इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में एसिड की बिक्री को रेगुलेट करने वाली 2014 की PIL को स्वतः संज्ञान कार्यवाही में बदला

Shahadat

17 Dec 2025 11:06 AM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में एसिड की बिक्री को रेगुलेट करने वाली 2014 की PIL को स्वतः संज्ञान कार्यवाही में बदला

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश में एसिड की बिक्री पर रोक और रेगुलेशन से संबंधित 2014 में दायर एक जनहित याचिका (PIL) को स्वतः संज्ञान कार्यवाही में बदल दिया।

    यह आदेश तब पारित किया गया जब मूल याचिकाकर्ता (अनुभव वर्मा) ने कहा कि वह इस मुकदमे को आगे नहीं बढ़ाना चाहता।

    उन्हें मामले से हटने की अनुमति देते हुए जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस विवेक सरन की डिवीजन बेंच ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता की इच्छा के कारण मामला बंद कर दिया जाता है तो "न्याय का हित प्रभावित हो सकता है"।

    याचिका खारिज करने से इनकार करते हुए बेंच ने कहा:

    "हालांकि हम मूल याचिकाकर्ता की पसंद या मकसद पर कोई फैसला नहीं कर सकते, जो इस तरह की वास्तविक जनहित याचिका से हटना चाहता है, हम देखते हैं कि अगर ऐसी याचिका को मूल याचिकाकर्ता की इच्छा पर वापस लेने की अनुमति दी जाती है तो न्याय का हित प्रभावित हो सकता है, क्योंकि यह कोई विरोधी मुकदमा नहीं बल्कि जनहित याचिका है।"

    नतीजतन, कोर्ट ने रजिस्ट्री को मामले को बनाए रखने और कार्यवाही को स्वतः संज्ञान याचिका के रूप में फिर से रजिस्टर करने का निर्देश दिया।

    यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोर्ट को इस महत्वपूर्ण मामले में सहायता मिलती रहे, बेंच ने एडवोकेट आकांक्षा मिश्रा और उत्कर्षिनी सिंह को एमिक्स क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया।

    बता दें, PIL शुरू में लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2013) मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करने के लिए दायर की गई, जिसमें राज्यों को एसिड रखने और बेचने के लिए नियम बनाने और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 357A के तहत पीड़ितों को मुआवजे के लिए योजनाएं बनाने का आदेश दिया गया।

    अगस्त, 2014 में पारित आदेश में हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पीड़ित मुआवजा योजना, 2014 की जांच की थी और योजना के क्लॉज 4 को अस्पष्ट और संभावित रूप से प्रतिबंधात्मक पाया था।

    क्लॉज 4 का सब-क्लॉज (a) पीड़ितों को मुआवजे के लिए तभी योग्य बनाता था, जब अपराधी का पता न चले या उसकी पहचान न हो।

    हाईकोर्ट ने इस व्याख्या पर कड़ी आपत्ति जताई, जैसा कि उसने कहा था:

    "ऐसी स्थिति में मुआवज़े के दावे को बाहर करने का कोई कारण या औचित्य नहीं है, जिसमें, उदाहरण के लिए, बलात्कार या एसिड हमले का शिकार व्यक्ति अपराधी की पहचान करता है या जहाँ अपराधी का पता लगा लिया गया। दूसरे शब्दों में, यह योजना केवल उन स्थितियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, जहां अपराधी का पता नहीं चला है या उसकी पहचान नहीं हुई है।"

    कोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि वह इस क्लॉज़ पर फिर से विचार करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पीड़ित को न्याय मिल सके।

    मुआवज़े की राशि के बारे में बेंच ने कहा कि राज्य सरकार को इस पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है कि क्या तीन लाख रुपये ऐसे सभी मामलों में न्याय के लिए पर्याप्त होंगे, क्योंकि पीड़ितों को बार-बार सर्जरी, फॉलो-अप इलाज और पुनर्वास की ज़रूरत होती है।

    जब याचिका लंबित थी, तब राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश ज़हर (कब्ज़ा और बिक्री) नियम, 2014 अधिसूचित किए, लेकिन कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि केवल कानून बनाना ही काफी नहीं है।

    2014 के आदेश में कहा गया,

    "हालांकि, केवल नियम बनाना ही पर्याप्त नहीं होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी कार्रवाई की जानी चाहिए कि राज्य सरकार द्वारा नियमों को सख्ती से लागू किया जाए ताकि एसिड सहित ज़हरीले पदार्थों की बिक्री को रोका जा सके।"

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