दहेज हत्या में प्रताड़ना जरूरी नहीं कि कुछ घंटे पहले और कुछ मिनट पहले ही दिया गया होः दिल्ली हाई कोर्ट

Update: 2017-06-14 07:38 GMT

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर मौत से पहले उचित अवधि के अंदर प्रताड़ना दी गई है और उसका मौत से संबंध है तो दहेज हत्या का मामला बनता है। ये जरूरी नहीं है कि प्रताड़ना कुछ घंटे पहले या कुछ मिनट पहले ही दिया गया हो। अगर मौत से पहले उचित अवधि के भीतर प्रताड़ना दिया गया हो तो वह दहेज हत्या का मामला बनता है। हाई कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में सजा पाए एक आरोपी को पिछले दिनों इस आधार पर राहत देने से इंकार कर दिया कि घटना से पहले कोई प्रताड़ना नहीं दी गई थी।

जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा कि आईपीसी की धारा 304बी के तहत ऐसा जरूरी नहीं है कि घटना या मौत से कुछ मिनट,घंटे या कुछ दिन पहले प्रताड़ना दी गई हो,बल्कि मौत से पहले की एक उचित समय अवधि होनी चाहिए,जिसमें पीड़िता को प्रताड़ित किया गया हो। इस मामले में पीड़िता की मौत से दो दिन पहले उसके भाई से दहेज की मांग की गई थी।

कोर्ट इस मामले में अशोक नामक याचिकाकर्ता की तरफ से दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले में आरोपी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (दहेज के लिए प्रताड़ित करना) व धारा 304बी(दहेज हत्या) के तहत दी गई अपनी सजा को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि धारा 304बी के तहत केस साबित करने के लिए कुछ आधारभूत तथ्य होने चाहिए,जो इस प्रकार है,1-महिला की मौत सामान्य परिस्थितियों में न हुई हो,2-यह मौत शादी के सात साल के अंदर हुई हो,3-मौत से पहले महिला को उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किया गया हो,4-यह प्रताड़ना दहेज की मांग से संबंधित होनी चाहिए।

पहली दो शर्तो से संतुष्ट होते हुए कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने पांच हजार रूपए,कलर टीवी व कपड़े आदि की मांग घटना से दो दिन पहले पीड़िता के भाई से की थी। वहीं मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई गवाहों के बयान दर्ज किए,जिससे यह साबित हो गया कि पीड़िता को उसका पति,सास,ससुर व देवर प्रताड़ित करते थे। इसलिए निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है और आरोपी को दी गई सात साल की सजा उचित है।


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