साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 कथन को साबित करने के लिए, जांच अधिकारी को यह बताना होगा कि अभियुक्त ने क्या कहा; केवल ज्ञापन प्रदर्शित करना पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

20 April 2024 7:14 AM GMT

  • साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 कथन को साबित करने के लिए, जांच अधिकारी को यह बताना होगा कि अभियुक्त ने क्या कहा; केवल ज्ञापन प्रदर्शित करना पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चर्चा की है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 27 के तहत किसी आरोपी द्वारा दिए गए प्रकटीकरण बयान को कैसे साबित किया जाए।

    अदालत ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज किया गया आरोपी का बयान मूल रूप से जांच अधिकारी द्वारा पूछताछ के दौरान दर्ज किया गया आरोपी का "स्वीकारोक्ति का ज्ञापन" है, जिसे लिखित रूप में लिया गया। यह कथन केवल उसी सीमा तक स्वीकार्य है जिस सीमा तक इससे नये तथ्यों की खोज होती है।

    इस कथन को साबित करने के तरीके के संबंध में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की खंडपीठ ने कहा:

    "जब जांच अधिकारी इस तरह के प्रकटीकरण बयान को साबित करने के लिए गवाह बॉक्स में कदम रखता है तो उसे यह बताना होगा कि आरोपी ने उससे क्या कहा। जांच अधिकारी अनिवार्य रूप से अपने और आरोपी के बीच हुई बातचीत के बारे में गवाही देता है, जिसे लिया गया है। इसे लिखित रूप में लिखने से आपत्तिजनक तथ्य(तथ्यों) की खोज हो सकती है।"

    फैसले में सुब्रमण्य बनाम कर्नाटक राज्य 2022 लाइव लॉ (एससी) 887 और रामानंद @ नंदलाल भारती बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2022 लाइव लॉ (एससी) 843 के उदाहरणों का उल्लेख किया गया, जिसमें कहा गया कि मुकदमे के दौरान इसकी सामग्री के प्रमाण के लिए केवल स्वीकारोक्ति के ज्ञापन का प्रदर्शन नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने मौजूदा मामले में कहा,

    "शपथ पर गवाही देते समय जांच अधिकारी को उन घटनाओं का क्रम बताना होगा, जो खुलासा बयान दर्ज करने के लिए घटित हुईं।"

    इस मामले में अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने अपने और आरोपी के बीच हुई बातचीत का कोई विवरण नहीं दिया, जिसे प्रकटीकरण बयानों में दर्ज किया गया। इसलिए न्यायालय ने माना कि इन प्रकटीकरण बयानों को साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता और इसके आगे की गई वसूली कानून की नजर में गैर-मान्य है।

    खंडपीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाले तीन दोषियों द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्हें हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया और ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले को पलटते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

    सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों में कई खामियों का हवाला देते हुए सजा रद्द कर दी।

    केस टाइटल: बाबू साहेबगौड़ा रुद्रगौदर और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य

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