'ऐसी घटनाएं रोकने के सुझाव दें': सुप्रीम कोर्ट ने सीजेआई पर जूता फेंकने के मामले में सुनवाई टाली
Praveen Mishra
12 Nov 2025 5:10 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) द्वारा दायर उस अवमानना याचिका की सुनवाई स्थगित कर दी, जो अधिवक्ता राकेश किशोर के खिलाफ दायर की गई थी। किशोर ने 6 अक्टूबर को विष्णु मूर्ति मामले में दिए गए सीजेआई बी.आर. गवई के बयान पर आपत्ति जताते हुए उन पर जूता फेंकने का प्रयास किया था।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने पहले ही यह संकेत दिया था कि वे इस मामले में आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के इच्छुक नहीं हैं और इसके बजाय भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करेंगी।
आज की सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत ने वकीलों से सुझाव देने को कहा—
“सोचिए कि ऐसे घटनाक्रमों को कोर्ट परिसर, बार रूम आदि में कैसे रोका जा सकता है। आप सभी अपने सुझाव दीजिए। जो भी मुद्दे सुलझाने की आवश्यकता है, हम अगली तारीख पर उन पर चर्चा करेंगे और अटॉर्नी जनरल से भी विचार-विमर्श करेंगे,” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा।
मामले की पृष्ठभूमि
27 अक्टूबर को जस्टिस सूर्यकांत ने यह स्वीकार किया था कि राकेश किशोर का आचरण “गंभीर और घोर आपराधिक अवमानना” के समान है। हालांकि, पीठ ने यह सवाल भी उठाया कि जब स्वयं सीजेआई ने किशोर को माफ कर दिया है, तब क्या अदालत उस पर अवमानना की कार्यवाही आरंभ कर सकती है?
एससीबीए ने दलील दी कि सीजेआई का क्षमादान व्यक्तिगत स्तर पर था, संस्थागत नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि किशोर ने बाद में मीडिया में दिए साक्षात्कारों में अपने कृत्य पर गर्व जताया। एससीबीए ने इसे न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ बताया और कहा कि सीजेआई का क्षमादान पूरे संस्थान पर बाध्यकारी नहीं हो सकता।
हालांकि, खंडपीठ इस तर्क से पूरी तरह आश्वस्त नहीं दिखी। उसने कहा कि वह “जॉन डो” आदेश (John Doe order) के पहलू पर विचार करेगी और भविष्य के लिए दिशा-निर्देश तय करने की संभावना देखेगी।
दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
इसी बीच, दिल्ली हाईकोर्ट ने आज कहा कि सीजेआई गवई पर जूता फेंकने जैसी घटनाओं को “सिर्फ निंदा तक सीमित नहीं रखा जा सकता बल्कि ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।” चीफ़ जस्टिस डी.के. उपाध्याय एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें इस घटना के वीडियो को इंटरनेट से हटाने की मांग की गई थी। उन्होंने कहा कि यह घटना न केवल बार के सदस्यों बल्कि सभी को आहत करती है।
घटना का सारांश
6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान अधिवक्ता राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर एक वस्तु फेंकने का प्रयास किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वह “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान” के नारे लगाते हुए कोर्ट में सुरक्षा कर्मियों द्वारा बाहर ले जाया गया।
इस घटना ने पूरे कानूनी समुदाय को झकझोर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, पिनाराई विजयन, सिद्धारमैया, रेवंत रेड्डी और ममता बनर्जी सहित कई राजनीतिक नेताओं ने इस कृत्य की निंदा की और सीजेआई के प्रति एकजुटता व्यक्त की।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने किशोर के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही की मांग करते हुए याचिका दायर की।
16 अक्टूबर को सीनियर एडवोकेट और एससीबीए अध्यक्ष विकाश सिंह ने यह मामला जस्टिस सूर्यकांत की पीठ के समक्ष रखा और बताया कि अटॉर्नी जनरल ने इस कार्यवाही की अनुमति दे दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस याचिका का समर्थन किया।
हालांकि, पीठ ने इस पर विचार करते हुए कहा कि शायद यह उचित होगा कि मामले को “अपने आप शांत हो जाने दिया जाए”, क्योंकि सीजेआई स्वयं कार्रवाई नहीं चाहते। पीठ ने यह भी सवाल उठाया कि जब अदालत के पास इतने गंभीर और लंबित मुकदमे हैं, तब क्या उसे इस प्रकरण पर समय देना चाहिए?
एससीबीए ने इस पर जोर दिया कि यह मुद्दा अदालत की गरिमा से जुड़ा है, और यह भी बताया कि सोशल मीडिया पर इस घटना को महिमामंडित किया जा रहा है। उन्होंने ऐसे पोस्टों पर रोक लगाने के लिए “जॉन डो” आदेश की मांग की।
अब सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए अधिवक्ताओं से सुझाव मांगे हैं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।

