UP Gangsters Act | सख्त कानूनों के तहत FIR दर्ज होने पर सख्त जांच जरूरी : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
13 Feb 2025 5:47 AM

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 फरवरी) को फैसला सुनाया कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट जैसे सख्त कानूनों के तहत दर्ज FIR की सख्त जांच जरूरी है, जिससे संपत्ति या वित्तीय विवादों में इसका दुरुपयोग न हो।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 की अवहेलना सिर्फ आपराधिक अपराध दर्ज होने के आधार पर नहीं की जा सकती। इसके अलावा, इसने फैसला सुनाया कि अधिकारियों को अधिनियम के सख्त प्रावधानों को लागू करने में अप्रतिबंधित विवेक नहीं दिया जा सकता।
कोर्ट ने कहा,
“आखिरकार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को सिर्फ इस वजह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए। अधिनियम को लागू करने की बात आने पर संबंधित अधिकारियों को कोई भी अप्रतिबंधित विवेक देना स्पष्ट रूप से नासमझी होगी। कोई प्रावधान जितना कठोर या दंडात्मक होगा, उसे सख्ती से लागू करने पर उतना ही जोर और आवश्यकता होगी।”
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 (Gangsters Act) के तहत तीन व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि पक्षों के बीच संपत्ति विवाद के कारण Gangsters Act के तहत FIR दर्ज की गई। FIR की सामग्री को पढ़ने पर न्यायालय को ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिससे यह पता चले कि ये व्यक्ति सार्वजनिक धमकी या संगठित अपराध से जुड़ी गैंग गतिविधि में शामिल थे।
जस्टिस अमानुल्लाह द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि Gangsters Act जैसे कड़े कानूनों के तहत अभियोजन की अनुमति देने से पहले न्यायालयों को वैधानिक आवश्यकताओं का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना चाहिए। हाल ही में मोहम्मद रहीम अली @ अब्दुर रहीम बनाम असम राज्य के मामले का संदर्भ दिया गया, जहां न्यायालय ने कहा कि "यदि किसी नागरिक के सामान्य अधिकार के उल्लंघन में विशेष प्रावधान किए जाते हैं तो हमारे विचार में कानून को सख्त रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।"
न्यायालय ने मोहम्मद वाजिद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) के मामले का भी उल्लेख किया और कहा कि न्यायालयों को केवल आरोपों से परे देखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विशेष कानूनों के तहत मामले वैधानिक सीमा को पूरा करते हों।
न्यायालय ने कहा,
“यह मानते हुए कि तीन (या चार, जिसमें FIR में संदर्भित नहीं की गई सीसी भी शामिल है) सीसी में सभी आरोप सही हैं, उक्त सीसी के रजिस्ट्रेशन के बाद अपीलकर्ताओं द्वारा कथित धमकियों को लागू करने/उन पर कार्रवाई करने के किसी भी उदाहरण का उल्लेख नहीं है। शिकायतकर्ता(ओं)/सूचनाकर्ता(ओं) ने भी, जहां आवश्यक हो, सिविल कार्यवाही का सहारा लिया। उपरोक्त से जो समग्र तस्वीर उभरती है, उसमें राज्य द्वारा अधिनियम का सहारा लेना समय से पहले और अनुचित लगता है।”
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ न्यायालय ने अपील को अनुमति दी और अपीलकर्ताओं के खिलाफ मामला रद्द कर दिया।
केस टाइटल: जय किशन और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।