सार्वजनिक संपत्ति को नाममात्र मूल्य पर हस्तांतरित करना मनमाना; राज्य के अधिकार केवल नीलामी/पारदर्शी प्रक्रिया द्वारा ही बेचे जा सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

3 Aug 2024 1:40 PM GMT

  • सार्वजनिक संपत्ति को नाममात्र मूल्य पर हस्तांतरित करना मनमाना; राज्य के अधिकार केवल नीलामी/पारदर्शी प्रक्रिया द्वारा ही बेचे जा सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति/भूमि में राज्य के अधिकारों को केवल निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाकर ही हस्तांतरित किया जा सकता है, जिसके द्वारा राज्य को सर्वोत्तम संभव मूल्य प्राप्त हो।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा,

    “पट्टेदार के रूप में राज्य के अधिकारों को केवल सार्वजनिक नीलामी या किसी अन्य पारदर्शी तरीके से ही बेचा जा सकता है, जिसके द्वारा पट्टेदार के अलावा अन्य लोगों को भी अपनी पेशकश प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त हो। भूखंड को उसके कथित पट्टेदार को नाममात्र मूल्य पर बेचना बिल्कुल भी निष्पक्ष और पारदर्शी तरीका नहीं होगा। यह मनमाना होगा और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।”

    यह मामला नीलामी बिक्री में पट्टेदार के पक्ष में पट्टे पर दी गई भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने से संबंधित है, जबकि पट्टेदार की बोली सबसे अधिक नहीं थी। इसके बजाय, अपीलकर्ता ने ही मुकदमे की भूमि की खरीद के लिए सबसे ऊंची बोली पेश की, लेकिन राज्य ने उसकी बोली को अस्वीकार कर दिया।

    अदालत ने अखिल भारतीय उपभोक्ता कांग्रेस बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य के मामले का संदर्भ दिया, जिसकी रिपोर्ट (2011) 5 एससीसी 29 में दी गई, जिससे यह माना जा सके कि राज्य की कार्रवाई को मनमाना माना जाएगा, यदि मुकदमे की भूमि का लाभ देने के लिए राज्य का कार्य/निर्णय एक ठोस, पारदर्शी, स्पष्ट और अच्छी तरह से परिभाषित नीति पर आधारित नहीं है।

    अखिल भारतीय उपभोक्ता कांग्रेस मामले में अदालत ने कहा,

    "राज्य या उसकी एजेंसियों/संस्थाओं द्वारा किसी भी तरह की भूमि का आवंटन या किसी अन्य तरह की उदारता प्रदान करना मनमाना, भेदभावपूर्ण और पक्षपातपूर्ण और/या भाई-भतीजावाद का कार्य माना जाएगा, जो संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता खंड की आत्मा का उल्लंघन करता है।"

    चूंकि अपीलकर्ता की बोली पहले स्वीकार की गई और बाद में खारिज कर दी गई, इसलिए न्यायालय ने माना कि पूरी प्रक्रिया राज्य के स्वामित्व अधिकारों को पट्टेदार को हस्तांतरित करने की निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया नहीं हो सकती।

    जस्टिस अभय एस ओक द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,

    “हमने पहले ही स्कूल की सबसे ऊंची बोली रद्द करने और कथित पट्टेदार के बेटों की दूसरी सबसे ऊंची बोली को स्वीकार करने के लिए तथ्यों को बताया। उल्लेखनीय है कि विशेष नजूल अधिकारी ने 26 नवंबर 2001 को आदेश पारित किया, जिसके तहत लीजहोल्ड अधिकारों को फ्रीहोल्ड अधिकारों में बदलने के लिए 67,022.21 रुपये तय किए गए। यह राशि 26 नवंबर 2001 के आदेश से लगभग 16 साल पहले स्कूल द्वारा पेश की गई बोली के 10% से भी कम थी। पहली नजर में यह राज्य के स्वामित्व अधिकारों को हस्तांतरित करने की निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया नहीं हो सकती।”

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि नीलामी को 20 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, इसलिए लगभग 20 वर्ष पहले विद्यालय के पक्ष में पारित बोली की स्वीकृति का आदेश बहाल करना अन्यायपूर्ण होगा।

    न्यायालय ने कहा,

    "यदि इस स्तर पर विद्यालय को 20 वर्ष पहले विद्यालय द्वारा प्रस्तावित मूल्य पर भूखंड खरीदने की अनुमति दी जाती है, तो बिक्री उचित नहीं होगी, क्योंकि यह राज्य की संपत्ति है।"

    इसलिए हाईकोर्ट के विवादित निर्णय, जिसके द्वारा कथित पट्टेदार के पक्ष में रूपांतरण के आदेश और रूपांतरण डीड रद्द कर दी गई थी, में हस्तक्षेप नहीं किया गया।

    केस टाइटल: सिटी मॉन्टेसरी स्कूल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, सिविल अपील संख्या 8355/2024

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