इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नीलामी क्रेता को उसकी 'मनमानी' कार्रवाई पर क्षतिपूर्ति करने के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा को दिया निर्देश वापस लिया

Shahadat

21 May 2025 10:45 AM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नीलामी क्रेता को उसकी मनमानी कार्रवाई पर क्षतिपूर्ति करने के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा को दिया निर्देश वापस लिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह सफल बोलीदाता (नीलामी क्रेता) को क्षतिपूर्ति करने के लिए दिए गए अपने निर्देश को वापस ले लिया, जिसमें बोलीदाता से बयाना राशि स्वीकार करने के बावजूद, नीलामी की गई संपत्ति को चूककर्ता उधारकर्ता (मूल उधारकर्ता) को वापस करने की कथित 'मनमानी' कार्रवाई की गई थी।

    बता दें, 9 अप्रैल को न्यायालय ने सौरभ सिंह चौहान द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया, जिन्होंने दावा किया था कि उन्होंने SARFAESI Act के तहत विचाराधीन संपत्ति के लिए सफलतापूर्वक बोली लगाई थी।

    उन्होंने दावा किया कि बैंक ने एकमुश्त निपटान योजना के माध्यम से संपत्ति (जिसके लिए उन्होंने पहले ही बयाना राशि का भुगतान कर दिया था) मूल उधारकर्ता को वापस कर दी।

    हालांकि, बैंक की ओर से वकील और बैंक ने अवैध कार्रवाई के लिए बिना शर्त माफी मांगी, लेकिन न्यायालय ने बैंक को मुआवजे के रूप में 24% ब्याज दर के साथ नीलामी क्रेता को बयाना राशि वापस करने का निर्देश दिया था।

    अब 16 मई को न्यायालय को सूचित किया गया कि नीलामी की तिथि से पांच दिनों के भीतर नीलामी रद्द कर दी गई तथा याचिकाकर्ता (बोलीदाता) से प्राप्त बयाना राशि नीलामी की तिथि से सात दिनों की अवधि के भीतर वापस कर दी गई।

    जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस डॉ योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ के समक्ष यह स्वीकार किया गया कि बयाना राशि पर ब्याज के भुगतान के संबंध में आदेश पारित किए जाने की तिथि पर इस विशेष तथ्य को इस न्यायालय के समक्ष दबा दिया गया था।

    इसके मद्देनजर, खंडपीठ ने ब्याज के भुगतान और याचिकाकर्ता को धन वापस करने के संबंध में 9 अप्रैल, 2025 के आदेश के हिस्से को वापस ले लिया।

    इसके अलावा, खंडपीठ ने कहा कि चूंकि नीलामी रद्द कर दी गई और याचिकाकर्ता (नीलामी क्रेता) के पक्ष में कोई बिक्री प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया, इसलिए इस स्तर पर किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।

    न्यायालय ने कहा कि चूंकि ऋणकर्ता ने बैंक से संपर्क किया और बैंक ने ऋणकर्ता के साथ ओटीएस समझौता स्वीकार कर लिया तथा संबंधित संपत्ति का कब्जा ऋणकर्ता को लौटा दिया। इसलिए यदि कोई उपाय था तो वह ऋण वसूली न्यायाधिकरण के समक्ष था।

    इसके साथ ही रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    Case title - Saurabh Singh Chauhan vs. Bank Of Baroda, Regional Stressed Assets Recovery Branch And Another 2025 LiveLaw (AB) 181

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