दीवानी या आपराधिक प्रक्रिया में स्थगन छह माह से अधिक अवधि के लिए नहीं; इससे आगे स्थगन की अनुमति सिर्फ स्पीकिंग आर्डर में ही : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

28 March 2018 10:02 PM IST

  • दीवानी या आपराधिक प्रक्रिया में स्थगन छह माह से अधिक अवधि के लिए नहीं; इससे आगे स्थगन की अनुमति सिर्फ स्पीकिंग आर्डर में ही : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी लंबित मामलों में जहाँ दीवानी या आपराधिक मामलों में स्थगन प्रभावी है, हर मामले में स्थगन की यह अवधि आज से छह महीना बीत जाने के बाद समाप्त हो जाएगी बशर्ते कि अपवादस्वरूप किसी मामले में स्पीकिंग आर्डर में इसकी अनुमति दी गई हो।

    न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोएल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि भविष्य में जब भी स्थगन की अनुमति दी जाती है, छह महीने की अवधि के बीत जाने पर यह समाप्त हो जाएगी।

    पीठ ने एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ़ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन के मामले में दो जजों की पीठ द्वारा दिए गए संदर्भ पर जबाव देते हुए यह बात कही। यह मामला भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अभियोग निर्धारित करने के आदेश को चुनौती पर हाई कोर्ट द्वारा गौर करने के न्यायिक अधिकार क्षेत्र और इन मामलों में स्थगन देने से संबंधित है।

    अपने फैसले में न्यायमूर्ति गोएल ने अपने और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की ओर से कहा कि हाई कोर्ट को यह अधिकार है और इसके बाद यह भी बताया कि कैसे इस अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है और कब स्थगन दिया जा सकता है।

    पीठ ने कहा, “अगर यह मान भी लिया जाए कि यह हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है और वह अभियोग निर्धारित करने के आदेश को चुनौती देने के मामले की विशेष परिस्थिति में सुनवाई कर सकता है ताकि अगर कोई गलती हुई है तो उसे दूर किया जा सके, तो भी इस तरह के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग सिर्फ विरलों में विरल मामले में ही हो सकता है। और अगर इस तरह के मामले की सुनवाई की जाती है तो इस पर निर्णय में कतई देरी नहीं होनी चाहिए। यद्यपि इसके लिए आवश्यक रूप से किसी तरह की समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती है, सामान्य रूप से यह दो–तीन महीने से आगे नहीं जाना चाहिए। अगर स्थगन की अनुमति दी जाती है, तो यह बिना शर्त या अनिश्चित काल के लिए नहीं होनी चाहिए। यह स्थगन सशर्त होनी चाहिए ताकि जिस पक्ष को स्थगन का लाभ दिया गया है उसे उस स्थिति में उत्तरदायी ठहराया जा सके अगर बाद में कोर्ट को इस मामले में कोई मेरिट नजर नहीं दिखाई देता है और दूसरे पक्ष को इसकी वजह से घाटा और अन्याय नहीं झेलना पड़े। आपराधिक मामलों में न्याय शीघ्र दिलाने के लिए विधाई नीति और अनुच्छेद 21 को कार्यरूप देने के लिए अगर कोई स्थगन दिया जाता है, तो मामले की सुनवाई हर दिन होनी चाहिए और दो-तीन महीने के भीतर इसे पूरी कर लेनी चाहिए।  अगर कोई मामला ज्यादा समय के लिए लंबित रहता है तो स्थगन का आदेश छह माह की अवधि के समाप्त होने के बाद ख़त्म हो जाएगा बशर्ते कि असाधारण स्थिति को देखते हुए इसे विस्तार न दिया गया हो। इस समयावधि को इसलिए निर्धारति किया जा रहा है ताकि इस तरह की सुनवाई सामान्य रूप से एक से दो वर्षों में पूरी की जा सके”।

    पीठ ने इसी संदर्भ में निर्देश जारी किए हैं।

    “स्पीकिंग आर्डर” के बारे में विस्तार से बताते हुए पीठ ने कहा, “स्पीकिंग आर्डर को यह अवश्य ही बताना चाहिए कि मामला इतना महत्त्वपूर्ण था कि स्थगन का जारी रहना सुनवाई को पूरा करने से ज्यादा जरूरी था। जिस सुनवाई अदालत में स्थगन का आदेश पेश किया गया वह एक ऐसी तिथि निर्धारित कर सकता है जो कि छह महीने से अधिक नहीं हो ताकि इस अवधि के पूरा हो जाने के बाद इसकी कार्यवाही शुरू हो सके बशर्ते कि इसके आगे और स्थगन का आदेश पेश नहीं किया जाता है।

    आदेश में पीठ ने कहा, “...हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर प्रतिबन्ध नहीं है भले ही वह सीआरपीसी की धारा 397 हो या 482 या अनुच्छेद 227 ही क्यों न हो। हालांकि, उक्त न्यायिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग विधाई नीति के अनुरूप होना चाहिए ताकि मामले की सुनवाई शीघ्रता से हो सके। ...इस तरह किसी अभियोग के खिलाफ आदेश को चुनौती पर विरलों में भी विरल मामले में गौर किया जाना चाहिए और वो भी क्षेत्राधिकार की गलती को ठीक करने के लिए। अगर इस तरह की चुनौती पर गौर किया जाता है और स्थगन का आदेश दिया जाता है, तो भी मामले की हर दिन सुनवाई होनी चाहिए ताकि यह न हो कि स्थगन अनावश्यक रूप से लंबे समय तक चले...”


     
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