सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिविल/वाणिज्यिक विवादों में एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस को कानूनी सलाह लेने वाले आदेश पर रोक लगाई

Shahadat

17 Aug 2024 5:34 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिविल/वाणिज्यिक विवादों में एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस को कानूनी सलाह लेने वाले आदेश पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्देश पर रोक लगाई, जिसमें कहा गया कि पुलिस को सिविल/वाणिज्यिक विवादों पर एफआईआर दर्ज करने से पहले कानूनी राय लेनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के तीन पैराग्राफ पर रोक लगा दी, जिसमें न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया था कि वह ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले सरकारी वकील से कानूनी राय ले, जो प्रथम दृष्टया सिविल लेनदेन प्रतीत होते हैं।

    जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के उस निर्देश पर भी रोक लगा दी, जिसमें कहा गया कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156(3) के अनुसार एफआईआर दर्ज करने का निर्देश तभी देना चाहिए, जब वे इस बात से संतुष्ट हों कि पक्षों के बीच कोई पूर्व सिविल विवाद लंबित नहीं है।

    जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 18 अप्रैल को एफआईआर दर्ज करने के संबंध में कुछ निर्देश पारित किए। अदालत ने निर्देश दिया कि जिन मामलों में आईपीसी की धारा 406, 408, 420, 467, 471 के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की जाती है। यह प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि मामला वाणिज्यिक या नागरिक विवाद से संबंधित है तो "ऐसे सभी मामलों में संबंधित जिलों में संबंधित जिला सरकारी वकील/उप जिला सरकारी वकील से राय ली जाएगी। रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाएगी।"

    इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत द्वारा जारी निर्देश उन मामलों के लिए लागू होंगे, जहां 1 मई, 2024 के बाद एफआईआर दर्ज की जाती है। इसने कहा कि यदि पुलिस अधिकारी ऐसी एफआईआर में कानूनी राय लेने में विफल रहे हैं तो वे अवमानना ​​कार्यवाही के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं।

    जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया:

    "आपराधिक विविध रिट याचिका नंबर 5948/2024 में पारित दिनांक 18.4.2024 के विवादित आदेश के पैराग्राफ 15 से 17 के संचालन और कार्यान्वयन पर अगली सूचीबद्धता तिथि तक रोक लगाई जाती है।"

    आक्षेपित आदेश के पैराग्राफ 15 से 17 में निम्न प्रकार कहा गया:

    "15. सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में दिए गए उपरोक्त निर्णयों के आलोक में यह न्यायालय पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को निम्नलिखित निर्देश जारी करना उचित समझता है:-

    (i) जहां धारा 406, 408, 420/467, 471 भारतीय दंड संहिता आदि के अंतर्गत एफ.आई.आर. पंजीकृत किया जाना अपेक्षित है, जिसमें प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि कोई वाणिज्यिक विवाद या सिविल विवाद है या विभिन्न प्रकार के समझौतों या साझेदारी विलेखों आदि से उत्पन्न विवाद है तो एफआईआर रजिस्टर्ड करने से पूर्व ऐसे सभी मामलों में संबंधित जिलों में संबंधित जिला सरकारी वकील/उप जिला सरकारी वकील से राय ली जाएगी और रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही एफआईआर रजिस्टर्ड की जाएगी। ऐसी राय एफआईआर के अंतिम भाग में पुनः प्रस्तुत की जाएगी।

    (ii) डीजीपी, यू.पी. उत्तर प्रदेश राज्य के सभी एसएसपी को आवश्यक निर्देश जारी करेंगे, जो अपने-अपने थानों के सभी स्टेशन हाउस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश देंगे कि जहां सिविल/वाणिज्यिक विवाद स्पष्ट है, वहां एफआईआर दर्ज करने से पहले पूर्व-संज्ञान चरण में जिला/उप सरकारी वकील की राय ली जानी चाहिए।

    (iii) निदेशक अभियोजन यू.पी. संबंधित सभी सरकारी वकीलों को आवश्यक निर्देश भी सुनिश्चित करेंगे।

    (iv) यह स्पष्ट किया जाता है कि सभी मामलों में जहां प्रथम सूचना रिपोर्ट, जो 01.05.2024 के बाद रजिस्टर्ड की जानी है, यदि संबंधित पुलिस अधिकारी द्वारा एफआईआर दर्ज करने से पहले ऐसी कोई कानूनी राय नहीं ली जाती है तो उपरोक्त (i) और (ii) के अनुसार वे अवमानना ​​कार्यवाही के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं।

    (v) यह निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होगा, जहां एफआईआर धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत सक्षम न्यायालय के निर्देश पर रजिस्टर्ड की जाती है। चूंकि ये निर्देश संज्ञान-पूर्व चरण से संबंधित हैं।

    16. इस न्यायालय को यह भी अनुभव हो रहा है कि धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए ट्रायल कोर्ट वस्तुतः डाकघर की तरह काम कर रहे हैं, शिकायत को संबंधित पुलिस अधिकारी को भेजकर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दे रहे हैं। अनुच्छेद 120.1 के अनुसार ललिता कुमारी के मामले में यह आदेश नहीं है।

    17. इसलिए उत्तर प्रदेश राज्य के सभी मजिस्ट्रेटों को भी निर्देश जारी किए जाते हैं, जो धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं कि वे केवल संतोषजनक टिप्पणी के बाद ही एफआईआर दर्ज करने का आदेश पारित करें, "संपूर्ण शिकायत की विषय-वस्तु का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद और सूचक/शिकायतकर्ता के हलफनामे के अनुसार किसी भी न्यायालय में पक्षों के बीच कोई पूर्व सिविल विवाद लंबित नहीं है, इसलिए न्यायालय को विश्वास है कि संज्ञेय अपराध का गठन किया गया।"

    केस टाइटल: उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम सोने लाल एवं अन्य, एसएलपी (सीआरएल) डायरी नंबर 24766/2024

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