पक्षकारों द्वारा यथास्थिति आदेश का उल्लंघन करने पर अंतरिम आदेश रद्द करने के बजाय अवमानना कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
1 Feb 2024 10:54 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐसे मामले में, जहां मुकदमे के परिसर पर कब्जे के लिए यथास्थिति आदेश का जानबूझकर उल्लंघन किया गया, माना कि यह सिविल अवमानना के समान है। इस प्रकार, निष्पादन कार्यवाही पर रोक हटाने के बजाय न्यायालय ने माना कि अवमानना कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने फैसला सुनाया।
मूलतः, ट्रस्ट ने अन्य बातों के अलावा, रजिस्टर्ड सोसायटी के विरुद्ध कब्ज़ा वापस पाने के लिए मुकदमा दायर किया। गौरतलब है कि परिसर पर कब्जा सोसायटी का था। ट्रायल कोर्ट ने मुकदमे का फैसला ट्रस्ट के पक्ष में सुनाया। इसके बाद ट्रस्ट द्वारा निष्पादन की कार्यवाही शुरू की गई।
सोसायटी ने कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष अपील में इस फैसले को चुनौती दी। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने निष्पादन कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश पारित किया। ऐसा करते समय न्यायालय ने सोसायटी को कब्जे के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। इसके अलावा, सोसायटी को किसी तीसरे पक्ष का हित पैदा करने से भी बचना था।
हालांकि, सोसाइटी ने मुकदमा परिसर को छोड़ दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसके खिलाफ अवमानना कार्यवाही हुई। डिवीजन बेंच ने कहा कि सोसायटी को 6,000/- रुपये किराया का भुगतान करने के बाद सूट परिसर में एक प्रदर्शनी आयोजित की गई।
न्यायालय ने माना कि सोसायटी ने तीसरे पक्ष को छोटी अवधि के लिए लाइसेंस दिए। इस प्रकार जानबूझकर स्थगन आदेश का उल्लंघन किया गया। हालांकि, बेंच ने अवमानना के लिए कार्यवाही शुरू करने के बजाय निष्पादन कार्यवाही पर रोक हटा दी।
इस आदेश को चुनौती देते हुए अवमाननाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यह तर्क दिया गया कि अवमानना क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए स्थगन आदेश हटाना हाईकोर्ट के लिए खुला नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
न्यायालय ने यह देखने के लिए कई निर्णयों पर भरोसा किया कि अपने आदेशों की अवज्ञा करने के लिए किसी अवमाननाकर्ता को दंडित करने के अलावा, न्यायालय यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि ऐसा अवमाननाकर्ता अपनी अवज्ञा के लाभों का आनंद लेना जारी न रखे।
संदर्भित उदाहरणों में बारानागोर जूट फैक्ट्री पीएलसी मजदूर संघ (BMS) बनाम बारानागोर जूट फैक्ट्री पीएलसी, (2017) 5 एससीसी 506 भी शामिल है। इसमें यह माना गया कि न्यायालय को न्यायालय के आदेश के उल्लंघन में किए गए कार्यों को सुधारने के लिए उचित निर्देश जारी करना चाहिए। इस संबंध में न्यायालय कार्यवाही के किसी भी चरण में प्रतिबंधात्मक उपाय भी कर सकता है।
इससे संकेत लेते हुए न्यायालय ने कहा कि अवमानना क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए स्थगन आदेश हटाना न तो पुनर्स्थापनात्मक है और न ही उपचारात्मक चरित्र का है।
कोर्ट ने समझाया,
“हाईकोर्ट के अनुसार, स्थगन आदेश में यथास्थिति का उल्लंघन पूर्ण है और स्थगन आदेश को हटाने से पक्षकारों को उनकी मूल स्थिति में बहाल करने या अवमाननाकर्ता को अवज्ञा के लाभ से वंचित करने का प्रभाव नहीं पड़ा। पहले ही निष्कर्ष निकाला जा चुका है।''
न्यायालय ने माना कि यथास्थिति आदेश का उल्लंघन करने वाला कृत्य न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत 'सिविल अवमानना' है। न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने अपने अवमानना क्षेत्राधिकार के दायरे और सीमा का उल्लंघन किया है। इस प्रकार, अदालत ने विवादित आदेश रद्द करते हुए मामला हाईकोर्ट में भेज दिया।
कोर्ट ने आगे कहा,
“हालांकि, हाईकोर्ट ने इस गलत धारणा के कारण अवमानना क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से परहेज किया। स्थगन आदेश में यथास्थिति की स्थिति का जानबूझकर उल्लंघन करने के लिए अवमाननाकर्ता को दोषी पाए जाने के बावजूद, हम मामले को जारी रखने के लिए हाईकोर्ट को भेजना उचित समझते हैं। उस अभ्यास के साथ हमने अब वैकल्पिक रूप से हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई कार्रवाई के तरीके को अलग किया।''
इन तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली।
केस टाइटल: अमित कुमार दास संयुक्त सचिव बनाम हुथीसिंह टैगोर चैरिटेबल ट्रस्ट (एकमात्र प्रतिवादी), डायरी नंबर- 40480 - 2014
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