FIR रद्द करने की याचिका खारिज होने के बाद आरोपी के लिए अग्रिम जमानत मांगने पर कोई रोक नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
5 May 2025 4:00 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि FIR रद्द करने की मांग करने वाली आरोपी की रिट याचिका खारिज होने से अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दाखिल करने पर कोई रोक नहीं लगेगी
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा कि FIR रद्द करने की रिट याचिका और अग्रिम जमानत के लिए आवेदन पूरी तरह से अलग-अलग उपाय हैं, जिन पर अलग-अलग विचारों और आधारों पर फैसला किया जाना है।
पीठ एक 21 वर्षीय याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिस पर कथित दहेज हत्या के मामले में भारतीय न्याय संहिता (BNS) और दहेज संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया।
इस मामले में अन्य आरोपी उसके पिता, माता और बड़े भाई (मृत महिला का पति) हैं। आरोप है कि सभी आरोपी दहेज की मांग को लेकर पीड़िता को परेशान करते थे। 29 मार्च, 2025 को आवेदक की मां ने कथित तौर पर पीड़िता का गला घोंट दिया।
हाईकोर्ट के समक्ष उसके वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता बी.टेक कोर्स कर रहा है। उसकी परीक्षाएं शीघ्र ही शुरू होने वाली हैं तथा उसने हाईकोर्ट का रुख किया है, क्योंकि सेशन कोर्ट ने गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान करने की प्रार्थना को पहले ही खारिज कर दिया था।
दूसरी ओर, अतिरिक्त सरकारी वकील तथा सूचक के वकील ने आवेदक को अग्रिम जमानत प्रदान करने की प्रार्थना का विरोध किया।
सूचक के वकील ने विशेष रूप से प्रस्तुत किया कि सह-आरोपी (शिव प्रकाश शुक्ला) तथा आवेदक (प्रशांत शुक्ला) ने पहले FIR रद्द करने की याचिका दायर की थी, जिसे पिछले महीने वापस ले लिया गया था।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि FIR रद्द करने की मांग करने वाली रिट याचिका खारिज करने से अग्रिम जमानत प्रदान करने के लिए आवेदन दायर करने पर रोक नहीं लगेगी। इस पर उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, मामले के तथ्यों तथा परिस्थितियों पर विचार करने तथा यह देखते हुए कि आवेदक 21 वर्ष का एक युवा है, जो इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई कर रहा है, पीठ ने उसे अग्रिम जमानत प्रदान की।
पीठ ने अपने आदेश में टिप्पणी की,
“हालांकि, FIR में आरोप लगाया गया कि आवेदक की माँ (सह-आरोपी रेखा) ने अन्य आरोपी व्यक्ति की मदद से मृतक का गला घोंट दिया, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में केवल गर्दन के चारों ओर एक लिगचर मार्क का उल्लेख है, जो 6 सेमी तक बाधित है; मृत्यु का कारण मृत्यु से पहले फांसी के कारण दम घुटना माना गया; शव के किसी अन्य भाग पर कोई अन्य चोट नहीं पाई गई; आवेदक के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं लगाया गया।”
केस टाइटल- प्रशांत शुक्ला बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से प्रधान सचिव गृह विभाग लखनऊ और अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 161

