जमानत अर्जी हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद मैजिस्ट्रेट ने दी जमानत, हाई कोर्ट ने लगाई फटकार
हिमाचल हाई कोर्ट ने निचली अदालत के मैजिस्ट्रेट को इस बात को लेकर फटकार लगाई कि हाई कोर्ट से जमानत अर्जी खारिज होने के 4 दिन बाद ही मैजिस्ट्रेट की कोर्ट ने जमानत दे दी। हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के लिए यह जरूरी है कि वह ऊपरी अदालत के फैसले को वफादारी से स्वीकार करे।
हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी को जमानत देते समय हाईकोर्ट के आदेश का हवाला भी नहीं दिया गया। ऐसा करके मैजिस्ट्रेट ने न्यायिक अनुचित व अनुशासनहीनता का काम किया है।
न्यायमूर्ति त्रिलोक सिंह चैहान ने कहा कि न्यायिक अनुशासन के तहत शिष्टाचार का पालन किया जाना जरूरी है,जिसके तहत अपीलीय कोर्ट के निर्देश का वर्गीकृत प्रणाली में पालन किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि हर निचली कोर्ट के लिए यह जरूरी है कि वह हाईयर कोर्ट के फैसले को वफादारी से स्वीकार करे। न्यायिक सिस्टम तभी काम कर सकता है,जब किसी को अंतिम शब्द बोलने की अनुमति दी जाए और अगर यह अंतिम शब्द एक बार बोल दिया जाए तो उसे वफादारी से स्वीकार किया जाए।
इस मामले में हाईकोर्ट ने उस आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया था जो बड़े स्तर पर फर्जी डिग्री,डिप्लोमा व अन्य सर्टिफिकेट जारी करने के रैकेट में शामिल था। जबकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं था। इस तरह वे लोग निर्दोष छात्रों की कड़ी मेहनत की कमाई को लूट रहे थे।
हाईकोर्ट द्वारा इस आरोपी की जमानत खारिज करने के चार दिन बाद मैजिस्टेªट कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में मैजिस्टेªट ने जो स्पष्टीकरण दिया है,वह संतोषजनक नहीं है।