इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लॉ स्टूडेंट्स पर 'पुलिस बर्बरता' की न्यायिक जांच से इनकार किया, कहा- 'किसी भी अवैध कृत्य का समर्थन नहीं किया जा रहा'
Shahadat
17 Sept 2025 10:12 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह बाराबंकी स्थित श्री रामस्वरूप स्मारक यूनिवर्सिटी (SRM) के प्रदर्शनकारी लॉ स्टूडेंट्स पर कथित पुलिस बर्बरता की न्यायिक जांच की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार किया।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके आदेश को अधिकारियों या प्राइवेट यूनिवर्सिटी द्वारा किसी भी अवैध कृत्य का समर्थन करने के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। संदर्भ के लिए, स्टूडेंट्स प्रशासन द्वारा नियमों का उल्लंघन करके और बिना उचित नवीनीकरण/अनुमोदन के लॉ कोर्स चलाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे, जब कथित तौर पर उनकी पिटाई की गई।
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ मुख्यतः एडवोकेट आशीष कुमार सिंह द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें SRM यूनिवर्सिटी में कथित घटना की जांच के लिए रिटायर जज की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग के गठन का अनुरोध किया गया।
याचिका में उन पुलिसकर्मियों, जिनमें पुरुष अधिकारी भी शामिल हैं, के खिलाफ मुकदमा चलाने और अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की भी मांग की गई, जिन्होंने कथित तौर पर छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार किया।
इसके अतिरिक्त, जनहित याचिका में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की मान्यता के बिना लॉ कॉलेजों के संचालन पर रोक लगाने की मांग की गई।
शुरुआत में खंडपीठ ने कहा कि जिन लॉ स्टूडेंट्स के साथ मारपीट की बात कही गई, उन्होंने खुद अदालत का रुख नहीं किया। न्यायिक जांच और पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली राहत के संबंध में खंडपीठ ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति अदालत का रुख कर सकते हैं या कानून के तहत अनुमत उपायों का लाभ उठा सकते हैं।
BCI की मंजूरी के बिना यूनिवर्सिटी को लॉ कोर्स चलाने से रोकने की याचिका के संबंध में अदालत ने बताया कि यह मुद्दा पहले से ही हाईकोर्ट में अन्य जनहित याचिका में लंबित है। इसलिए उसने कहा कि उसे "उसी कारण से एक और जनहित याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता"।
पीड़ित स्टूडेंट्स के मेडिकल उपचार, मुआवजे और पुनर्वास की मांग वाली याचिका के संबंध में अदालत ने दर्ज किया कि घायल स्टूडेंट्स को पहले ही लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में भर्ती कराया जा चुका है, जहां उन्हें उचित मेडिकल मिल रही होगी।
खंडपीठ ने आगे कहा कि KGMU को पक्षकार भी नहीं बनाया गया, अन्यथा निर्देश देने में आसानी होती।
खंडपीठ को यह भी बताया गया कि राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट यूनिवर्सिटी के विरुद्ध FIR दर्ज की गई, जिसे चुनौती दी गई और अन्य कार्यवाही के तहत न्यायालय में लंबित है।
इस पृष्ठभूमि में अदालत ने जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसके आदेश को किसी भी विरोधी पक्ष या प्राइवेट यूनिवर्सिटी के किसी भी अवैध कृत्य को उचित ठहराने के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए।
Case title - Ashish Kumar Singh vs. State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Deptt. Of Home Lko And 4 Others 2025 LiveLaw (AB) 346

