सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य के परिसीमन से जुड़ी 33% महिला आरक्षण की शर्त पर याचिका पर नोटिस जारी किया

Praveen Mishra

10 Nov 2025 5:24 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य के परिसीमन से जुड़ी 33% महिला आरक्षण की शर्त पर याचिका पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम, 2023 — यानी नारी शक्ति वंदन अधिनियम — की उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का प्रावधान अगली जनगणना और उसके बाद परिसीमन (delimitation) पूरी होने के बाद ही लागू किया जाएगा।

    जस्टिस बी.वी. नागरथना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

    सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील ने दलील दी कि आरक्षण को भविष्य की किसी ऐसी प्रक्रिया से जोड़ना, जो अब तक शुरू भी नहीं हुई है, तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने कहा,

    “अब तक कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह प्रक्रिया कब शुरू होगी और कब पूरी होगी। अभी तक जनगणना भी शुरू नहीं हुई है।”

    इस पर जस्टिस नागरथना ने कहा कि किसी कानून को लागू करना कार्यपालिका (Executive) के अधिकार क्षेत्र में आता है।

    इस पर याचिकाकर्ता की वकील ने स्पष्ट किया,

    “हम यह नहीं कह रहे कि अदालत इसे तुरंत लागू करने का आदेश दे। हमारा केवल इतना कहना है कि इसे भविष्य की किसी अनिश्चित प्रक्रिया पर निर्भर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्रक्रिया कब शुरू और पूरी होगी, कोई नहीं जानता।”

    जस्टिस नागरथना ने कहा,

    “हम उनसे केवल यह पूछ सकते हैं कि वे इसे कब लागू करने की योजना बना रहे हैं।”

    उन्होंने यह भी जोड़ा कि,

    “संभव है कि वे इसे वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर करना चाहते हों।”

    वकील ने जवाब दिया कि संसद ने जब एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान किया, तब यह मानकर चलना चाहिए कि वैज्ञानिक डेटा पहले से उपलब्ध था।

    इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्युत्तर पक्षों (Union of India आदि) को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।

    यह याचिका मध्य प्रदेश की कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर द्वारा दाखिल की गई है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 334A(1) में निहित उस शर्त — “जब परिसीमन संबंधित जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया जाएगा” — को शून्य और अवैध (void ab initio) घोषित करने की मांग की गई है, साथ ही महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने की प्रार्थना की गई है।

    याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह महिलाओं को मिलने वाले आरक्षण के लाभ को अनिश्चितकाल के लिए टाल देता है।

    एडवोकेट वरुण ठाकुर के माध्यम से दाखिल याचिका में यह भी कहा गया है कि इससे पहले किए गए कई संवैधानिक संशोधन — जिनमें आरक्षण का प्रावधान था — बिना किसी जनगणना या परिसीमन प्रक्रिया का इंतजार किए तुरंत लागू किए गए थे।

    याचिका में तर्क दिया गया है कि यह “अवरोध” (clog) महिलाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिलाने के उद्देश्य को निष्फल कर देता है, जबकि महिलाएं देश की लगभग 50% जनसंख्या हैं, लेकिन विधायी संस्थाओं में उनका प्रतिनिधित्व केवल लगभग 4% है।

    गौरतलब है कि डॉ. जया ठाकुर द्वारा पहले भी इसी मुद्दे पर एक याचिका दायर की गई थी, जिसे उस समय राष्ट्रपति की स्वीकृति से पहले दायर किए जाने के कारण निरर्थक (infructuous) बताते हुए खारिज कर दिया गया था।

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