सरासर उद्दंडता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने CJM को जवाब देने के लिए सब-इंस्पेक्टर तैनात करने पर SSP को फटकारा, जवाब तलब

Amir Ahmad

19 Dec 2025 1:45 PM IST

  • सरासर उद्दंडता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने CJM को जवाब देने के लिए सब-इंस्पेक्टर तैनात करने पर SSP को फटकारा, जवाब तलब

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को बदायूं के सीनियर पुलिस अधीक्षक (SSP) के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताते हुए उसे सरासर उद्दंडता करार दिया। अदालत ने SSP द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) को जवाब देने का काम एक सब-इंस्पेक्टर को सौंपने पर सख्त आपत्ति जताई और उनसे व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने को कहा कि उनके खिलाफ अलग से सिविल अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।

    जस्टिस जे.जे. मुनिर और जस्टिस संजीव कुमार की खंडपीठ एक ऐसे आपराधिक अपील मामले की सुनवाई कर रही थी, जो वर्ष 1984 से लंबित है और जिसमें एकमात्र अपीलकर्ता आनंद प्रकाश लापता है।

    अदालत ने 10 दिसंबर 2025 को पारित अपने आदेश में अपीलकर्ता की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया था। साथ ही स्पष्ट किया गया कि वारंट तब तक बिना तामील लौटाया नहीं जाएगा, जब तक पुलिस शपथपत्र सहित यह प्रमाण न दे दे कि अपीलकर्ता की मृत्यु हो चुकी है या वह देश छोड़ चुका है। इसके अतिरिक्त बदायूं के पुलिस अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया कि अपीलकर्ता जहां भी छिपा हो या स्थानांतरित हुआ हो वहां उसकी तलाश कर वारंट की तामील कराई जाए।

    18 दिसंबर, 2025 को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि SSP ने न केवल वारंट की तामील के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किए बल्कि संबंधित CJM से स्वयं संवाद भी नहीं किया। अदालत के आदेश के अनुपालन में CJM बदायूं ने सीधे SSP को एक मेमो भेजा था लेकिन SSP ने स्वयं उत्तर देने के बजाय अपने अधीनस्थ सब-इंस्पेक्टर से CJM को पत्र भिजवा दिया।

    इस पर कड़ा ऐतराज जताते हुए खंडपीठ ने टिप्पणी की कि जब CJM ने हाईकोर्ट के आदेश के तहत स्वयं SSP को मेमो भेजा था तो ऐसे में किसी थाना स्तर के सब-इंस्पेक्टर से जवाब भिजवाना प्रथम दृष्टया सरासर उद्दंडता है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि मामला न्यायालय की प्रक्रिया से जुड़ा था, तब भी SSP को स्वयं मेमो के माध्यम से जवाब देना चाहिए, न कि किसी साधारण अधीनस्थ अधिकारी से पत्र लिखवाना चाहिए।

    हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा दाखिल रिपोर्ट पर भी गहरी असंतुष्टि जताई, जिसमें कहा गया कि अपीलकर्ता का पता नहीं चल सका। अदालत ने कहा कि यह रिपोर्ट उसके स्पष्ट आदेश का उल्लंघन है, क्योंकि वारंट केवल दो ही परिस्थितियों में बिना तामील लौटाया जा सकता है। यदि अपीलकर्ता की मृत्यु हो चुकी हो या वह देश छोड़ चुका हो। अदालत ने कहा कि इन दोनों में से किसी भी स्थिति की पुष्टि रिपोर्ट में नहीं की गई।

    खंडपीठ ने टिप्पणी की कि इन परिस्थितियों में बदायूं के SSP प्रथम दृष्टया हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना के दोषी प्रतीत होते हैं।

    इस रवैये को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने SSP, बदायूं को निर्देश दिया कि वह 19 दिसंबर को दोपहर 2 बजे तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर तीन बिंदुओं पर कारण बताएं क्यों उनके खिलाफ अलग से सिविल अवमानना की कार्यवाही दर्ज न की जाए? उन्होंने 10 दिसंबर, 2025 के आदेश में बताए गए सीमित आधारों के बावजूद अपीलकर्ता को गिरफ्तार कर पेश क्यों नहीं किया? साथ ही उन्होंने स्वयं CJM को जवाब देने के बजाय सब-इंस्पेक्टर से पत्र क्यों भिजवाया?

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया तो SSP को स्वयं अदालत में उपस्थित होना होगा।

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