Hathras 'Conspiracy' | गिरफ्तारी के 41 महीने बाद UAPA मामले में सिद्दीकी कप्पन के सह-आरोपी मसूद को मिली जमानत
Shahadat
19 March 2024 8:54 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2020 के हाथरस 'साजिश' मामले में स्टूडेंट लीडर मसूद अहमद को जमानत दे दी। उक्त मामले में मसूद और पत्रकार सिद्दीकी कप्पन सहित 4 लोगों पर यूपी पुलिस ने सख्त गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA Act) के तहत मामला दर्ज किया था।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव-I की खंडपीठ ने यह आदेश पारित करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही सह-अभियुक्त कप्पन को जमानत दे दी है और अन्य सह-अभियुक्तों को इस न्यायालय की समन्वय पीठ जमानत पर रिहा कर दिया गया।
इसके अलावा, 41 महीने की लंबी हिरासत अवधि पर विचार करते हुए अदालत ने मामले की योग्यता पर कोई राय दिए बिना मसूद अहमद को राहत दे दी। इस निर्णय में विशेष एनआईए अदालत के दिसंबर 2022 का आदेश रद्द करना शामिल है, जिसने पहले उन्हें जमानत देने से इनकार किया था। डिवीजन बेंच ने कहा कि विशेष अदालत रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री की सराहना करने में विफल रही।
गौरतलब है कि मसूद और कप्पन के साथ 2 अन्य लोगों पर उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने देशद्रोह, आपराधिक साजिश, आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण और अन्य अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया। यह आरोप लगाया गया कि वे मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों में शामिल थे और दावा किया कि वे हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले के बाद "सांप्रदायिक दंगे भड़काना और आतंक फैलाना" चाहते थे।
इन सभी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153(ए), 124(ए), 295(ए) और धारा 120(बी) के तहत मामला दर्ज किया गया।
उन पर आतंकी कृत्यों के लिए धन जुटाने से संबंधित गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) की धारा 17 और 18 और आईटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भी आरोप लगाए गए।
इससे पहले दिसंबर, 2022 में लखनऊ में विशेष न्यायाधीश, एनआईए/एटीएस, अतिरिक्त जिला और सत्र ने मसूद को जमानत देने से इनकार कर दिया था। उक्त आदेश को चुनौती देते हुए वह एचसी में चले गए।
मसूद के वकील की प्राथमिक दलील यह थी कि उसके खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है कि वह किसी आतंकवादी संगठन से जुड़ा है या वह किसी दान या फंडिंग की मांग कर रहा है, या उसका पीएफआई यया सीएफआई से कोई संबंध है। यह भी दलील दी गई कि उसके कब्जे से या उसकी निशानदेही पर कोई आपत्तिजनक वस्तु बरामद नहीं हुई।
यह तर्क दिया गया कि वह न तो UAPA Act की धारा 2 (ओ) के तहत परिभाषित किसी भी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल था और न ही UAPA Act की धारा 2 (पी) के तहत परिभाषित किसी गैरकानूनी संघ का हिस्सा है। अदालत को यह भी बताया गया कि उनके सह-अभियुक्तों (आलम उर्फ मोहम्मद आलम, जिनका नाम एफआईआर में भी है, अतीकुर रहमान, के.ए. रऊफ शेरिफ, मोहम्मद दानिश उर्फ टुन्नु और कप्पन) को पहले ही जमानत दे दी गई।
दूसरी ओर, राज्य सरकार के लिए एजीए ने प्रस्तुत किया कि विशेष अदालत ने अपीलकर्ता की जमानत याचिका वैध रूप से खारिज कर दी थी, क्योंकि वह पीएफआई संगठन से जुड़ा था, जो देश में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है और देश में अशांति पैदा करने की कोशिश कर रहा है।
यह प्रस्तुत किया गया कि आरोपी-अपीलकर्ता फ़िरोज़ खान, अशद बदरुद्दीन के बैंक विवरण से बैंक अकाउंट में भारी धन लेनदेन की पुष्टि होगी और पर्याप्त सबूत इकट्ठा करने के बाद उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया।
हालांकि, एजीए ने इस तथ्य पर विवाद नहीं किया कि उनके सह-अभियुक्त, अर्थात् कप्पन, जिन्हें मुख्य भूमिका सौंपी गई, उसको सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है और अन्य सह-अभियुक्तों, जिनका नाम भी एफआईआर में है, उनको हाईकोर्ट की समन्वय पीठों द्वारा जमानत दी गई।
दोनों पक्षकारों के वकीलों को सुनने के बाद अदालत ने मामले की योग्यता पर कोई राय व्यक्त किए बिना उन्हें जमानत देते हुए उनकी अपील स्वीकार कर ली।
केस टाइटल- मसूद बनाम यूपी राज्य के माध्यम से. प्रिं. सचिव. होम, लखनऊ. और अन्य। लाइव लॉ (एबी) 178/2024