सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी : आदेश में छोटी-सी गलती पकड़कर अवमानना नहीं कर सकते अधिकारी

Amir Ahmad

22 Nov 2025 11:55 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी : आदेश में छोटी-सी गलती पकड़कर अवमानना नहीं कर सकते अधिकारी

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट कहा कि उसके आदेश में आई किसी छोटी सी गलती को आधार बनाकर अधिकारियों द्वारा आदेश का पालन न करना बिल्कुल अनुचित है। यह टिप्पणी उस मामले में की गई, जिसमें उत्तर प्रदेश की जेल प्रशासन ने अंडरट्रायल की रिहाई इसलिए 28 दिनों तक रोके रखी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जमानत आदेश में धारा 5 तो लिखी थी लेकिन उप-धारा (i) का उल्लेख छूट गया था। आदेश में अपराध से जुड़ी बाकी सभी जानकारियां स्पष्ट थीं।

    अफताब नामक आरोपी को उत्तर प्रदेश अवैध धार्मिक रूपांतरण निषेध अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उसे अप्रैल में जमानत दी थी लेकिन जेल प्रशासन ने उप-धारा का उल्लेख न होने का हवाला देकर रिहाई में 28 दिन की देरी की।

    जून में सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी पर कड़ी आपत्ति जताई, इसे गंभीर प्रशासनिक चूक माना और राज्य सरकार को अफताब को 5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवज़ा देने का निर्देश दिया। साथ ही घटना की जांच का जिम्मा प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज और सेशन जज गाजियाबाद को सौंपा गया।

    17 नवंबर को जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की खंडपीठ के सामने मामला आया। अदालत यह देखकर हैरान रह गई कि जांच रिपोर्ट ने पूरी ज़िम्मेदारी एडिशनल सेशन एंड सेशन जज पर डाल दी है।

    जस्टिस पारदीवाला ने राज्य की ओर से उपस्थित एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा,

    “सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू करते समय ADJ को कैसे दोषी ठहराया जा सकता है जब आदेश सुप्रीम कोर्ट का है तो एक जज को क्यों जिम्मेदार माना जा रहा है।"

    उन्होंने आगे कहा,

    “सिर्फ इसलिए कि धारा 5 की उप-धारा (i) नहीं लिखी गई। व्यक्ति 28 दिन जेल में कब तक पड़ा रहा और यदि कोई विसंगति थी तो उसे 28 दिनों तक क्यों नहीं सुधारा गया?”

    जस्टिस विश्वनाथन ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से कार्यपालिका द्वारा न्यायिक आदेश को अपने ऊपर बैठकर परखने जैसा है।

    उन्होंने कहा,

    “जब अपराध संख्या, आरोपी का नाम, धाराएं, थाना सबकुछ साफ़ है तो सिर्फ उप-धारा के न होने पर आदेश का पालन न करना एक बेहूदा बहाना है। यदि कार्यपालिका ऐसे बहानों पर आदेश नहीं मानेगी तो न्याय व्यवस्था कैसे चलेगी?”

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतिम आदेश देने से पहले वह संबंधित न्यायिक अधिकारी, जज जुनैद मुजफ्फर का पक्ष सुनना चाहेगी। उन्हें जांच रिपोर्ट का पूरा रिकॉर्ड भेजकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा गया।

    आदेश में कोर्ट ने कहा,

    “जब देश की सुप्रीम कोर्ट वह भी चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ आदेश देती है तो अधिकारी उसके भीतर किसी तुच्छ गलती को पकड़कर अपनी सुविधानुसार उसकी व्याख्या नहीं कर सकते। यह अत्यंत गंभीर मामला है।”

    रजिस्ट्रार को निर्देश दिया गया कि न्यायिक अधिकारी की टिप्पणी जल्द से जल्द बुलाकर रिपोर्ट अदालत के सामने रखी जाए।

    अब मामला 8 दिसंबर को सुना जाएगा।

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