सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया जाना लाल बत्ती की तरह इसे खत्म किया जाना चाहिएः गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट्स असोसिएशन ने ,सुप्रीम कोर्ट में दी दलील

Update: 2017-08-31 11:02 GMT

सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट्स असोसिएसन ने कहा कि इस तरह सीनियर का दर्जा दिया जाना लाल बत्ती की तरह है इस सिस्टम को खत्म किया जाना चाहिए।

गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट असोसिएसन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि इस तरह से एडवोकेट को सीनियर का दर्जा दिया जाना एक प्रिविलेज की तरह है और यह संविधान के अनुच्छेद के खिलाफ है। केंद्र सरकार ने कारों से लाल बत्ती हटाने का निर्देश दिया है। हाइ डिगनिटरी को मिलने वाली लाल बत्ती कल्चर को खत्म कर दिया गया है। फ्रीडम ऑफ मूवमेंट और समाज में एकरूपता लाने के लिए ऐसा किया गया है।


सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिए जाने के चलन को खत्म किया जाना चाहिए क्योंकि इसके चुनाव में कई बार मनमाना रवैया होता है। ये सब कुछ पसंद और नापसंदी पर निर्भर करता है और कोई आधार तय नहीं है बल्कि पसंदी और ना पसंदी आधार है। ये संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इसके लिए जो उद्देश्य बनाया गया है वह साफ नहीं है। इस तरह सीनियर का दर्जा दिए जाने से उनकी फीस ही बढ़ती है और वह गरीब और मीडिल क्लास के पहुंच से बाहर होते हैं। न्याय में देरी होती है और सरकार का पैसा खर्च होता है। इनमें ज्यादातर में कोई सिद्धांत नहीं है बल्कि पैसा बनाने की होड़ रहती है।

संविधान के अनुच्छेद-18 के आंकलन से साफ है कि वकीलों में दो बर्ग किया जाना उचित नहीं है। सीनियर दर्जा मिलने के बाद कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीनियर पद का इस्तेमाल होता है साथ ही विजिटिंग कार्ड से लेकर हर जगह इसका जिक्र होता है। इस तरह वकील दो वर्ग में विभाजित हो जाते हैं। एक फर्स्ट क्लास एडवोकेट एक सेकंड यानी जनरल क्लास एडवोकेट। इस तरह ये संविधान के अनुच्छेद-14,18,19,21 व 39 ए का उल्लंघन है। इस मामले में इंदिराजयसिंह ने अर्जी दाखिल कर सीनियर दर्जा दिए जाने को चुनौती दी थी और उसे खत्म करने की गुहार लगाई थी। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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