'साइबर क्राइम समाज को पैसे से ज़्यादा नुकसान पहुंचा रहा है': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'डिजिटल अरेस्ट' के आरोपी को ज़मानत देने से इनकार किया
Shahadat
23 Jan 2025 4:23 AM

देश भर में साइबर अपराधों में वृद्धि को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि हमारे देश में साइबर क्राइम एक मूक वायरस की तरह है। इसने अनगिनत निर्दोष पीड़ितों को प्रभावित किया, जो अपनी मेहनत की कमाई से ठगे गए।
न्यायालय ने यह भी कहा कि साइबर अपराध पूरे देश में लोगों को प्रभावित करता है, चाहे वे किसी भी धर्म, क्षेत्र, शिक्षा या वर्ग के हों और ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।
जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने आगे कहा कि डिजिटल इंडिया जैसी पहलों ने देश के डिजिटल परिवर्तन को गति दी है, लेकिन इसने उन कमज़ोरियों को भी उजागर किया, जिनका साइबर अपराधी फायदा उठाते हैं।
एकल न्यायाधीश ने टिप्पणी की,
"इस न्यायालय ने पाया है कि भारत में टेक्नोलॉजी की तीव्र प्रगति और डिजिटल बुनियादी ढांचे को व्यापक रूप से अपनाने से फ़िशिंग घोटाले, रैनसमवेयर हमले, साइबर-स्टॉकिंग और डेटा उल्लंघन सहित साइबर अपराधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।"
अदालत ने डिजिटल गिरफ्तारी के कथित मामले में धारा 384, 406, 419, 420, 506, 507 और 34 आईपीसी और IT Act की धारा 66-सी और 66-डी के तहत दर्ज निशांत रॉय को जमानत देने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
संदर्भ के लिए “डिजिटल अरेस्ट” घोटाले में धोखेबाज वीडियो कॉल के माध्यम से कानून प्रवर्तन का दिखावा करते हैं। उन पर अवैध गतिविधियों का झूठा आरोप लगाकर फर्जी गिरफ्तारी की धमकी देते हैं और उनसे पैसे ऐंठते हैं।
इस मामले में पीड़िता/प्रथम सूचनाकर्ता (काकोली दास) को कूरियर कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में खुद को पेश करने वाले किसी व्यक्ति से कॉल आया, जिसमें दावा किया गया कि उसके नाम पर एक पार्सल ताइवान भेजा जा रहा है और इसमें 200 ग्राम एमडीएमए सहित अवैध सामग्री है।
बाद में कॉल को पुलिस उपायुक्त, क्राइम ब्रांच के रूप में खुद को पेश करने वाले व्यक्ति को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसने उसे डिजिटल रूप से अरेस्ट किया। उसके बाद जांच के उद्देश्य से उसके बैंक अकाउंट डिटेल्स शेयर करने के लिए उसे मजबूर किया।
इसके बाद,तीन दिनों (23-25 अप्रैल, 2024) में साइबर अपराधियों द्वारा RTGS के माध्यम से उसके SBI और यस बैंक अकाउंट्स से कुल ₹1.48 करोड़ धोखाधड़ी से ट्रांसफर किए गए।
मामले में जमानत की मांग करते हुए आवेदक, जो कि 6वें सेमेस्टर का बीबीए स्टूडेंट है, उसने हाईकोर्ट में दलील दी कि उसका नाम FIR में था, लेकिन जांच के दौरान उसे गलत तरीके से फंसाया गया, क्योंकि आरोपी रामा उर्फ चेतन ने अपने इकबालिया बयान में उसके पिता का नाम लिया था।
आवेदक ने तर्क दिया कि जांच अधिकारी द्वारा 3 मोबाइल, दो प्री-एक्टिवेटेड सिम कार्ड और चेकबुक की बरामदगी को गढ़ा गया और उसके वकील ने दावा किया कि आवेदक के अकाउंट में कोई लेनदेन नहीं हुआ।
उसका यह भी तर्क था कि अपराधों की सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। इसके लिए अधिकतम 7 साल की सजा हो सकती है। उसे केवल सह-आरोपी के बयान के आधार पर मामले में नहीं फंसाया जा सकता।
अंत में, यह तर्क दिया गया कि वह 7 मई, 2024 से जेल में है। यद्यपि आरोप पत्र 27 जून, 2024 को दायर किया गया, उसके खिलाफ आरोप अभी तक तय नहीं किए गए। चूंकि अरेस्ट में पूछताछ अब आवश्यक नहीं है, इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए।
दूसरी ओर, राज्य के एजीए ने इस आधार पर उसकी जमानत याचिका का विरोध किया कि पीड़ित सीनियर सिटीजन के बैंक अकाउंट से निकाले गए 1.48 करोड़ में से 62 लाख रुपये की राशि संधू एंटरप्राइजेज अकाउंट में ट्रांसफर कर दी गई, जिसे सह-आरोपी अमर पाल सिंह और उनकी पत्नी द्वारा चलाया जाता था।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवेदक से बरामद सिम संधू एंटरप्राइजेज के बैंक अकाउंट से जुड़ा पाया गया, जिसके कारण उसे इस मामले में फंसाया गया।
यह भी अवगत कराया गया कि सह-आरोपी अमर पाल सिंह, करण प्रीत, अमर पाल सिंह की पत्नी, देवेंद्र कुमार उर्फ देव रॉय फरार हैं, और उनके खिलाफ जांच चल रही है।
इस पृष्ठभूमि में यह देखते हुए कि आवेदक के खिलाफ अभी तक आरोप तय नहीं किए गए, अन्य सह-आरोपियों के खिलाफ जांच अभी भी चल रही है, अदालत ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया।
केस टाइटल- निशांत रॉय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 26