट है कि वह मर्जी की जिंदगी जी सके।
ये भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का 2014 का एक फैसला है कि अगर कोई एक पार्टनर दूसरे को संबंध बनाने से मना करे तो दूसरा क्रूरता के आधार पर तलाक ले सकता है क्योंकि सेक्सुअल संबंध से मना करना क्रूरता माना गया है और ये तलाक का आधार भी है। याचिका में कहा गया है कि इस व्यवस्था को भी असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि ये भी निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। क्योंकि शारीरिक संबंध के लिए हां या ना करना निहायत निजी मामला है और इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।