Chhattisgarh Liquor Scam | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य में दर्ज FIR में दो आरोपियों की गिरफ्तारी 'अवैध' घोषित की

Shahadat

3 Jun 2025 10:41 AM IST

  • Chhattisgarh Liquor Scam | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य में दर्ज FIR में दो आरोपियों की गिरफ्तारी अवैध घोषित की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह रायपुर के पूर्व मेयर के भाई और व्यवसायी अनवर ढेबर तथा पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया। ये दोनों ही छत्तीसगढ़ में कथित ₹2,000 करोड़ के शराब घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में आरोपी हैं।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा तथा जस्टिस मदन पाल सिंह की खंडपीठ ने मेरठ (उत्तर प्रदेश) में उनके खिलाफ दर्ज FIR में उन्हें जमानत दी। खंडपीठ ने कहा कि गिरफ्तारी ज्ञापन में याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी के आधार के बारे में कोई कॉलम नहीं था तथा उन्हें न तो गिरफ्तारी के आधार के बारे में बताया गया, न ही गिरफ्तारी के कारणों के बारे में।

    खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,

    "इस प्रकार, CrPC की धारा 50 और अनुच्छेद 22(1) के आदेश का स्पष्ट रूप से पालन न किए जाने के कारण हमारा मानना ​​है कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया जाना चाहिए। उसके बाद के सभी गिरफ्तारी ज्ञापनों को रद्द किया जाना चाहिए तथा रिमांड आदेशों को भी रद्द किया जाना चाहिए।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    कथित छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से संबंधित घटनाओं की इसी श्रृंखला के संबंध में उत्तर प्रदेश राज्य में 30 जुलाई, 2023 को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420, 468, 471, 473, 484 और 120-बी के तहत FIR दर्ज की गई थी। लगभग 11 महीने बाद 18 जून, 2024 को ढेबर को उत्तर प्रदेश पुलिस ने मात्र 20 मिनट बाद, रात 9:40 बजे रायपुर में ही गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, उन्हें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रात 9:20 बजे जमानत दी थी।

    गिरफ्तारी के बाद आईओ ने रायपुर में मजिस्ट्रेट के समक्ष CrPC की धारा 167 के तहत ट्रांजिट रिमांड के लिए आवेदन किया, जिसे 48 घंटे के लिए मंजूर कर लिया गया।

    इसके बाद 21 जून, 2024 को ढेबर को स्पेशल जज (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम), मेरठ के समक्ष पेश किया गया, जिन्होंने उन्हें 1 जुलाई, 2024 तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

    यह तब हुआ जब याचिकाकर्ता ने गिरफ्तारी पर विशेष रूप से आपत्ति जताई, जिसमें तर्क दिया गया कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) और 22(1) के साथ-साथ CrPC की धारा 50 का उल्लंघन है, जो गिरफ्तारी के आधारों के बारे में संचार को अनिवार्य बनाता है।

    ढेबर ने हाईकोर्ट का रुख किया और उनकी याचिका पर अनिल टुटेजा द्वारा दायर याचिका के साथ सुनवाई की गई, जिन्हें अलग से गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्होंने भी ढेबर की तरह हाईकोर्ट का रुख किया और यह घोषित करने की मांग की कि उनकी गिरफ्तारी अवैध और शून्य है। इसके बाद के सभी रिमांड आदेशों को रद्द करने की प्रार्थना की।

    दोनों याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि गिरफ्तारी के दौरान और उसके बाद, बाद के रिमांड के दौरान, उन्हें कभी भी गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए और राज्य द्वारा जवाबी हलफनामे में इस तथ्य से इनकार नहीं किया गया।

    दूसरी ओर, राज्य के एडिशनल एडवोकेट जनरल ने प्रस्तुत किया कि चूंकि गिरफ्तारी का ज्ञापन था और याचिकाकर्ता के बेटे-ढेबर को गिरफ्तारी के बारे में सूचित किया गया, इसलिए गिरफ्तारी को अवैध नहीं कहा जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ताओं को कारण पता थे।

    हालांकि, खंडपीठ राज्य के तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ, क्योंकि उसने नोट किया कि न तो गिरफ्तारी के ज्ञापन में और न ही ढेबर के बेटे को दी गई जानकारी में या रिमांड आदेशों में याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तारी के आधार बताए गए।

    न्यायालय ने पाया कि वास्तव में गिरफ्तारी ज्ञापन में गिरफ्तारी का कारण बताने के लिए कोई कॉलम नहीं था। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को हिरासत में रिमांड का विरोध करने के लिए सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया। इस प्रकार, न्यायालय ने 'कुछ निश्चितता के साथ' निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ताओं को कभी भी गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए, जैसा कि CrPC की धारा 50 (BNSS की धारा 47) के तहत अनिवार्य है।

    इस प्रकार, खंडपीठ ने उनकी गिरफ्तारी को अवैध घोषित कर दिया। हालांकि, उसने प्रस्तुत किए गए आरोप-पत्र में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायालय आरोप-पत्र के अनुसार कानून के अनुसार कार्यवाही जारी रख सकता है।

    Case title - Anwar Dhebar vs. State Of Up And 2 Others 2025 LiveLaw (AB) 206 and a connected matter

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