कंटेप्ट ऑफ कोर्ट में सजा काट रहे रिटायर जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की

Update: 2017-07-09 13:37 GMT


कंटेप्ट ऑफ कोर्ट में छह महीने की सजा काट रहे कोलकाता हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस सीएस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल की है। कोलकाता के प्रेसिडेंसी जेल में बंद कर्णन ने 9 मई और 4 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के सामने रिव्यू पिटिशन दाखिल की है।

याचिका में कर्णनकी ओर से लगाए गए आरोपों को जस्टिफाई करने की कोशिश की गई है। याचिका में कहा गया है कि जज और कोर्ट में फर्क है। जो भी आरोप जजों पर लगाए गए हैं वह आरोप व्यक्तिगत कैपिसिटी में आरोप हैं और ऐसे आरोपों में मानहानि का रास्ता दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि जो भी आरोप लगाए गए हैंं उसकी छानबीन होनी चाहिए और उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई से पहले छानबीन की जरूरत है। बिना छानबीन के ये संभव नहीं है कि ये कहा जाए कि आरोप फर्जी और निराधार है। इस बाबत पहले से निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।

याचिका में कहा गया है कि जो आरोप लगाए गए हैं वह आरोप लगाने वाला संवैधानिक पद पर बैठा हुआ है और जिनके खिलाफ आरोप लगाए गए थे वह भी संवैधानिक पद पर हीं हैं। याचिकाकर्ता कर्नन ने कहा है कि इस मामले में उनके खिलाफ जो भी कार्रवाई की गई है वह कार्रवाई पूर्वाग्रह से ग्रसित है और ये न्यायिक संस्थान को कमजोर करता है। ऐसा करने से करप्ट प्रैक्टिस करने वाले को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि ये लगने लगेगा कि उनकी कोई आलोचना कर ही नहीं सकता। पूर्व जस्टिस कर्नन ने याचिका में ंये भी कहा कि इस मामले में उन पर कार्रवाई के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह गलत थी। सुप्रीम कोर्ट के पास एडमिनिस्ट्रेटव और न्यायिक तौर पर हाई कोर्ट के ऊपर जूरिडिक्शन नहीं बनता। हाई कोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट का सुपरविजन नहीं है। ऐसे में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जिस प्रक्रार से दखल दी है वह बिना जूरि़डिक्शन का है। याचिकाकर्ता का केस व्यक्तिगत नहीं है इस मामले में उन्हें बिना चार्जशीट के दोषी करार दिया गया है जो जजमेंट पास किया गया है उसमें पर्याप्त कारण नहीं बताए गए हैं। ये चिंता का विषय है कि राइट टू स्पीच एंड एक्सप्रेशन और ट्रांसपैरेंसी दाव पर लगा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश पारित किया है वह बिना जूरिडिक्शन का है और उसे गैर संवैधानिक घोषित किया जाए।

याचिका में कर्णन ने कहा है कि दुनिया के किसी भी देश में ऐसा उदाहरण नहीं है कि संस्था के गरिमा के नाम पर जैसा अन्याय याचिकाकर्ता के साथ हुआ है वैसा हुआ हो। बतौर जज और नागरिक उनके मन में एक ही धारणा व सपना है कि जूडिशियरी स्वतंत्र और निष्पक्ष हो और लोगों के प्रति जवाबदेही से काम करे।

गौरतलब है कि 20 जून को वेस्ट बंगाल पुलिस ने पूर्व जस्टिस कर्णन को कोयंबटूर से गिरफ्तार किया था। उन्हें 9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कंटेप्ट ऑफ कोर्ट में दोषी करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जस्टिस कर्णन ने जो एक्ट किया है वह बेहद गंभीर है और ये मामला कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का बनता है और ऐसे में उन्हें कंटेप्ट ऑफ कोर्ट में दोषी करार दिया जाता है और उन्हें छह महीने कैद की सजा सुनाई जाती है। चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले में फैसला दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जस्टिस कर्नन कोई एडमिनिस्ट्रेटिव और जूडिशियल काम नहीं करेंगे।

हाल में सुप्रीम कोर्ट ने डिटेल जजमेंट दिया है और एकमत से सातों जजों ने इस मामले को कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का सबसे गंभीर मामला माना है। इस मामले में जस्टिस जे. चेलामेश्वर और जस्टिस रंजन गोगोई ने अलग से लिखे जजमेंट में ये भी कहा कि जो समस्या सामने आई है उससे उनका ओपिनियन ये है कि संवैधानिक कोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति के मामले में जो सेलेक्शन प्रक्रिया है उसे दोबारा देखा जाना चाहिए। साथ ही ऐसे मामले को डील करने के लिए महाअभियोग के अलावा कोई कानूनी उपचार पर विचार होना चाहिए।




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