अचल संपत्ति में स्वामित्व हस्तांतरण पर सर्विस टैक्स नहीं लगता: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
11 Nov 2025 11:31 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल बिक्री के माध्यम से अचल संपत्ति में स्वामित्व हस्तांतरण से संबंधित गतिविधि को वित्त अधिनियम, 1994 के तहत "सर्विस" नहीं माना जा सकता। परिणामस्वरूप, ऐसे लेनदेन सर्विस टैक्स के दायरे से बाहर हैं।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इलाहाबाद स्थित साझेदारी फर्म मेसर्स एलिगेंट डेवलपर्स के खिलाफ सेवा कर आयुक्त, नई दिल्ली द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। राजस्व विभाग ने कस्टम, एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT) के 2019 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें फर्म के खिलाफ 10 करोड़ रुपये से अधिक के टैक्स मांग खारिज कर दी गई थी।
विभाग ने आरोप लगाया था कि एलिगेंट डेवलपर्स ने विभिन्न राज्यों में भूमि के बड़े भूखंडों के अधिग्रहण और विकास के संबंध में सहारा इंडिया कमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SICCL) को "रियल एस्टेट एजेंट" के रूप में टैक्स योग्य सेवाएं प्रदान की थीं। हालांकि, फर्म ने यह तर्क दिया कि SICCL के साथ उसका लेन-देन ज़मीन की खरीद-बिक्री का था, न कि परामर्श या ब्रोकरेज सर्विसेस का, इसलिए यह सेवा कर के दायरे से बाहर है।
विवाद की पृष्ठभूमि
2002 और 2005 के बीच एलिगेंट डेवलपर्स ने श्रीगंगानगर (राजस्थान), वडोदरा (गुजरात) और कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में ज़मीन खरीदने के लिए SICCL के साथ तीन समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए। इन समझौतों के तहत फर्म ने ज़मीन के समीपवर्ती भूखंडों की खरीद, उचित स्वामित्व सुनिश्चित करने और SICCL के पक्ष में सेल डीड के निष्पादन के लिए भूस्वामियों को पंजीकरण प्राधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया।
SICCL ने फर्म को प्रति एकड़ एक निश्चित औसत दर का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें ज़मीन की लागत और विकास व्यय शामिल थे। फर्म द्वारा व्यक्तिगत भूस्वामियों को भुगतान की गई राशि और SICCL से प्राप्त निश्चित दर के बीच का अंतर उसके लाभ या हानि को दर्शाता था। महत्वपूर्ण बात यह है कि फर्म ने संपूर्ण वित्तीय जोखिम वहन किया। यदि ज़मीन की कीमतें ज़्यादा होतीं तो कंपनी नुकसान वहन करती; यदि कम होतीं तो अंतर को लाभ के रूप में रखती।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क खुफिया महानिदेशालय (DGCEI) ने बाद में इस आधार पर कार्यवाही शुरू की कि एलिगेंट डेवलपर्स ने सेवा कर का भुगतान किए बिना SICCL के लिए अचल संपत्ति के अधिग्रहण और विकास से संबंधित सेवाएं प्रदान की थीं। अक्टूबर, 2004 से मार्च, 2007 की अवधि के लिए लगभग 10.28 करोड़ रुपये का कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसमें कथित तौर पर तथ्यों को छिपाने के आधार पर विस्तारित सीमा अवधि का हवाला दिया गया।
आयुक्त ने 2013 में फर्म के खिलाफ मामले का फैसला सुनाया और उसे वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 65(88) सहपठित धारा 65(105)(v) के तहत "रियल एस्टेट एजेंट" के रूप में वर्गीकृत किया। साथ ही जुर्माने के साथ कर की मांग की पुष्टि की। अपील पर CESTAT ने यह कहते हुए आदेश रद्द कर दिया कि ये लेन-देन ज़मीन की सीधी बिक्री का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके बाद राजस्व विभाग ने मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया।
