IT Rules 2023 के तहत 'Fact Check Unit' को अधिसूचित करने के खिलाफ कुणाल कामरा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई
Shahadat
20 March 2024 11:26 AM IST
सुप्रीम कोर्ट सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023 (आईटी संशोधन नियम 2023) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जो केंद्र सरकार को Fact Check Unit (FCU) बनाने में सक्षम बनाता है।
संशोधन के अनुसार, सोशल मीडिया मध्यस्थों को केंद्र सरकार के व्यवसाय से संबंधित किसी भी जानकारी को हटा देना चाहिए, जिसे FCU ने गलत होने के लिए अधिसूचित किया। ऐसा न करने पर मध्यस्थों को कानूनी देनदारियों का सामना करना पड़ेगा।
इन नियमों को चुनौती देते हुए स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने खंडित फैसला सुनाया, जिसमें जस्टिस जीएस पटेल ने संशोधन रद्द किया, वहीं जस्टिस नीला गोखले ने इसे बरकरार रखा। तीसरे जज, जिनके पास मामला भेजा गया, जस्टिस चंदूरकर ने भी संशोधन बरकरार रखा।
हाईकोर्ट के समक्ष याचिका लंबित होने के दौरान, केंद्र सरकार FCU को सूचित नहीं करने पर सहमत हुई थी। हालांकि, पिछले हफ्ते संशोधन के पक्ष में फैसला करने वाले तीसरे जज ने केंद्र को FCU की अधिसूचना के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी।
हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने FCU पर रोक लगाने की मांग करते हुए तर्क दिया कि इससे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। उनका कहना है कि FCU को लगभग 10 महीने तक स्थगित रखा गया। इस दौरान मामला हाईकोर्ट में लंबित था और तर्क दिया कि यूनियन ने यह प्रदर्शित नहीं किया कि FCU की अनुपस्थिति के कारण कोई पूर्वाग्रह हुआ। उनका यह भी कहना है कि फर्जी सोशल मीडिया पोस्ट के बारे में अलर्ट देने के लिए केंद्र सरकार के पास पहले से ही प्रभावी सिस्टम, प्रेस सूचना ब्यूरो है।
कुणाल कामरा ने एडवोकेट आरती राघवन द्वारा तैयार की गई और एओआर प्रीता अय्यर के माध्यम से दायर अपनी याचिका में कहा,
"मध्यस्थों को उनके वैधानिक सुरक्षित आश्रय के नुकसान की धमकी देकर क्या उन्हें उस सामग्री को हटाने में विफल होना चाहिए, जिसे केंद्र सरकार का FCU नकली, गलत या भ्रामक के रूप में पहचानता है। लागू किया गया नियम मध्यस्थों को केंद्र सरकार के व्यवसाय से संबंधित ऑनलाइन सामग्री की स्व-रुचि वाली सेंसरशिप के शासन को निष्पादित करने के लिए बाध्य करता है। मध्यस्थ - लाभ कमाने वाले, वाणिज्यिक उद्यमों के रूप में - स्वाभाविक रूप से तीसरे पक्ष के लिए नागरिक या आपराधिक दायित्व से बचने का विकल्प चुनेंगे। इसे हमेशा हटा दिया जाएगा।"
कामरा ने कहा कि नियम का प्रभाव वास्तव में उपयोगकर्ताओं पर पड़ता है, क्योंकि उनके द्वारा पोस्ट की गई जानकारी को हटाने से पहले उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं दी जाती। यूजर्स के पास इसे हटाने के खिलाफ कोई प्रभावी उपाय नहीं है। इसके परिणामस्वरूप मध्यस्थ द्वारा यूजर्स के अकाउंट को संभावित रूप से निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह नियम "अपने दायरे में बेहद व्यापक है और केंद्र सरकार के खिलाफ भाषण को दबाने के लिए काम करेगा।"
FCU पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए कामरा ने तर्क दिया कि सुविधा का संतुलन याचिकाकर्ताओं के पक्ष में है और संघ के खिलाफ है, क्योंकि संघ के निपटान में कम प्रतिबंधात्मक उपाय मौजूद हैं।
याचिकाकर्ता नेआग्रह किया कि अनुच्छेद 19(1)(ए) और अनुच्छेद 19(1)(जी) सहित मौलिक अधिकारों पर FCU के संविधान के संभावित प्रभाव को देखते हुए ऐसे उपाय की शुरूआत (अंतरिम राहत को अस्वीकार करके) से बचा जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई करेगी।