मृतक का अगर वसीयत नहीं तो वंशजों को ही माना जाएगा विधिक वारिसः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर किसी मामले में कोई व्यक्ति बिना वसीयत किए मर जाता है तो वंशजों को ही विधिक वारिस का दर्जा दिया जा सकता है,न कि किसी मनोनीत व्यक्ति को। न्यायमूर्ति वी मेहता ने उक्त टिप्पणी की है। निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी की है। इस अपील में निचली अदालत के 18 जनवरी 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने अपीलकर्ता की उस मांग को खारिज कर दिया था,जिसमें उसने वंशज(सक्सेशन) सर्टिफिकेट को निरसन करने की मांग की गई थी।
इस मामले में मृतका कमला देवी की बेटी सोनिया यादव व पति भीम सिंह को सक्सेशन सर्टिफिकेट जारी किए गए थे। कमला की मौत पिछले साल 25 अप्रैल को हो गई थी। अपीलकर्ता रामपाली मृतका की बहन है। इसी आधार पर उसने अपनी बहन की बेटी व पति को दिए गए सक्सेशन सर्टिफिकेट को निरसन करने की मांग की थी। रामपाली की दलील दी थी कि सोनिया व भीम सिंह पिछले 35 साल से उसकी बहन के साथ नहीं रहते थे। दूसरा सरकारी रिकार्ड में कमला देवी ने रामपाली को मनोनीत किया था।
परंतु निचली अदालत ने रामपाली की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि हिंदू सक्सेशन एक्ट की धारा 15(1) (ए) के तहत सोनिया यादव व भीम सिंह मृतका कमला देवी के विधिक वारिस है। वहीं कानून के अनुसार नोमिनेशन कोई वसीयत नहीं है और न ही इस तरह नोमिनेशन करने से मनोनीत व्यक्ति संपत्ति का मालिक बन जाता है।
न्यायमूर्ति मेहता ने निचली अदालत के आदेश से सहमत होते हुए कहा कि कानून के अनुसार नोमिनेशन कोई वसीयत नहीं है। यह बात पहले ही श्रीमती सरबती देवी एंड अन्य बनाम श्रीमती उषा देवी एआईआर 1984 एससी 346 के मामले में सुप्रीम कोर्ट कह चुकी है।
श्रामपाली की अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि सचमुच ही यह एक मुश्किल केस है। चूंकि इस मामले में सक्सेशन सर्टिफिकेट मृतका कमला देवी की संपत्ति से जुड़ा हुआ है। वही यह सर्टिफिकेट उन लोगों को मिला है,जिनसे मृतका 35 साल से अलग रहती थी। परंतु कानूनी तौर पर यह सत्यापित है कि नोमिनेशन कोई वसीयत नहीं है। वहीं कमला देवी ने अपीलकर्ता रामपाली के पक्ष में मरने से पहले कोई वसीयत नहीं बनाई थी। जबकि रामपाली मृतका की सगी बहन थी। ऐसे में हिंदू सक्सेशन एक्ट के तहत विधिक वारिसों को ही संपत्ति का हक मिल सकता है। इसलिए इस कोर्ट के पास कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में अपीलकर्ता रामपाली की अपील को खारिज किया जा रहा है।