राष्ट्रीय राजमार्ग भूमि अधिग्रहण के लिए क्षतिपूर्ति और ब्याज की अनुमति देने वाले 2019 के फैसले को लागू करने की मांग की करने वाली NHAI की याचिका खारिज
Avanish Pathak
5 Feb 2025 11:07 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (4 जनवरी) को एनएचएआई की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें यह स्पष्टीकरण मांगा गया था कि भूमि मालिकों को क्षतिपूर्ति और ब्याज देने के मामले में यूनियन ऑफ इंडिया बनाम तरसेम सिंह मामले में न्यायालय का 2019 का फैसला भावी रूप से लागू होगा।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने निर्णय में कहा,
"इस तरह का स्पष्टीकरण देने से तरसेम सिंह के तहत प्रदान की जाने वाली राहत समाप्त हो जाएगी... तरसेम सिंह का अंतिम परिणाम पीड़ित भूमि स्वामियों को क्षतिपूर्ति और ब्याज देने से संबंधित है, जिनकी भूमि 1997 और 2015 के बीच एनएचएआई द्वारा अधिग्रहित की गई थी... यह किसी भी तरह से उन मामलों को फिर से खोलने का निर्देश नहीं देता है जो पहले ही अंतिम रूप ले चुके हैं। इसके विपरीत, तरसेम सिंह को संशोधित या स्पष्ट करना निर्णय की अंतिमता को कमजोर करने के सिद्धांत का उल्लंघन होगा... आवेदक अप्रत्यक्ष रूप से जो हासिल करना चाहता है, वह जिम्मेदारी से बचना और एक सुलझे हुए मुद्दे के समाधान में और देरी करना है, जहां दिए गए निर्देश स्पष्ट हैं... जो सीधे नहीं किया जा सकता, वह अप्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता।"
उल्लेखनीय है कि तरसेम सिंह मामले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 की धारा 3J को असंवैधानिक घोषित किया, जिसमें एनएच अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहणों के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के अनुसार क्षतिपूर्ति और ब्याज को शामिल नहीं किया गया था। यह कहा गया कि धारा 23(1ए) और (2) में निहित क्षतिपूर्ति और ब्याज से संबंधित भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधान और धारा 28 प्रावधान के अनुसार देय ब्याज राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहणों पर लागू होंगे।
इस निर्णय के बाद, NHAI ने न्यायालय से स्पष्टीकरण मांगा कि क्या 2019 का निर्णय भावी रूप से लागू होगा, जिससे उन निर्णयों को फिर से खोलने पर रोक लग जाएगी, जहां भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही पहले ही पूरी हो चुकी है और मुआवजे का निर्धारण अंतिम रूप ले चुका है।
जहां तक NHAI ने प्रस्ताव दिया कि निर्णय भावी रूप से लागू होना चाहिए, जस्टिस कांत और भुयान की पीठ ने कहा कि ऐसा कोई भी स्पष्टीकरण प्रभावी रूप से उस राहत को निष्प्रभावी कर देगा, जिसे तरसेम सिंह के निर्णय में प्रदान करने का इरादा था।
कोर्ट ने कहा,
"तरसेम सिंह के पीछे व्यापक उद्देश्य राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 3(जे) से पैदा हुए उलझनों सुलझाना और परेशानियों को शांत करना था, जिसके कारण समान स्थिति वाले व्यक्तियों के साथ असमान व्यवहार होता था। धारा 3(जे) का प्रभाव अल्पकालिक था, क्योंकि 2013 अधिनियम एक जनवरी 2015 से राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम पर लागू था। परिणामस्वरूप, भूमि मालिकों के दो वर्ग बिना किसी स्पष्ट अंतर के उभरे - वे जिनकी भूमि 1997-2015 के बीच एनएचएआई द्वारा अधिग्रहित की गई थी और वे जिनकी भूमि अन्यथा अधिग्रहित की गई थी... न्यायसंगतत और समानता दोनों की मांग है कि इस तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना अन्यायपूर्ण होगा।"
पीठ ने आगे कहा कि जब किसी प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया जाता है, और निरंतर असमानता अनुच्छेद 14 के मूल पर प्रहार करती है, तो इसे सुधारा जाना चाहिए, खासकर जब ऐसी असमानता किसी चयनित समूह को प्रभावित करती है।
इस तर्क को खारिज करते हुए कि तरसेम सिंह के फैसले से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा, पीठ ने कहा, "यह केवल क्षतिपूर्ति और ब्याज के अनुदान की अनुमति देता है, जो अधिग्रहण कानून के तहत प्रतिपूरक लाभ के रूप में अंतर्निहित हैं"। लगभग 100 करोड़ रुपये के वित्तीय बोझ के बारे में एनएचएआई द्वारा उठाए गए एक अन्य तर्क ने अदालत को राजी नहीं किया।
कोर्ट ने कहा,
"यदि हजारों अन्य भूस्वामियों के मामले में यह बोझ एनएचएआई ने वहन किया है तो इसका कोई कारण नहीं है कि भेदभाव को समाप्त करने के लिए इस मामले में एनएचएआई द्वारा भी इसे साझा किया जाना चाहिए...अनुच्छेद 300ए के संवैधानिक अधिदेश के आलोक में भूमि अधिग्रहण का वित्तीय बोझ उचित नहीं ठहराया जा सकता...चूंकि अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत किया जा रहा है, इसलिए वित्तीय बोझ अंततः संबंधित परियोजना प्रस्तावक पर ही पड़ेगा...यहां तक कि परियोजना प्रस्तावक को भी अपनी जेब से मुआवज़ा लागत वहन नहीं करनी पड़ेगी। इस लागत का वास्तविक खामियाजा यात्रियों को ही भुगतना पड़ेगा। यह बोझ समाज के मध्यम या उच्च मध्यम वर्ग के तबके पर डाला जाएगा, खासकर उन पर जो निजी वाहन खरीद सकते हैं और व्यावसायिक उद्यम चला सकते हैं।"
अपीलों का निपटारा करते हुए न्यायालय ने सक्षम प्राधिकारी को तरसेम सिंह के निर्देशों के अनुसार क्षतिपूर्ति और ब्याज की राशि की गणना करने का निर्देश दिया।
केस टाइटलः यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम तरसेम सिंह एवं अन्य, एम.ए. 1773/2021 सीए नंबर 7064/2019