सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में सभी खनन कंपनियों की लीज रद्द की [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
7 Feb 2018 2:32 PM IST
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने एक बडा कदम उठाते हुए गोवा में खनन करने वाली सभी 88 कंपनियों की लीज रद्द कर दी। इन सभी की लीज का गोवा सरकार ने 2014-2015 में नवीनीकरण कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को NGO गोवा फाउंडेशन की याचिका पर आदेश सुनाते हुए इसे कानून में बुरा बताया और निर्देश दिया कि 15 मार्च के बाद कोई भी कंपनी खनन नहीं करेगी। कोर्ट ने कहा कि गोवा सरकार का दोबारा लीज देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कानून का उल्लंघन है। कोर्ट ने इन लीज के लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गए अनापत्ति प्रमाण पत्र को भी रद्द कर दिया।
बेंच ने कहा कि 2015 में लाए गए नए कानून के तहत गोवा सरकार फिर से नीलामी की प्रक्रिया के तहत ये लीज जारी करे और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को नया पर्यावरण NOC देना होगा। कोर्ट ने सभी कंपनियों को 15 मार्च तक खनन कार्य बंद करने को कहा है और कहा है कि पहले से गठित SIT जल्द अपनी जांच पूरी करे।
दरअसल दिसंबर 2014 और जनवरी 2015 के बीच गोवा सरकार ने 88 कंपनियों की लीज का दोबारा नवीनीकरण किया था और जनवरी 2015 में ही गोवा सरकार ने खनन के लिए नया कानून पास किया जिसके मुताबिक इसके लिए नीलामी को अनिवार्य कर दिया था।
मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आदेश में कुछ तकनीकी वजहों से लीज को अनुमति दे दी थी और फिर NGO ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। नवंबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने गोवा सरकार को कहा कि वह खुद पर लगे इस आरोप का औपचारिक रूप से जवाब दे। एनजीओ गोवा फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि गोवा सरकार का यह कदम 2014 में उच्चतम न्यायालय के फैसले का भी उल्लंघन है, जिसमें अदालत ने राज्य में नए सिरे से लीज देने और शाह कमीशन की रिपोर्ट में दोषी बताए गए पक्षों को लीज का नवीनीकरण ना करने को कहा था। दरअसल शाह कमीशन ने गोवा में अवैध माइनिंग के मामलों की जांच की थी।एनजीओ ने लौह अयस्क की माइनिंग से जुड़ी लीज को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और कोर्ट ने इन लीज को खारिज कर दिया था।
एनजीओ ने दावा किया कि इससे राज्य सरकार को स्टांप ड्यूटी के रूप में महज 15 पर्सेंट रॉयल्टी मिलेगी जबकि सरकारी खजाने को करीब 79,836 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
एनजीओ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि ये लीज 50 सालों से चल रही हैं और इन्हें 2007 में खत्म माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इन लीज को बढाने का काम असाधारण स्थितियों में ही किया जा सकता है और इसकी वजहें लिखित तौर पर बतानी होंगी।
भूषण ने 2015 में राज्य सरकार की ओर से जारी माइनिंग ऑर्डिनेंस के तहत बनाए गए ऑक्शन नियम और 2जी केस में प्रेसिडेंशियल रेफरेंस जजमेंट का हवाला देकर दावा किया कि जिन प्राकृतिक संसाधनों की तंगी हो, उन्हें किसी न किसी तरह की प्रतिस्पर्धा और नीलामी के बिना प्राइवेट कंपनियों को नहीं दिया जा सकता है।
एनजीओ ने आरोप लगाया था कि 14 सितंबर 2014 को जिस आदेश के जरिए सभी पर्यावरण मंजूरियों को सरकार द्वारा निलंबित किया गया था, उन्हें 20 मार्च 2015 के एक आदेश के जरिए बहाल कर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया। राज्य सरकार ने 10 सितंबर 2012 को हर तरह के खनन पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद इसे हटा लिया गया।