भरण-पोषण मामलों का शीघ्र निपटारा होने के लिए अदालतों का संवेदनशील होना जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
18 July 2025 4:30 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में CrPC की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 144) के तहत दायर भरण-पोषण के आवेदनों पर निर्णय लेते समय अदालतों द्वारा अधिक संवेदनशीलता और तत्परता से कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया। न्यायालय ने कहा कि ऐसे ज़्यादातर मामलों में 'पीड़ित' पत्नी ही होती है।
जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने गौतमबुद्ध नगर की फैमिली कोर्ट को महिला (अंजलि सिंह) द्वारा दायर भरण-पोषण के आवेदन पर शीघ्र निर्णय लेने का निर्देश देते हुए ये टिप्पणियां कीं, जो 2023 से लंबित है।
सिंगल जज के समक्ष महिला ने दलील दी कि उसके पति (प्रतिवादी नंबर 2) के असहयोग के कारण यह मामला लंबे समय से लंबित है।
यह भी दलील दी गई कि वह एक गरीब महिला है, जिसे अपने पति से कोई भरण-पोषण नहीं मिल रहा है। इस प्रकार, उसने मामले के शीघ्र निपटारे के लिए संबंधित न्यायालय को निर्देश देने का अनुरोध किया।
उसकी शिकायत पर ध्यान देते हुए न्यायालय ने कहा:
"ये ऐसे मामले हैं, जिनका शीघ्र निपटारा आवश्यक है, क्योंकि CrPC की धारा 125 के अंतर्गत लगभग सभी मामलों में पीड़ित महिला होती है। न्यायालय को उन मामलों में अधिक संवेदनशील और सतर्क रहना चाहिए, जहां पीड़ित व्यक्ति एक पत्नी है और अपने पति से भरण-पोषण के लिए लड़ रही है।"
इसके अलावा, पीड़ित पत्नी की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने संबंधित फैमिली कोर्ट को आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया।
सिंगल जज ने निचली अदालत से आवेदक के सहयोग के अधीन अनावश्यक स्थगन देने से बचने को भी कहा।
आदेश जारी करने से पहले न्यायालय ने सभी हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी पर जोर दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि मामलों का शीघ्र निपटारा हो।
इसमें कहा गया:
"किसी मामले की सुनवाई और निपटारे में न्यायालय/पीठासीन अधिकारी ही एकमात्र हितधारक नहीं है, इसलिए संबंधित पी.ओ. के अलावा, सभी हितधारक अर्थात पुलिस और कार्यकारी अधिकारी, वकील, मामले के पक्षकार, कर्मचारी भी इस आदेश से बाध्य हैं। इस मामले के शीघ्र निपटारे के लिए न्यायालय को हर तरह से सहायता प्रदान करना उनकी भी ज़िम्मेदारी होगी।"
इन टिप्पणियों के साथ आवेदन का निपटारा कर दिया गया।
Case title - Anjali Singh vs. State of U.P. and Another 2025 LiveLaw (AB) 254