बढ़ती जागरूकता के कारण SC/ST समुदाय द्वारा दर्ज किए गए आपराधिक मामलों में 'तेजी' वृद्धि हुई: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
3 July 2024 11:25 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के सदस्यों द्वारा दर्ज किए गए आपराधिक मामलों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी।
जस्टिस चंद्र कुमार राय की पीठ ने कहा कि यह वृद्धि SC/ST समुदाय के बीच अपने अधिकारों, शक्तियों और कर्तव्यों के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण हो सकती है, जो कि दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के प्रसार से सुगम हुई है।
पीठ ने टिप्पणी की,
"हम अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में हैं, एक परिपक्व लोकतंत्र जहां ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा प्रणाली का पर्याप्त प्रसार है और SC/ST समुदाय के लोगों सहित समाज के सभी वर्गों में पर्याप्त जागरूकता है। इसके अलावा, हमारे गांवों के दूरदराज के इलाकों में भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया का बोलबाला है, लोग अब अपने अधिकारों, शक्तियों और कर्तव्यों के बारे में अधिक जागरूक और सतर्क हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थिति धीरे-धीरे लेकिन लगातार सुधर रही है। इसलिए SC/ST समुदाय के सदस्यों द्वारा आपराधिक मामले दर्ज कराने में तेजी से वृद्धि हुई है।"
इस सकारात्मक प्रवृत्ति को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने उन मामलों में समझौता करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला जहां विवादों का त्वरित और सौहार्दपूर्ण समाधान सुनिश्चित करना उचित है। एकल न्यायाधीश ने कहा कि यह "स्वागत योग्य कदम" है कि पक्ष विभिन्न कारणों से समझौते को 'तत्परता से' स्वीकार कर रहे हैं, जैसे: एक ही गांव या निकटवर्ती क्षेत्र में रहना; पीढ़ियों से उनके बीच संबंध; परस्पर निर्भरता, आदि "शांत करने वाले कारक" हैं। न्यायालय ने कहा कि इन परिस्थितियों में, विधि न्यायालयों की भूमिका उनके बीच 'उत्प्रेरक' के रूप में कार्य करने की होनी चाहिए, ताकि उनके विवादों और मतभेदों को 'दफन' किया जा सके, "मामले को असीमित अवधि तक लटकाए रखने के बजाय, जिससे उनके बीच दुश्मनी और अधिक दृढ़ और अपरिवर्तनीय हो जाए।"
न्यायालय ने कहा,
"लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी कभी-कभी समाज की सामान्य शांति और सौहार्द के लिए विनाशकारी परिणाम देती है। इसलिए विधि न्यायालयों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सक्रिय तरीके से कार्य करें और उपर्युक्त कारकों का मूल्यांकन करने और उन्हें ध्यान में रखने के बाद समाज के व्यापक हित में मतभेदों को हमेशा के लिए खत्म करने का प्रयास करें।"
ये टिप्पणियां न्यायालय द्वारा धारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 149, 452, 323, 324, 325, 427, 307, 308, 34 के तहत दो मामलों में 8 आरोपियों के खिलाफ पूरी कार्यवाही (आरोप पत्र और संज्ञान आदेश सहित) को रद्द करते हुए की गईं।
लंबित कार्यवाही के दौरान, संबंधित पक्षों (पीड़ितों और अभियुक्तों सहित) ने अपने विवाद को सुलझा लिया और समझौता कर लिया। समझौता आवेदन संयुक्त रूप से दायर किया गया और संबंधित न्यायालय द्वारा सत्यापित किया गया। इस तरह के समझौते के आधार पर आवेदकों ने कार्यवाही को रद्द करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
शुरू में न्यायालय ने ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2012), नरिंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2014), मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण और अन्य (2019) के मामलों में पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर मामलों को रद्द करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का हवाला दिया।
न्यायालय ने वर्तमान मामलों के तथ्यों, अपराध की प्रकृति और गंभीरता और इस तथ्य की तुलना की कि प्रतियोगी पक्ष एक ही गांव के हैं और या तो पड़ोस में या आस-पास रहते हैं। न्यायालय ने यह भी माना कि गुस्से के कारण कुछ गर्म जुनून या तकरार हुई, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी ने शिकायतकर्ता के खिलाफ आपत्तिजनक कार्य किया।
न्यायालय ने कहा कि समय के साथ प्रतिवादी पक्षों ने स्वयं अपने गांव में शेष जीवन के लिए शांतिपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व की आवश्यकता को महसूस किया। न्यायालय ने यह भी कहा कि बुजुर्गों और समाज के सम्मानित सदस्यों के हस्तक्षेप से, उन्होंने शांत और तर्कसंगत मानसिकता के साथ क्षमा और सुलह के सिद्धांत का पालन करते हुए इस मुद्दे को स्थायी रूप से निपटाने का विकल्प चुना है।
इस पृष्ठभूमि में आपस में मामले को सुलझाने के उनके कदम का स्वागत करते हुए न्यायालय ने कहा कि उसे "समाज के व्यापक हित और कल्याण को प्राप्त करने के लिए" प्रतिवादी पक्षों के बीच समझौते के आलोक में मामलों की कार्यवाही रद्द करने में कोई हिचकिचाहट या आपत्ति नहीं है। इसे देखते हुए SC/ST Act की धारा 14ए(1) के तहत आपराधिक अपील और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदनों को अनुमति दी गई और संबंधित मामलों के विवादित आदेशों और कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।
केस टाइटल- इब्ने हैदर और 8 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 7 अन्य 2024 लाइवलॉ (एबी) 417