'आपके पीछे कौन है? वीसी का दुरुपयोग न करें': सुप्रीम कोर्ट ने महिला वादी से पूछा; उसे कानूनी सहायता और शारीरिक रूप से पेश होने के लिए यात्रा खर्च की पेशकश की
Avanish Pathak
23 July 2025 4:10 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (23 जुलाई) को एक महिला पक्षकार ने व्यक्तिगत रूप से बहत की, कहा- "अगर मैं वर्चुअल माध्यम से पेश होती हूं तो इसमें क्या समस्या है?"
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ याचिकाकर्ता की ओर से दायर एक विविध आवेदन पर विचार कर रही थी। जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि कानूनी सहायता और यात्रा व्यय की पेशकश के बावजूद, वह अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होकर बहस क्यों नहीं कर सकती।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसे अपने परिवार में किसी की देखभाल करनी है, वह दूर रहती है और किसी व्यवसाय में लगी हुई है। उसने यह भी बताया कि उसने ऑडियो संबंधी उन समस्याओं को ठीक करवा लिया है जिनकी वजह से पिछली तारीखों पर कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हो पाई थी।
हालांकि, जस्टिस दत्ता ने कहा कि जब भी अदालत उससे कुछ पूछती, याचिकाकर्ता किसी और की तरफ देखती रहती थी।
जज ने याचिकाकर्ता से पूछा,"आजीविका ज़्यादा ज़रूरी है या आप अपने मामले पर बहस करना चाहती हैं? आप जिस मामले पर बहस कर रही हैं, उस पर बहस करने के लिए एक दिन भी नहीं निकाल सकतीं?"
याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि आजीविका ज़्यादा ज़रूरी है। जब जस्टिस दत्ता ने पूछा कि याचिकाकर्ता किसकी ओर देख रही हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि वह सह-याचिकाकर्ताओं की ओर देख रही हैं। हालांकि, बाद में उन्होंने कहा कि वह इस मामले में एकमात्र याचिकाकर्ता हैं। इस पर पीठ ने उन्हें विरोधाभासी बयान देने के प्रति आगाह किया।
जस्टिस दत्ता ने कहा, "आप वर्चुअल इंटरफ़ेस का फ़ायदा उठाना चाहती हैं और अपने पीछे किसी ऐसे व्यक्ति को रखना चाहती हैं, जो हमें दिखाई न दे। हम आपकी व्यक्तिगत रूप से सुनवाई करना चाहेंगे।"
दिलचस्प बात यह है कि पीठ ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता अपनी पसंद के किसी सुप्रीम कोर्ट के वकील का नाम बताए, जिसे उनकी मुफ़्त सहायता के लिए नियुक्त किया जा सके। पीठ ने उन्हें यात्रा खर्च और पूरे दिन सुनवाई का अवसर देने की भी पेशकश की। लेकिन याचिकाकर्ता अपनी बात पर अड़ी रहीं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "मेरी दलीलों में क्या समस्या है? मैं यह समझना चाहती हूं। मैं यह समझना चाहती हूं कि मेरे वीडियो के माध्यम पेश होने में क्या समस्या है।"
जस्टिस दत्ता ने जवाब दिया, "हमें समझ नहीं आ रहा कि आपको यहां आने से क्या रोक रहा है!"
जज ने आगे कहा, "यदि आप चाहते हैं कि आपकी दलीलों पर सुनवाई हो, तो यह व्यक्तिगत रूप से होनी चाहिए। हम आपसे दिल्ली आने का अनुरोध कर रहे हैं। सभी खर्चे NALSA द्वारा वहन किए जाएंगे।"
पीठ ने दो जजों की वाली पीठों द्वारा दिए गए दो फैसलों पर गौर किया, जिनमें कहा गया था कि ललिता कुमारी मामले में पक्षकार न होने वाले व्यक्ति द्वारा अवमानना याचिका दायर नहीं की जा सकती, और याचिकाकर्ता से दोनों फैसलों की सत्यता पर न्यायालय को संबोधित करने को कहा।
जस्टिस कांत ने कहा, "शायद हम आपको यह तर्क देने की अनुमति दे सकते हैं कि उन दो फैसलों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।"
अंत में, न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह बताए गए दोनों फैसलों की सत्यता पर सवाल उठाने के बारे में "अपना मन बना ले"। अदालत के मामले से हटने से पहले उसने जवाब दिया, "मैंने अपना मन बना लिया है।"
ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों पर ललिता कुमारी के फैसले की अवमानना का आरोप लगाया। उसने 20.11.2023 के आदेश को वापस लेने और अपील बहाल करने की मांग की, यह दावा करते हुए कि अदालत ने उसकी बात नहीं सुनी।

