'आपके पास लोगों को खंभे से बांधने और पीटने अधिकार कैसे है?' : सुप्रीम कोर्ट ने खेड़ा में मारपीट में शामिल गुजरात पुलिस के अधिकारियों से पूछा

LiveLaw News Network

23 Jan 2024 8:56 AM GMT

  • आपके पास लोगों को खंभे से बांधने और पीटने अधिकार कैसे है? : सुप्रीम कोर्ट ने खेड़ा में मारपीट में शामिल गुजरात पुलिस के अधिकारियों से पूछा

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (23 जनवरी) को उन चार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर रोक लगा दी, जिन्हें गुजरात के खेड़ा में सार्वजनिक रूप से मुस्लिम युवकों की पिटाई में शामिल होने के दोष में पिछले साल अक्टूबर में गुजरात हाईकोर्ट ने 14 दिनों की कैद की सजा सुनाई थी।

    ज‌स्टिस बीआर गवई और ज‌स्टिस संदीप मेहता की पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट के 19 अक्टूबर के आदेश के खिलाफ अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 19 के तहत पुलिस अधिकारियों एवी परमार, डीबी कुमावत, लक्ष्मणसिंह कनकसिंह डाभी और राजूभाई डाभी की ओर से दायर वैधानिक अपील को स्वीकार कर लिया। ज‌स्टिस गवई ने सुनवाई के दौरान कहा, "यह एक वैधानिक अपील है। इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।"

    मामले में पांच मुस्लिम युवकों ने हिरासत में यातना पर डीके बसु दिशानिर्देशों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उन्हें सर्वाजनिक रूप से कोड़े मारे गए ‌थे। हाईकोर्ट ने उनकी अपील पर अदालत की अवमानना का आरोप लगाया था।

    यह घटना खेड़ा जिले के उंधेला गांव में एक गरबा कार्यक्रम पर पथराव के आरोप में उनकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद हुई। हाईकोर्ट ने इन पुलिस अधिकारियों को 14 दिनों की अवमानना ​​की सजा दी गई थी। सा‌थ ही उन्हें फैसले को चुनौती देने की अनुमति देने के लिए तीन महीने के लिए निष्पादन पर रोक लगाने पर सहमति भी व्यक्त की।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ अपील की वैधानिक प्रकृति को देखते हुए मामले को स्वीकार करने पर सहमत हो गई, हालांकि उसने पुलिस अधिकारियों को उनके आचरण के लिए आड़े हाथों लिया।

    ज‌स्टिस मेहता ने कहा, "ये कैसा अत्याचार है, और फिर आप इस अदालत की ओर से देखते हैं...लोगों को खंभों से बांधते हैं, सार्वजनिक रूप से उनकी पिटाई करते हैं।"

    दोषी अधिकारियों की ओर से पेश होते हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने अदालत को सूचित किया कि उनके मुवक्किल पहले से ही आपराधिक अभियोजन, विभागीय कार्यवाही के साथ-साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच का सामना कर रहे हैं। उन्होंने अवमानना मामले में उनके खिलाफ आगे बढ़ने के लिए हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया। उन्होंने दलील दी कि डीके बसु मामले में अदालत के आदेश की 'जानबूझकर अवज्ञा' नहीं की जा सकती।

    ज‌स्टिस गवई ने इस बिंदु पर पूछा, "तो क्या आपके पास कानून के तहत अधिकार है...लोगों को खंभों से बांधने और उन्हें पीटने का?"

    ज‌स्टिस मेहता ने टिप्पणी की, "और वीडियो बनाने का?"

    दवे ने जोर देकर कहा कि सवाल अभियुक्त के दोषी होने के बारे में नहीं है, बल्कि हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र के बारे में है।

    मुस्लिम युवकों को 24 घंटे से अधिक समय तक अवैध हिरासत में रखने के हाईकोर्ट के निष्कर्ष की आलोचना करते हुए दवे ने तर्क दिया, "यह निष्कर्ष एक मुकदमे के अधीन है। अवमानना ​​क्षेत्राधिकार के तहत, उन पर किसी अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है... मान लीजिए कि बाद में इसका पता चलता है कि वे अवैध हिरासत में नहीं थे।"

    निजी शिकायत की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर सीनियर एडवोकेट आईएच सैयद ने बताया कि हालांकि निजी शिकायत लंबित थी, डीके बसु के फैसले के अनुसार, अवमानना के आरोप विभागीय कार्यवाही और आपराधिक अभियोजन के बावजूद, स्वतंत्र थे। उन्होंने यह भी तर्क दिया, "वे बस यह कह रहे हैं कि यह जानबूझकर नहीं किया गया है। इसके अलावा, उनके पास कोई मामला नहीं है।"

    दवे ने विरोध करते हुए कहा, "मैं इस पर विवाद कर रहा हूं।"

    सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने अपील स्वीकार कर ली और सुनवाई तेज़ करने का निर्देश दिया। अवमानना मामले में हाईकोर्ट के अपने आदेश पर रोक की अवधि बढ़ाने के दवे के अनुरोध पर ज‌स्टिस गवई ने शुरू में कहा, "हिरासत का आनंद लें। आप अपने ही अधिकारियों के अतिथि होंगे। वे आपको विशेष उपचार प्रदान करेंगे।"

    हालांकि, शीर्ष अदालत ने अनुरोध स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट के समक्ष अवमानना कार्यवाही पर रोक लगा दी।

    पृष्ठभूमि

    विचाराधीन घटना 3 अक्टूबर, 2022 को गुजरात के खेड़ा जिले में एक गरबा कार्यक्रम के दौरान हुई थी। घटना के वीडियो क्लिप में पुलिस अधिकारियों को कार्यक्रम में बाधा डालने के आरोपी व्यक्तियों को कोड़े मारते हुए दिखाया गया था। अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले पीड़ितों ने 13 पुलिस कर्मियों के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की, जिसमें कोड़े मारने और अवैध हिरासत में रखने का आरोप लगाया गया। उन्होंने हिरासत में यातना पर डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में उल्लिखित सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का इस्तेमाल किया और अपने अधिकारों के उल्लंघन के लिए मुआवजे की मांग की।

    नडियाद में एक मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट के बाद, गुजरात हाईकोर्ट ने उन चार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इन कार्यवाहियों के कारण अंततः 19 अक्टूबर, 2023 को उन्हें दोषी ठहराया गया। सुप्रीम कोर्ट के डीके बसु फैसले का उल्लंघन करने के लिए चार पुलिस अधिकारियों को अदालत की अवमानना ​​करने का दोषी पाते हुए, हाईकोर्ट ने उन्हें 14 दिनों के साधारण कारावास की सजा सुनाई। प्रत्येक अधिकारी पर 2000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया, जिसे जमा नहीं करने पर उनकी सजा में तीन दिन की सजा जोड़ी जानी है।

    केस डिटेलः एवी परमार और अन्य बनाम गुजरात राज्य और अन्य | डायरी नंबर 1671/2024

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