सुप्रीम कोर्ट रिटायरमेंट के बाद लोकपाल के रूप में प्राप्त वेतन से पेंशन की कटौती के खिलाफ रिटायर्ड हाईकोर्ट जज की याचिका पर विचार करेगा

Shahadat

27 April 2024 3:35 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट रिटायरमेंट के बाद लोकपाल के रूप में प्राप्त वेतन से पेंशन की कटौती के खिलाफ रिटायर्ड हाईकोर्ट जज की याचिका पर विचार करेगा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 अप्रैल) को पूर्व हाईकोर्ट जज की रिटायरमेंट के बाद के वेतन से पेंशन की कटौती के मुद्दे से संबंधित मामले में नोटिस जारी किया। न्यायालय केरल हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस केके डेनेसन की याचिका पर विचार कर रहा था, जिन्होंने 2017 से 2020 तक केरल पंचायत राज अधिनियम के तहत लोकपाल के रूप में कार्य किया था।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इस मुद्दे पर विचार करने के लिए सहमत हुई और कहा:

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि केरल पंचायत राज अधिनियम की धारा 271जी और लोकपाल के नियम 4 के अनुसार, हाईकोर्ट पूर्व जज हाईकोर्ट जज के वेतन और भत्ते के हकदार हैं। इस आशय का कोई प्रावधान नहीं है कि लोकपाल पेंशन को घटाकर शेष वेतन पाने का हकदार होगा।

    महालेखाकार कार्यालय, केरल और केरल राज्य को नोटिस जारी किया गया था।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट वी गिरी ने बताया कि लोकपाल नियमों के तहत वेतन और सेवा शर्तों के तहत वह हाईकोर्ट जज के बराबर वेतन के हकदार होंगे और ऐसे आहरित वेतन से पेंशन में कटौती के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि 3 साल में वेतन का नुकसान लगभग 16 लाख रुपये है।

    सीजेआई ने यह भी टिप्पणी की कि यही प्रथा सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) और राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) में भी की जाती है, जहां पेंशन वेतन से काट ली जाती है, लेकिन यह उन्हें नियंत्रित करने वाले मौजूदा नियमों के आधार पर होती है।

    जस्टिस केके डेनेसन को 25 अप्रैल, 2007 को उनके रिटायर्डमेंट के बाद दिसंबर 2017 में स्थानीय स्व-सरकारी संस्थानों के लिए लोकपाल के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने अपनी पेंशन राशि की कटौती को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की थी, जो लोकपाल के रूप में उनकी वर्तमान स्थिति के लिए वेतन उन्हें रिटायर्ड जज के रूप में मिलती है। इसलिए वह अपने वेतन से 1,34,000/- रुपये (पेंशन राशि) की कटौती से व्यथित है। लोकपाल के रूप में 2,25,000/-माह वेतन लिया जा रहा है। जबकि एकल जज ने याचिका स्वीकार कर ली, लेकिन फैसले को डिवीजन बेंच ने रद्द कर दिया।

    हाईकोर्ट के समक्ष याचिका

    जस्टिस अनु शिवरामन की एकल-जज पीठ के समक्ष याचिका की अनुमति दी गई। याचिकाकर्ता ने यह तर्क देने के लिए केरल पंचायत राज अधिनियम की धारा 271जी और स्थानीय स्वशासन संस्थानों के लिए लोकपाल (शिकायतों की जांच और सेवा शर्तों) नियम, 1999 के नियम 4 पर भरोसा किया कि वह हाईकोर्ट के जज के स्वीकार्य वेतन और भत्ते के हकदार है।

    न्यायालय ने माना कि न तो क़ानून और न ही नियम याचिकाकर्ता को देय राशि से हाईकोर्ट जज की क्षमता में ली गई पेंशन की कटौती की अनुमति देते हैं। कोर्ट ने कहा कि जब कोर्ट ने पहले इस मामले में वेतन निर्धारण के लिए महालेखाकार के समक्ष दायर अभ्यावेदन पर विचार करने का निर्देश दिया, तब भी ऐसा नहीं किया गया।

    अदालत ने सीनियर लेखा अधिकारी के आदेश के साथ-साथ उस पत्र को भी रद्द कर दिया, जिस पर सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव के विशेष सचिव द्वारा हस्ताक्षर किए गए, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता पेंशन की राशि कम करके वेतन पाने का हकदार होगा। उन्हें केरल हाईकोर्ट और उपलोकायुक्त में न्यायाधीश के रूप में उनकी सेवा के लिए अवार्ड मिला था।

    इस प्रकार न्यायालय ने सरकार को याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जज के वेतन और भत्ते का लाभ देने के लिए उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया। इसने आगे निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को बकाया राशि भी बिना किसी देरी के 3 महीने की अवधि के भीतर वितरित की जानी चाहिए।

    हालांकि, राज्य सरकार द्वारा दायर रिट अपील में जस्टिस अमित रावल और सीएस सुधा की खंडपीठ ने पहले के निर्देशों को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: जस्टिस के.के. डेनेसन बनाम सीनियर लेखा अधिकारी एसएलपी (सी) संख्या 008948 - / 2024

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