राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, पंजाब का सातवां दीक्षांत समारोह, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को मानद उपाधि प्रदान
Praveen Mishra
24 Dec 2025 12:19 PM IST

राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ (RGNUL), पंजाब ने दिनांक 23 दिसंबर, 2025 को अपना 7वां दीक्षांत समारोह सफलतापूर्वक आयोजित किया। इस अवसर पर 2023, 2024 एवं 2025 बैच के सभी कार्यक्रमों के कुल 725 छात्रों को, व्यक्तिगत रूप से एवं अनुपस्थिति में, डिग्रियां प्रदान की गईं। इसके अतिरिक्त 2 एलएल.डी. तथा 9 पीएचडी शोधार्थियों को भी उपाधियां प्रदान की गईं।
विश्वविद्यालय ने न्याय वितरण प्रणाली में उत्कृष्ट योगदान के लिए जस्टिस पंकज मिथल, सुप्रीम कोर्ट, को डॉक्टर ऑफ लॉज़ (मानद उपाधि) से सम्मानित किया। इसी प्रकार, न्यायपालिका एवं विधि के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जस्टिस राजेश बिंदल, सुप्रीम कोर्ट, को भी डॉक्टर ऑफ लॉज़ (मानद उपाधि) प्रदान की गई।
इस दीक्षांत समारोह की शोभा जस्टिस सूर्यकांत, भारत के मुख्य न्यायाधीश, ने बढ़ाई तथा उन्होंने दीक्षांत भाषण दिया। अपने प्रेरक और विचारोत्तेजक संबोधन में उन्होंने स्नातक छात्रों से संवैधानिक मूल्यों की रक्षा, समाज सेवा के प्रति प्रतिबद्धता, तथा राष्ट्र निर्माता और भारत के संवैधानिक भविष्य के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक पीढ़ी को गणतंत्र एक अधूरे रूप में विरासत में मिलता है और उसे अपने कर्मों से उसका भविष्य गढ़ना होता है। जस्टिस सूर्यकांत ने रेखांकित किया कि संविधान की वास्तविक शक्ति केवल न्यायिक व्याख्याओं या संस्थागत ढांचे में नहीं, बल्कि वकीलों के आचरण और मूल्यों में निहित है।
उन्होंने “केस बनाने वालों” और “राष्ट्र निर्माताओं” के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कानूनी पेशे को केवल तात्कालिक सफलता या प्रक्रियात्मक दक्षता तक सीमित करने के प्रति सावधान किया। उन्होंने कहा कि पेशेवर क्षमता आवश्यक है, परंतु वकीलों को अपने कार्यों के न्याय, निष्पक्षता और न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों पर भी विचार करना चाहिए। उनके अनुसार, राष्ट्र-निर्माता वकील तात्कालिक जीत से आगे देखकर यह समझता है कि उसके अभ्यास से किस प्रकार की प्रणाली सुदृढ़ हो रही है।
तेजी से बदलते भारत में उभरती चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि आज के कानूनी विवाद प्रौद्योगिकी, डिजिटल संपत्तियों, पर्यावरणीय चिंताओं तथा सीमा-पार जटिलताओं से जुड़े हैं। ऐसे परिदृश्य में वकीलों से केवल बहस या परामर्श ही नहीं, बल्कि कानून में नवाचार, उसकी व्याख्या और मानवीयकरण की भी अपेक्षा की जाती है। उन्होंने कहा कि न्यायिक सुधारों और आधुनिकीकरण का वास्तविक लाभ तभी मिलेगा, जब युवा वकील इन्हें ज़मीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करेंगे।
एक सार्थक और टिकाऊ कानूनी करियर के लिए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने तीन आवश्यक स्तंभ—ईमानदारी, करुणा और जिज्ञासा—बताए। उन्होंने ईमानदारी को न्याय प्रणाली की संस्थागत रीढ़ बताया और कहा कि नैतिक आचरण तथा नैतिक साहस के बिना जनता का विश्वास संभव नहीं। करुणा को उन्होंने कानून के विपरीत नहीं, बल्कि उसके प्रभावी संचालन के लिए अनिवार्य बताया—क्योंकि जब न्याय मानवीय सच्चाइयों की अनदेखी करता है, तो वह यांत्रिक हो जाता है। तीसरे स्तंभ जिज्ञासा पर ज़ोर देते हुए उन्होंने छात्रों को जीवन भर सीखते रहने, तकनीक का जिम्मेदारी से उपयोग करने और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया कि तकनीकी उपकरण न्याय के सेवक बने रहें, उसके विकल्प नहीं। अंत में उन्होंने छात्रों को आशीर्वाद देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
इस अवसर पर जस्टिस शील नागू, मुख्य न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय तथा RGNUL के चांसलर, ने अपने संबोधन में जुनून, समर्पण, ईमानदारी और नैतिक साहस के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कानून का उद्देश्य बहस जीतना नहीं, बल्कि न्याय प्रदान करना है। साथ ही, उन्होंने पूर्व छात्रों से अपने शिक्षण संस्थान से जुड़े रहने और उसकी प्रतिष्ठा एवं विकास में योगदान देने का आह्वान किया।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) जय शंकर सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और विश्वविद्यालय की प्रमुख उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए देश के विकास में कानूनी शिक्षा की भूमिका को रेखांकित किया।
कार्यक्रम में अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे, जिनमें जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, जस्टिस वसीम सादिक नरगल, जस्टिस रमेश कुमारी, जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन, जस्टिस मंजरी नेहरू कौल, जस्टिस रंजीत सिंह, एम.एस. बेदी, राकेश गुप्ता सहित जनरल काउंसिल, एग्जीक्यूटिव काउंसिल, एकेडमिक काउंसिल, फाइनेंस कमेटी के सदस्य तथा RGNUL के संकाय और कर्मचारीगण शामिल थे।

