सुप्रीम कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया के आर्टिकल को लेकर बेनेट कोलमैन के संपादकीय निदेशक के खिलाफ मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगाई

Shahadat

13 Aug 2024 4:14 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया के आर्टिकल को लेकर बेनेट कोलमैन के संपादकीय निदेशक के खिलाफ मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार प्रकाशित करने वाली बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड के संपादकीय निदेशक जयदीप बोस के खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगाई।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मामले में नोटिस जारी किया और कोर्ट के किसी भी अगले आदेश तक कार्यवाही पर रोक लगाने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने आदेश दिया,

    "अगले आदेश तक आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी।"

    बोस ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 और 500 के तहत उनके खिलाफ मानहानि के आरोपों को खारिज करने से इनकार किया गया था। हालांकि कंपनी के खिलाफ कार्यवाही खारिज कर दी गई।

    कंपनी, बोस और अन्य ने वर्ष 2014 में उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शिकायतकर्ता द्वारा आयोजित की जा रही कलाकृतियों की नीलामी के बारे में समाचार पत्र में कथित रूप से अपमानजनक आर्टिकल प्रकाशित होने के बाद मेसर्स बिड एंड हैमर ऑक्शनर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कार्यवाही शुरू की गई। आर्टिकल में कथित रूप से सुझाव दिया गया कि प्रसिद्ध कलाकारों की नकली कलाकृतियां नीलामी के लिए रखी जा रही थीं।

    याचिकाकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि आरोपों में याचिकाकर्ता द्वारा किसी भी स्पष्ट चूक या अपराध के कमीशन का विवरण नहीं है। बल्कि याचिकाकर्ता के खिलाफ केवल सामान्य सर्वव्यापी बयान था कि- वह प्रकाशनों की देखरेख करता है। बसंत ने कहा कि याचिकाकर्ता बेनेट कोलमैन के संपादकीय निदेशक के रूप में जिसके कई प्रकाशन थे और बोस उन सभी की सामान्य देखरेख करते थे।

    इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने भी गलत तरीके से मान लिया कि याचिकाकर्ता अन्य सभी समाचार पत्रों और प्रकाशनों का संपादक है। इस प्रकार उनकी सामग्री के लिए जिम्मेदार है। याचिकाकर्ता के खिलाफ मानहानि की शिकायत इसलिए सुनवाई योग्य नहीं थी, क्योंकि प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 की धारा 7 के तहत अलग-अलग व्यक्तियों को नामित किया गया।

    उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के समक्ष बोस ने तर्क दिया कि वे केवल संपादकीय निदेशक हैं। प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 के तहत निदेशक वह व्यक्ति होता है जो किसी लेख के प्रकाशन के लिए जिम्मेदार होता है। संपादकीय निदेशक, जो केवल समाचार पत्र के नीतिगत निर्णयों का प्रभारी होता है, उसके खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा सकती।

    कर्नाटक हाईकोर्ट के निष्कर्ष

    हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्रकाशित लेख क्षेत्र के विशेषज्ञों का कथन है। इसलिए यह मानहानि नहीं माना जाएगा। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि समाचार पत्र को समाचार योग्य लेख की रिपोर्ट करने का अधिकार है, खासकर तब जब यह क्षेत्र के विशेषज्ञों की राय हो।

    जस्टिस एन एस संजय गौड़ा की एकल पीठ ने लेख का अवलोकन किया और कहा,

    "आर्टिकल के पहले और दूसरे पैराग्राफ को पढ़ने से स्पष्ट धारणा बनती है कि आर्टिकल के लेखक द्वारा पहले ही यह निष्कर्ष दर्ज किया जा चुका है कि मूल पेंटिंग सुरक्षित हैं, जबकि डुप्लिकेट/नकली पेंटिंग को नीलाम करने की कोशिश की गई।"

    इसके अलावा, इसने कहा कि किसी विशेषज्ञ के दृष्टिकोण की रिपोर्टिंग मात्र उस लेख से अलग होगी, जो शुरू में एक स्पष्ट निष्कर्ष देता है। उसके बाद क्षेत्र के विशेषज्ञों का समर्थन मांगता है।

    इसने आगे कहा कि चूंकि शिकायत में कंपनी (बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड) की भागीदारी के बारे में कोई दावा नहीं किया गया, इसलिए कंपनी के खिलाफ कार्यवाही करना उचित नहीं होगा और कंपनी के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी गई।

    इसने आगे निष्कर्ष निकाला,

    "शिकायत को पढ़ने से यह संकेत मिलता है कि विशिष्ट दावा किया गया कि दूसरे आरोपी ने समाचार पत्रों की सामग्री की देखरेख की और सामग्री के लिए जिम्मेदार था। दूसरे याचिकाकर्ता के खिलाफ इस विशिष्ट आरोप के मद्देनजर, दूसरे याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है।"

    केस टाइटल: जयदीप बोस बनाम मेसर्स बिड एंड हैमर ऑक्शनर्स प्राइवेट लिमिटेड एसएलपी (सीआरएल) नंबर 10212/2024

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