रिट याचिका प्रतिवादियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो तो उसे मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के अंतर्गत अपील में परिवर्तित किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
6 Sept 2025 7:00 PM IST

जस्टिस मनीष कुमार निगम की इलाहाबाद हाईकोर्ट की पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 (COI) के अंतर्गत रिट याचिका को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम (ACA) की धारा 37 के अंतर्गत अपील में परिवर्तित करने की अनुमति दी। पीठ ने यह भी कहा कि जहां किसी विशेष प्रकार की कार्यवाही स्वीकार्य नहीं है। उसके संबंध में न्यायालय के समक्ष अलग प्रकार की कार्यवाही लंबित है, वहां न्यायालय को सीमा अवधि और कोर्ट फीस से संबंधित कानून के अधीन रिट याचिका को अन्य रिट याचिका में परिवर्तित करने का अधिकार है।
तथ्य
यह याचिका जिला जज आगरा द्वारा पारित दिनांक 25.03.2010 के आदेश को चुनौती देने के लिए दायर की गई, जिसमें एकमात्र मध्यस्थ द्वारा दिए गए दिनांक 27.05.2002 के निर्णय को रद्द करने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा धारा 34, ACA के अंतर्गत दायर आपत्तियों को खारिज कर दिया गया। प्रारंभ में, यह याचिका अनुच्छेद 226, COI के अंतर्गत दायर की गई। बाद में याचिकाकर्ता के वकील ने वर्तमान याचिका को धारा 227, COI के अंतर्गत याचिका में परिवर्तित करने के लिए संशोधन आवेदन दायर किया। न्यायालय ने दिनांक 21.07.2022 के आदेश द्वारा उक्त आवेदन स्वीकार की और याचिका को धारा 227, COI के अंतर्गत याचिका में परिवर्तित कर दिया।
मामले पर विचार किया गया तो प्रतिवादियों के वकील ने आपत्ति उठाई कि धारा 34, ACA के तहत पारित आदेश, जिसमें मध्यस्थता निर्णय के विरुद्ध दायर आपत्तियों को अस्वीकार या स्वीकार किया गया, उसके विरुद्ध धारा 37, ACA के अंतर्गत अपील की जा सकती है। इसलिए वर्तमान याचिका पर धारा 227, COI के अंतर्गत विचार नहीं किया जा सकता।
तर्क
प्रतिवादियों के वकील ने उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर भरोसा किया। आवास विकास परिषद बनाम मेसर्स यूनिवर्सल कॉन्ट्रैक्टर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड का निर्णय 03.10.2024 को हुआ, जिसमें न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया कि आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली धारा 227, COI के अंतर्गत दायर याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता। यह भी तर्क दिया गया कि चूंकि याचिकाकर्ता के पास धारा 37, ACA के अंतर्गत वैधानिक वैकल्पिक उपाय मौजूद है, इसलिए वर्तमान याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि सही उपाय धारा 37, ACA के अंतर्गत अपील दायर करना है। चूंकि याचिका पर न्यायालय पहले ही विचार कर चुका है, इसलिए उन्होंने अनुरोध किया कि उन्हें वर्तमान याचिका को धारा 37, ACA के अंतर्गत दायर अपील में परिवर्तित करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि अपील पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र भी हाईकोर्ट के पास है।
प्रतिवादियों के वकील ने आगे तर्क दिया कि ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती और याचिकाकर्ता के लिए उचित यही होगा कि वह वर्तमान याचिका वापस ले ले और एक अपील दायर करे, जिसमें वह परिसीमा अधिनियम की धारा 14 के साथ धारा 5 के अंतर्गत अपील दायर करने में हुई देरी के लिए क्षमा की मांग कर सके।
टिप्पणियां
न्यायालय ने कैलाश चंद्र बनाम राम नरेश गुप्ता मामले में अपने पिछले फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि अनुच्छेद 226/227 के तहत पुनर्विचार याचिका को रिट याचिका में परिवर्तित करना अनुमन्य है।
चर्चा किए गए केस कानूनों के मद्देनजर, न्यायालय ने कहा कि जहां एक विशेष प्रकार की कार्यवाही स्वीकार्य नहीं है। उसके संबंध में एक अलग प्रकार की कार्यवाही चल रही है, वहां परिवर्तन में कोई बाधा नहीं है। ऐसी स्थिति में न्यायालय को परिसीमा और कोर्ट फीस से संबंधित कानून के अधीन याचिका को दूसरी याचिका में परिवर्तित करने का अधिकार है। तदनुसार, न्यायालय ने अनुच्छेद 227 के तहत वर्तमान याचिका को धारा 37, ACA के तहत अपील में परिवर्तित कर दिया।
Case Title – Union of India v Bhular Construction Company & Others

