महिला और उसके वकील द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुरक्षा के लिए रिट दायर करने से इनकार करने के बाद जांच के आदेश, तलाक के मामले में पति द्वारा गड़बड़ी का आरोप

Shahadat

23 May 2025 10:33 AM IST

  • महिला और उसके वकील द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुरक्षा के लिए रिट दायर करने से इनकार करने के बाद जांच के आदेश, तलाक के मामले में पति द्वारा गड़बड़ी का आरोप

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में ऐसे मामले में जांच के निर्देश दिए, जिसमें याचिकाकर्ता नंबर 1 महिला ने रिट याचिका दायर करने से इनकार किया और संदेह जताया कि उसके पति ने तलाक की कार्यवाही में मदद के लिए किसी और से उसकी शादी का आरोप लगाते हुए रिट याचिका दायर की होगी।

    चूंकि याचिका में याचिकाकर्ता के वकील के रूप में जिस वकील का नाम उल्लेखित किया गया, उसने भी उक्त रिट याचिका दायर करने से इनकार कर दिया। इसलिए जस्टिस विनोद दिवाकर ने प्रयागराज के पुलिस आयुक्त को प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ताओं ने कथित तौर पर एक मंदिर में शादी की थी और वे पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे थे। पत्नी ने अपने ही परिवार से खतरा महसूस करते हुए सुरक्षा के लिए आजमगढ़ के पुलिस अधीक्षक के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। यह भी कहा गया कि पति काम के कारण दिल्ली में रहता है। चूंकि उन्हें कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की गई, इसलिए याचिकाकर्ताओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    न्यायालय की कार्यवाही के दौरान याचिकाकर्ता नंबर 1 की पत्नी अपने भाई के साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुई तथा बताया कि याचिका उसके द्वारा या उसके कहने पर नहीं बल्कि उसकी सहमति या जानकारी के बिना किसी छद्म व्यक्ति द्वारा दायर की गई। उसने यह भी कहा कि वह याचिकाकर्ता नंबर 2 के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से विवाहित है तथा उससे उसके दो बच्चे हैं। यह भी कहा गया कि वैवाहिक कलह के कारण वह अपने पिता प्रतिवादी नंबर 4 के साथ रह रही थी।

    इसके आधार पर न्यायालय ने रजिस्ट्रार को जांच का आदेश दिया, जिन्होंने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया। जांच में पाया गया कि याचिका रानी पांडेय, पुत्री उदय भान पांडेय, निवासी महुई फतेहपुर, फतेहपुर मंडाव, जिला मऊ द्वारा दायर नहीं की गई तथा वकील ने भी कहा कि उसने याचिका दायर नहीं की तथा दावा किया कि किसी ने उसका छद्म नाम लिया है। प्रथम दृष्टया शपथ आयुक्त को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाह पाया गया।

    न्यायालय ने पाया कि पुलिस रिपोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से उसके विवाह और बच्चों के बारे में किए गए दावे की पुष्टि की।

    वकील द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया,

    "उन्हें इस याचिका के बारे में तब तक कोई जानकारी नहीं थी, जब तक कि उन्हें अपने जूनियर के माध्यम से इस न्यायालय से नोटिस प्राप्त नहीं हुआ। उन्होंने वकालतनामा पर हस्ताक्षर करने या याचिका दायर करने से स्पष्ट रूप से इनकार किया और कहा कि उनके हस्ताक्षर जाली थे। एडवोकेट लल्लन चौबे ने जांच अधिकारी के समक्ष अपने बयान में स्वीकार किया कि वह मोबाइल नंबर के क्लाइंट हैं और याचिका में उल्लिखित वकील रोल नंबर के धारक हैं।"

    पत्नी के वास्तविक पति ने न्यायालय के समक्ष हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि पत्नी रानी पांडे का याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ विवाहेतर संबंध था, जो उनका पड़ोसी था। उसने पति को झूठी शिकायत की धमकी भी दी थी, जब पति के पिता ने सुलह करने की कोशिश की थी। याचिकाकर्ता नंबर 2, कथित पति ने भी रिट याचिका दायर करने से इनकार किया। न्यायालय ने पाया कि प्रथम दृष्टया न्यायालय के साथ धोखाधड़ी की गई तथा कार्यवाही से न्यायालय ने माना कि यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया, जो न्यायालय की प्रक्रियाओं को अच्छी तरह से जानता है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि याचिका दायर करने के 5 चरण होते हैं, जिनमें याचिकाकर्ता के लिए AOR (एडवोकेट ऑन रोल) द्वारा एसएमएस प्राप्त किया जाता है; पहला फोटो पहचान के समय, फिर जब फाइलिंग नंबर आवंटित किया जाता है, दोषों के चरण में (यदि कोई हो), दोषों को दूर करने के चरण में तथा न्यायालय के समक्ष मामले को सूचीबद्ध करने के चरण में।

    इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील को भी मामले की सूचना मिली होगी, इस पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा,

    “इस मामले की निष्पक्ष और गहन जांच की आवश्यकता है, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि अपराधियों ने न्यायालय के साथ धोखाधड़ी करने का प्रयास किया है। यदि षड्यंत्रकारी अपने मंसूबे में सफल हो जाते हैं तो यह न केवल न्याय का उपहास होगा और आपराधिक न्याय प्रणाली पर एक दाग होगा, बल्कि कानून के शासन में जनता के विश्वास को भी गंभीर रूप से कमजोर करेगा और न्यायिक संस्थानों की अखंडता को भी नष्ट करेगा। इस तरह का परिणाम न्याय वितरण प्रणाली के मूल पर प्रहार करता है। इसे अत्यंत सतर्कता और दृढ़ संकल्प के साथ रोका जाना चाहिए।”

    रिट याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने प्रयागराज के पुलिस आयुक्त को प्रारंभिक जांच करने और संज्ञेय अपराध पाए जाने पर FIR दर्ज करने का निर्देश दिया। साथ ही यह भी निर्देश दिया गया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रयागराज को तिमाही प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए और जांच शीघ्रता से की जाए।

    केस टाइटल: रानी पांडे और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [रिट - सी संख्या - 12032/2024]

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