बैंक कर्मचारी को 'धोखाधड़ी' के रूप में वर्गीकृत करने संबंधी आंचलिक कार्यालय समिति की रिपोर्ट अपराधी को अवश्य दी जानी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
9 July 2025 11:04 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि धोखाधड़ी के वर्गीकरण हेतु आंचलिक कार्यालय समिति की रिपोर्ट अपराधी कर्मचारी को अवश्य दी जानी चाहिए ताकि वह उसे चुनौती दे सके।
यह भी कहा कि यदि RBI के मास्टर निर्देश में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है तो अपराधी कर्मचारी को "धोखाधड़ी" करने वाला घोषित करने वाला आदेश लागू रह सकता है और वह धोखाधड़ी के वर्गीकरण हेतु आंचलिक कार्यालय समिति की रिपोर्ट के विरुद्ध उचित कानूनी उपाय अपना सकता है।
धोखाधड़ी के वर्गीकरण हेतु आंचलिक कार्यालय समिति ऐसा संगठन है, जिसके आंचलिक कार्यालय में एक बैंक या वित्तीय संस्थान होता है, जो अपने अधिकार क्षेत्र में धोखाधड़ी गतिविधियों का आकलन और वर्गीकरण करता है। व्यक्तियों और/या संस्थाओं को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने संबंधी RBI के मास्टर निर्देश में दीवानी और आपराधिक दोनों तरह के परिणाम शामिल हैं।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा,
“न्यायालय का यह सुविचारित मत है कि ZOCCF की उक्त रिपोर्ट याचिकाकर्ता को दी जानी चाहिए थी ताकि याचिकाकर्ता उक्त रिपोर्ट के विरुद्ध कानूनी उपाय अपना सके। न्यायालय का यह भी मत है कि यदि ZOCCF ने कोई निर्णय लिया और कोई सिफ़ारिश की है। उसे आक्षेपित आदेश द्वारा सूचित किया गया तो मास्टर निर्देश में निर्धारित सभी प्रक्रियाओं का पर्याप्त रूप से पालन किया गया।”
बैंक ऑफ बड़ौदा में शाखा प्रमुख रहते हुए उनके विरुद्ध की गई शिकायतों के कारण याचिकाकर्ता को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया गया। हाईकोर्ट ने निलंबन रद्द कर दिया और उनके विरुद्ध आगे कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गई।
इसके बाद प्रतिवादी बैंक ने दिनांक 15.07.2024 को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों सहित वाणिज्यिक बैंकों में धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन पर RBI के मास्टर निर्देश के अनुसार याचिकाकर्ता को "धोखेबाज़" के रूप में वर्गीकृत करने की कार्यवाही शुरू की। कुछ संदिग्ध गतिविधियों को उजागर करते हुए याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। याचिकाकर्ता ने अपना जवाब दाखिल किया और मामला धोखाधड़ी के वर्गीकरण हेतु क्षेत्रीय कार्यालय समिति को भेज दिया गया।
समिति ने याचिकाकर्ता को "धोखेबाज़" घोषित करने के लिए अपनी सिफ़ारिश प्रस्तुत की। इन सिफ़ारिशों के आधार पर याचिकाकर्ता को "धोखेबाज़" घोषित करते हुए इस आधार पर आदेश पारित किया गया कि उसने शाखा प्रबंधक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान धोखाधड़ी, जालसाज़ी और धन का दुरुपयोग किया था।
याचिकाकर्ता ने उक्त आदेश के विरुद्ध इस आधार पर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि आदेश पारित करने से पहले धोखाधड़ी के वर्गीकरण के लिए क्षेत्रीय कार्यालय समिति की रिपोर्ट की एक प्रति उसे उपलब्ध नहीं कराई गई ताकि वह अपना बचाव कर सके। यह तर्क दिया गया कि मास्टर निर्देशों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
चूंकि न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को रिपोर्ट की कॉपी देने के अलावा, धोखाधड़ी पर मास्टर निर्देश में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सभी प्रक्रियाएं की गईं, इसलिए उसने याचिकाकर्ता को "धोखेबाज़" घोषित करने वाला आदेश रद्द नहीं किया।
न्यायालय ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता और अन्य के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 61(2) और 318 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) सहपठित धारा 13(1)(क) के तहत दर्ज की गई FIR केवल धोखाधड़ी के वर्गीकरण हेतु क्षेत्रीय कार्यालय समिति की रिपोर्ट पर आधारित नहीं है। इसमें कहा गया कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो स्वतंत्र जांच (CBI) करने के लिए बाध्य है।
तदनुसार, रिट याचिका का निपटारा इस निर्देश के साथ किया गया कि धोखाधड़ी के वर्गीकरण हेतु क्षेत्रीय कार्यालय समिति की रिपोर्ट की कॉपी याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराई जाए ताकि वह उचित कानूनी उपाय अपना सके।
Case Title: Rohit Dahiya v. Union Of India And 3 Others [WRIT - A No. - 8536 of 2025]

