केवल बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना ही POCSO/IT अधिनियमों के अंतर्गत अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट केरल हाईकोर्ट के आदेश पर विचार करेगा
Shahadat
13 Aug 2024 10:05 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि किसी के मोबाइल फोन पर बाल पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना ही POCSO Act, 2012 या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की।
याचिकाकर्ता ने केरल हाईकोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि यौन रूप से स्पष्ट कृत्य या आचरण में लिप्त बच्चों की स्वचालित या आकस्मिक डाउनलोडिंग सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67बी (बी) या यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 15(2) के अंतर्गत अपराध नहीं है, जब साक्ष्यों से पता चलता है कि इसे प्रसारित या वितरित करने का कोई विशेष इरादा नहीं था।
याचिका पर नोटिस जारी करते हुए सीजेआई ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ चुनौती का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि बाल पोर्नोग्राफ़िक वीडियो देखना अपने आप में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत अपराध नहीं होगा। हाईकोर्ट ने उक्त मामले में आरोपी को बरी कर दिया था।
सीजेआई ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा,
"हमने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश की चुनौती में फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है, बस उसका इंतज़ार करें।"
याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट एचएस फुल्का ने पीठ को बताया कि केरल पुलिस ने पाया है कि 8-10 और 15-16 वर्ष की आयु के कई स्थानीय बच्चे आपत्तिजनक यौन वीडियो में शामिल थे।
मामले के तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ता पर POCSO Act की धारा 15(2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 बी (बी) के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया। विशिष्ट आरोप यह था कि याचिकाकर्ता ने बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री संग्रहीत की और उसे अपने पास रखा, जिसे टेलीग्राम ऐप से उसके फ़ोन पर डाउनलोड किया गया।
धारा 15(2) में कहा गया:
(2) कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी रूप में किसी बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री को संग्रहीत या अपने पास रखता है, जिसका उद्देश्य किसी भी समय किसी भी तरीके से प्रसारित या प्रचारित या प्रदर्शित या वितरित करना हो, सिवाय रिपोर्टिंग के उद्देश्य के, जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है, या न्यायालय में साक्ष्य के रूप में उपयोग करने के लिए उसे तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
याद रहे कि इससे पहले न्यायालय ने मद्रास हाईकोर्ट के इसी तरह के फैसले की आलोचना की थी, जिसमें कहा गया कि बाल पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना अपराध नहीं है।
इस मामले में नोटिस जारी करते समय चीफ जस्टिस ने मद्रास हाईकोर्ट के तर्क के बारे में मौखिक रूप से टिप्पणी की थी, "यह अत्याचारी है।" इस मामले में याचिका भी वर्तमान याचिकाकर्ता एनजीओ द्वारा दायर की गई।
केस टाइटल: जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस और अन्य बनाम सेबिन थॉमस और अन्य डायरी नंबर 34443-2024