NCDRC के आदेशों के खिलाफ आर्टिकल 226 की रिट केवल 'अपवादात्मक परिस्थितियों' में ही स्वीकार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Praveen Mishra

8 Dec 2025 10:54 PM IST

  • NCDRC के आदेशों के खिलाफ आर्टिकल 226 की रिट केवल अपवादात्मक परिस्थितियों में ही स्वीकार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के आदेशों को चुनौती देने वाली रिट याचिका संविधान के आर्टिकल 226 के तहत तो दायर की जा सकती है, लेकिन इस अधिकार का उपयोग केवल अत्यंत अपवादात्मक परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में किसी भी पक्षकार को वैकल्पिक उपाय, यानी हाईकोर्ट की सुपरवाइजरी जुरिस्डिक्शन के तहत आर्टिकल 227 का सहारा लेना होगा।

    जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने एम/एस साहू लैंड डेवलपर्स प्रा. लि. की रिट याचिका खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ट्रिब्यूनल के निर्णयों में तथ्यगत त्रुटियों को सुधारने के लिए अपील कोर्ट की तरह कार्य नहीं कर सकता और न ही वैधानिक मंचों को बायपास करने की अनुमति दी जा सकती है।


    वैकल्पिक उपाय होने के बावजूद कब स्वीकार्य होगी रिट?

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर भी रिट तीन स्थितियों में बरकरार रह सकती है—

    1. जब मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो,

    2. जब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का हनन हुआ हो,

    3. जब आदेश पूर्णत: अधिकार–क्षेत्र से बाहर हो या कानून की वैधता को चुनौती दी गई हो।

    हालाँकि, कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले में इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद नहीं है।


    मामले का पृष्ठभूमि

    2012 में डेवलपर ने लखनऊ में “साहू सिटी फेज-2” नाम से प्लॉटिंग प्रोजेक्ट शुरू किया था। प्लॉट बुक करने वाले उपभोक्ता तय समय पर कब्जे की अपेक्षा कर रहे थे। बाद में संबंधित गाँव में चकबंदी की कार्यवाही शुरू होने से परियोजना रुक गई। कंपनी ने इसे फोर्स मेज्योर जैसी परिस्थिति बताया।

    उधर, कब्जा न मिलने से नाराज़ उपभोक्ताओं ने जिला उपभोक्ता आयोग का रुख किया, जिसने जमा राशि के साथ ब्याज लौटाने का आदेश दिया। राज्य आयोग और NCDRC ने भी इन निष्कर्षों को मंज़ूर किया।

    हाईकोर्ट : तथ्यगत विवाद रिट में नहीं उठाए जा सकते

    हाईकोर्ट ने कहा कि उपभोक्ता मंचों ने यह पाया कि कंपनी ने चकबंदी की जानकारी छिपाकर उपभोक्ताओं से पैसा लिया, जो अनुचित व्यापार व्यवहार है। तीनों मंचों के निष्कर्ष समान हैं और “पर्वर्स” नहीं कहे जा सकते।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता उन्हीं विवादित तथ्यगत दलीलों को दोहरा रहा है जिन्हें पहले ही तीन स्तरों पर खारिज किया जा चुका है। ऐसे विवादों पर रिट जुरिस्डिक्शन में पुनर्विचार नहीं किया जा सकता।

    इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि कंपनी ने अब तक उपभोक्ताओं को प्लॉट का कब्जा नहीं दिया है।

    किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन, प्राकृतिक न्याय का हनन या अधिकार–क्षेत्र से बाहर आदेश साबित न होने पर हाईकोर्ट ने रिट याचिका को खारिज कर दिया।

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