कोर्ट का निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने समझौता ज्ञापनों की शर्तों, वित्त अधिनियम में दी गई परिभाषाओं और संबंधित प्रतिफल की प्रकृति की जांच की। धारा 65(88) और 65(89) का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कहा कि "रियल एस्टेट एजेंट" या "रियल एस्टेट सलाहकार" वह होना चाहिए, जो अचल संपत्ति की बिक्री, खरीद, पट्टे या प्रबंधन से संबंधित सेवाएं प्रदान करता हो, जिसमें सलाह, परामर्श या तकनीकी सहायता शामिल हो।
इसके बाद खंडपीठ ने वित्त अधिनियम की धारा 65बी(44) के तहत "सर्विस" की परिभाषा का हवाला दिया, जो स्पष्ट रूप से "ऐसी गतिविधि को अपने दायरे से बाहर रखती है, जो केवल बिक्री, उपहार या किसी अन्य तरीके से माल या अचल संपत्ति में स्वामित्व का हस्तांतरण करती है।"
समझौतों का विश्लेषण करते हुए कोर्ट ने पाया कि एलिगेंट डेवलपर्स ने SICCL के एजेंट या मध्यस्थ के रूप में नहीं, बल्कि अपनी ओर से कार्य किया था। यह अपने नाम पर या पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से भूमि की पहचान और खरीद, वित्तीय जोखिम वहन करने और बाद में रजिस्टर्ड सेल डीड के माध्यम से SICCL को स्वामित्व हस्तांतरित करने के लिए जिम्मेदार था।
अदालत ने आगे कहा कि राजस्व विभाग द्वारा ऐसे लेन-देन को "रियल एस्टेट एजेंट" सर्विस के दायरे में लाने का प्रयास गलत है, क्योंकि इसमें परामर्श, सलाह या प्रतिनिधित्व का कोई तत्व शामिल नहीं था।
अदालत ने कहा,
"हमारा दृढ़ मत है कि प्रतिवादी द्वारा SICCL के साथ किए गए लेन-देन/गतिविधियां उसे वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 65(88) और 65(89) के तहत क्रमशः परिभाषित 'रियल एस्टेट एजेंट' या 'रियल एस्टेट सलाहकार' के दायरे में नहीं लातीं। ये लेन-देन सर्विस टैक्स, कमीशन, एजेंसी या परामर्श के लिए नहीं किए गए थे, बल्कि ज़मीन की बिक्री के सीधे-सादे लेन-देन थे, जो ऊपर उल्लिखित 'सर्विस' की परिभाषा के अपवाद खंड के तहत स्पष्ट रूप से संरक्षित हैं।"
कोई दमन नहीं, विस्तारित सीमा लागू नहीं
परिसीमा के प्रश्न पर न्यायालय ने वित्त अधिनियम की धारा 73(1) के प्रावधान के तहत विस्तारित अवधि पर राजस्व विभाग के भरोसे को भी अस्वीकार कर दिया। यह प्रावधान सामान्य अवधि से अधिक कर की वसूली तभी संभव बनाता है, जब टैक्स चोरी के इरादे से जानबूझकर कर छिपाया गया हो, धोखाधड़ी की गई हो या गलत बयान दिया गया हो।
खंडपीठ ने कहा कि प्रतिवादी के लेन-देन उचित दस्तावेज़ीकरण और बैंकिंग माध्यमों से किए गए थे। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि किसी भी महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाया गया हो। कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि जानबूझकर कर छिपाए जाने को साबित करने का दायित्व पूरी तरह से राजस्व विभाग पर है।
कोर्ट ने स्टेमसाइट इंडिया थेरेप्यूटिक्स (प्रा.) लिमिटेड बनाम केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी एवं सर्विस टैक्स आयुक्त मामले में हाल ही में दिए गए निर्णय का हवाला दिया,
"यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि विभाग द्वारा विस्तारित परिसीमा अवधि लागू करने के लिए, करदाता की ओर से टैक्स भुगतान से बचने के लिए एक सक्रिय और जानबूझकर किया गया कार्य होना चाहिए। बिना किसी इरादे या दमन के केवल कर का भुगतान न करना, विस्तारित सीमा अवधि को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है..."
यह मानते हुए कि CESTAT ने सही निष्कर्ष निकाला था कि एलिगेंट डेवलपर्स की गतिविधियां टैक्स योग्य सेवा नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्व विभाग की अपीलों को खारिज कर दिया।
Case : Commissioner of Service Tax v M/s Elegant Developers

