इलाहाबाद हाईकोर्ट में उस वकील की याचिका खारिज की, जिसने दावा किया था कि पूर्व CJI को निरादर और निष्कासन से बचाने के लिए केस दायर किए थे, जिसकी एवज में उसे एक करोड़ रुपये दिए जाएं
Avanish Pathak
12 March 2025 8:40 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के उस एडवोकेट ने याचिका खारिज़ कर दी है, जिन्होंने दावा किया था कि उन्होंने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा को "निरादर, अपमान, यातना और निष्कासन" से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कुछ मामले दायर किए थे, इसलिए केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय को उन्हें फीस और खर्च के रूप में एक करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया जाए ।
अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि मंत्रालय ने उन्हें कभी भी विचाराधीन मामले दायर करने के लिए नियुक्त किया था।
मंगलवार को सार्वजनिक किए गए आदेश में जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने याचिकाकर्ता को भेजे गए मंत्रालय के कम्यूनिकेशन का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि जिन मामलों के लिए वह एक करोड़ रुपये की कानूनी फीस मांग रहे हैं, वे वास्तव में उनकी अपनी इच्छा से दायर किए गए थे, और, परिणामस्वरूप, भारत सरकार उनकी ओर से किए गए किसी भी खर्च को वहन करने के लिए उत्तरदायी नहीं है, जिसमें दावा किया गया शुल्क भी शामिल है।
उक्त कम्यूनिकेशन में यह भी कहा गया है कि भारत सरकार के पास सरकार के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ताओं का एक व्यापक पैनल है और याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट में विभाग के पैनल में शामिल नहीं किया गया था। इस कम्यूनिकेशन के आलोक में, न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा,
“ऐसा कोई भी अभिलेख नहीं है जो यह इंगित करे कि विधि एवं न्याय मंत्रालय, विधिक मामलों का विभाग (न्यायिक अनुभाग), भारत सरकार ने याचिकाकर्ता को कभी भी याचिका में संदर्भित छह मामलों को दायर करने के लिए नियुक्त किया था, इसलिए, 26 जुलाई 2024 के कम्यूनिकेशन में दिए गए कारणों के मद्देनजर, हमें यहां मांगी गई राहत प्रदान करने का कोई कारण नहीं मिलता है। रिट याचिका में योग्यता का अभाव है और इसे खारिज किया जाता है।”
इसके अलावा, पीठ ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 134-ए के तहत प्रमाण पत्र जारी करने के लिए उनकी प्रार्थना को भी खारिज कर दिया, क्योंकि उसे ऐसा कोई प्रमाण पत्र जारी करने के लिए यह उपयुक्त मामला नहीं लगा।
पीठ ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए कहा, “…हमारी राय में, इस मामले में भारत के संविधान की व्याख्या के रूप में कानून का कोई भी महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल नहीं है और न ही इसमें सामान्य महत्व का कोई भी महत्वपूर्ण कानून का प्रश्न शामिल है।”
याचिका का संक्षिप्त विवरण
अपनी रिट याचिका में याचिकाकर्ता एडवोकेट अशोक पांडे ने भी अपना अभ्यावेदन खारिज किए जाने को चुनौती दी थी, जिसे उन्होंने 28 फरवरी, 2024 को भारत के राष्ट्रपति को सौंपा था, जिसमें उन्होंने तत्कालीन सीजेआई मिश्रा को 'बचाने' में उनकी ओर से दी गई कानूनी सेवाओं के लिए एक करोड़ रुपये का अनुरोध किया था।
उन्होंने दावा किया कि बाद में उनका अभ्यावेदन केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेज दिया गया, जिसे मंत्रालय ने खारिज कर दिया, और यह भारत के राष्ट्रपति का अपमान है।
न्यायालय के समक्ष, उन्होंने तर्क दिया कि केंद्रीय कानून मंत्रालय के लिए भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए 'संदर्भ' को खारिज करना अनुचित था। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्होंने अपना अभ्यावेदन राष्ट्रपति को सौंपा था क्योंकि राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी हैं।
उन्होंने कहा,
"माननीय राष्ट्रपति ने मुझे भुगतान करने के लिए मंत्रालय को मेरा प्रतिनिधित्व भेजा था। फिर मंत्रालय मेरे प्रतिनिधित्व/आवेदन/राष्ट्रपति के संदर्भ को कैसे अस्वीकार कर सकता है? मैंने माननीय राष्ट्रपति से मुझे भुगतान करने के लिए कहा था क्योंकि मैंने तत्कालीन सीजेआई को बचाया था, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।"
उन्होंने खंडपीठ के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट में रोस्टर के मास्टर मुद्दे के संबंध में उनकी याचिका ने सीजेआई के पद की गरिमा को स्थापित करने और बनाए रखने में मदद की है। संदर्भ के लिए, 2018 की अपनी याचिका में, अधिवक्ता पांडे ने सीजेआई की "मनमाने ढंग से" बेंचों का गठन करने और विभिन्न बेंचों को काम आवंटित करने की एकतरफा शक्ति पर सवाल उठाया था। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अप्रैल 2018 में उनकी याचिका को खारिज कर दिया।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि उन्होंने जनवरी 2018 में तत्कालीन सीजेआई की आलोचना करते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों के खिलाफ एक और याचिका दायर की थी। न्यायालय के समक्ष उन्होंने सीजेआई मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने पत्र और याचिका का भी उल्लेख किया, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि यह एंटोनिया माइनो और कपिल सिब्बल के निर्देश पर शुरू किया गया था।
गौरतलब है कि अप्रैल 2018 में सात राजनीतिक दलों के 71 राज्यसभा सदस्यों ने जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की मांग करते हुए एक नोटिस पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि, तत्कालीन भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने बाद में नोटिस को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसमें पर्याप्त योग्यता नहीं है।
अपनी दलीलों के दौरान उन्होंने कहा कि जब उन्होंने सीजेआई मिश्रा के लिए याचिका दायर की थी, तो लोगों ने पूछा था कि सीजेआई मिश्रा ने उन्हें (याचिका दायर करने के लिए) कितना पैसा दिया था।
वकील पांडे ने कहा,
"सीजेआई मिश्रा के लिए याचिका दायर की गई तो लोगों ने पूछा कि मुझे सीजेआई मिश्रा ने मुझे कितना दिया? बताइए कितनी घटिया मानसिकता है लोगों की। मैंने सीजेआई के हिट में दया की थी याचिका, सीजेआई मिश्रा से पैसे पाने की अपेक्षा में नहीं।"
उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने प्रिंस चार्ल्स को भारत में 2011 में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन करने की अनुमति देने के कदम के खिलाफ एक याचिका भी दायर की थी।