दहेज की मांग सिद्ध न होने पर धारा 304बी के तहत दहेज हत्या के लिए दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती : सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

10 Sep 2024 9:51 AM GMT

  • दहेज की मांग सिद्ध न होने पर धारा 304बी के तहत दहेज हत्या के लिए दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या (आईपीसी की धारा 304-बी के तहत) के लिए दोषसिद्धि खारिज की। कोर्ट ने यह देखते हुए दोषसिद्धि खारिज की कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि मृतक पत्नी को दहेज की मांग के सिलसिले में उसकी मृत्यु से ठीक पहले पति द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था।

    कोर्ट ने मृतक के पति, ननद और सास की दोषसिद्धि खारिज की। निचली अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने भी मंजूरी दे दी।

    दोषसिद्धि खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि मृतक पत्नी को उसके पति और ससुराल वालों द्वारा कथित तौर पर दहेज की मांग के सिलसिले में क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, तब तक आईपीसी की धारा 304-बी के तहत दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती।

    जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की खंडपीठ ने राजिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2015) के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जहां न्यायालय ने आईपीसी की धारा 304बी के तत्वों पर इस प्रकार चर्चा की थी:

    "ऐसे चार तत्व हैं और उन्हें इस प्रकार कहा गया: (ए) महिला की मृत्यु किसी जलने या शारीरिक चोट के कारण हुई होगी या उसकी मृत्यु सामान्य परिस्थितियों के अलावा किसी अन्य कारण से हुई होगी; (बी) ऐसी मृत्यु उसकी शादी के सात साल के भीतर हुई होगी; (सी) उसकी मृत्यु से ठीक पहले, उसके पति या उसके पति के किसी रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया गया होगा; और (डी) ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न दहेज की मांग के संबंध में होना चाहिए।"

    अभिलेख पर प्रस्तुत सामग्री, विशेषकर अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही को ध्यान से देखने पर न्यायालय ने पाया कि "इन गवाहों ने यह नहीं कहा कि ऐसी क्रूरता और उत्पीड़न दहेज की मांग के संबंध में था।"

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "दहेज की मांग के संबंध में उन्होंने केवल कुछ सामान्य कथन दिए , जो अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 304बी के तहत दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।"

    न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1982 की धारा 113बी के तहत दहेज मृत्यु की धारणा बनाते समय त्रुटि की है।

    न्यायालय ने कहा,

    "ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी के तहत अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 304बी के तहत दोषी ठहराने के लिए धारणा बनाई। हाईकोर्ट ने इस प्रश्न पर विचार नहीं किया कि क्या साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी पर भरोसा करके निचली अदालत सही है।"

    न्यायालय ने कहा कि विवाह के सात वर्ष के भीतर वैवाहिक घर में मृतक की अप्राकृतिक मृत्यु मात्र आईपीसी की धारा 304बी और 498ए के तहत अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगी, जब तक कि अभियोजन पक्ष यह साबित न कर दे कि दहेज की मांग के संबंध में मृतक के साथ उसकी मृत्यु से ठीक पहले क्रूरता की गई। (चरण सिंह @ चरणजीत सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य, 2023 लाइवलॉ एससी 341 का संदर्भ दिया गया)

    कोर्ट ने माना,

    "इसलिए हमारा मत है कि यह भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी के तहत दहेज हत्या का मामला नहीं है। पीडब्लू-1 और पीडब्लू-3 ने केवल यह कहा कि मृतक उन्हें अपने साथ हुई यातना के बारे में बताती थी। पीडब्लू-4 (मृतक की मां) ने विवाह के बाद दहेज की किसी भी मांग के बारे में नहीं बताया। इसके अलावा, इस गवाह ने कहा कि अपीलकर्ता नंबर 2 उसकी मृतक बेटी के साथ मारपीट करता था, क्योंकि मृतक को अपीलकर्ता नंबर 2 के किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध पर आपत्ति थी। पीडब्लू-16, जो मृतक का चचेरा भाई है, उन्होंने पीडब्लू-1, 3 और 4 की गवाही के लगभग एक साल बाद अदालत में गवाही दी और दहेज की मांग के सिलसिले में मृतक के साथ शारीरिक मारपीट के बारे में उसकी गवाही भी विश्वसनीय नहीं है। उपरोक्त बातों पर विचार करते हुए हमारे विचार में ट्रायल कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 बी के तहत अनुमान लगाने में गलती की, भले ही दहेज की मांग साबित नहीं हुई।"

    चूंकि आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने और आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता का मामला पति के खिलाफ बनाया गया, इसलिए इन दो प्रावधानों के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी गई। हालांकि, आईपीसी की धारा 304 बी के तहत दोषसिद्धि खारिज की गई, क्योंकि अभियोजन पक्ष द्वारा दहेज हत्या के लिए कोई मामला नहीं बनाया गया। धारा 306 और 498 ए के तहत अपराधों के संबंध में कोर्ट ने अपीलकर्ता नंबर 2 (पति) को दोषी ठहराया और उसे प्रत्येक मामले में तीन साल के कठोर कारावास और 25000/- रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।

    केस टाइटल: चाबी करमाकर और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, आपराधिक अपील नंबर 1556/2013

    Next Story