हदिया केस की जांच से जुडे दस्तावेज NIA को सौंपे केरल पुलिस: सुप्रीम कोर्ट - जानना चाहते हैं कि ये अलग केस है या फिर इसके पीछे बडा कारण
सुप्रीम कोर्ट ने केरल पुलिस को हदिया केस से जुडे दस्तावेज और जानकारी नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (NIA ) से साझा करने के निर्देश दिए हैं ताकि एजेंसी ये छानबीन कर सके कि हदिया केस एक अलग केस है या ये इसके पीछे कोई बडी साजिश है।
NIA की अर्जी पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस जे एस खेहर और जस्टिस चंद्रचूड की बेंच ने कहा कि इस मामले की फाइलें व जांच से जुडी जानकारी NIA को दी जाए और पुलिस NIA का पूरा सहयोग करे।
याचिकाकर्ता के विरोध करने पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आप इस गंभीर मामले में NIA को दस्तावेज भी देखने का विरोध कर रहे हैं। क्या आप नहीं चाहते कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो ? आपको क्या NIA पर भरोसा नही क्या आप NIA को बाहरी एजेंसी मानते हैं? हर सिक्के के दो पहलू होते हैं और एक पहलू से दूसरा दिखाई नहीं देता। कोर्ट को दोनों पहलू देखकर ही फैसला करना है। वैसे भी कोर्ट ने NIA को जांच के आदेश नहीं दिए बल्कि सिर्फ केस की फाइलें वैरिफाई करने को कहा है। हम ये देखना चाहते हैं कि ये एक अलग केस है या बडा मुद्दा शामिल है।
दरअसल गुरुवार को NIA की ओर से ASG मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस मामले की जांच केरल पुलिस कर रही है और उसके पास हदिया केस से संबंधी दस्तावेज नहीं हैं। वैसे इस मामले में एजेंसी NIA एक्ट 2008 के तहत जांच शुरु कर सकती है। अगर कोर्ट एजेंसी को मामले की जांच करने के आदेश जारी करे तो वो छानबीन करने को तैयार है।
अपनी अर्जी में एजेंसी की ओर से कहा गया कि केरल हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच केरल पुलिस को सौंपी थी। हाईकोर्ट ने NIA को जांच के लिए नहीं कहा था। याचिका के मुताबिक केरल पुलिस ने इस संबंध में अपराध संख्या 21/2016 में 57 केरल पुलिस एक्ट के अलावा IPC की धारा 153 A, 295A और 107 के तहत मामला दर्ज किया है और जांच संबंधी कई स्टेटस रिपोर्ट हाईकोर्ट में दाखिल की हैं। NIA इस मामले की जांच कानून के मुताबिक कर सकता है लेकिन इसके लिए कोर्ट के आदेश जारी करने होंगे। वैसे भी NIA हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश से केसों की जांच करता है।
ये मामला हदिया के हिंदू से मुस्लिम धर्म में परिवर्तन कर मुस्लिम युवक से निकाह का मामला है। इसी साल 25 मई को केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस निकाह को शून्य करार दे दिया था और युवती को उसके हिंदू अभिभावकों की अभिरक्षा में देने का आदेश दिया था। इस दौरा जस्टिस सुरेंद्र मोहन और जस्टिस अब्राहम मैथ्यू ने विवादित टिप्पणी करते हुए कहा था कि 24 साल की युवती कमजोर और जल्द चपेट में आने वाली होती है और उसका कई तरीके से शोषण किया जा सकता है। चूंकि शादी उसके जीवन का सबसे अहम फैसला होता है इसलिए वो सिर्फ अभिभावकों की सक्रिय संलिप्ता से ही लिया जा सकता है।
वहीं हदिया के पति ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि हाईकोर्ट ने बिना किसी कानूनी आधार के निकाह को शून्य करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि ये फैसला आजाद देश की महिलाओं का असम्मान करता है क्योंकि इसने महिलाओं को अपने बारे में सोचविचार करने के अधिकार का छीन लिया है और उन्हें कमजोर व खुद के बारे में सोचविचार करने में असमर्थ घोषित कर दिया है। ये आदेश महिलाओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार और NIA को इस मामले से जुडे दस्तावेज दाखिल करने को कहा था और हदिया के पिता अशोकन से ये सबूत देने को कहा था कि कट्टरता फैलाने के बाद उसका धर्म परिवर्तन किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई 16 अगस्त को करेगा।