वित्तीय सहायता के लिए घोषणापत्र में राजनीतिक दल के वादे उम्मीदवार द्वारा 'भ्रष्ट आचरण' के समान होंगे: सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया

Shahadat

27 May 2024 8:22 AM GMT

  • वित्तीय सहायता के लिए घोषणापत्र में राजनीतिक दल के वादे उम्मीदवार द्वारा भ्रष्ट आचरण के समान होंगे: सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज किया

    सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव याचिका खारिज करने से उत्पन्न अपील पर सुनवाई करते हुए इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार किया कि राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में की गई प्रतिबद्धताएं, जो अंततः बड़े पैमाने पर जनता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, यह उस पार्टी के उम्मीदवार द्वारा भ्रष्ट आचरण के समान भी है। न्यायालय ने इस तर्क को "बहुत दूर की कौड़ी" बताया।

    कोर्ट ने कहा,

    "वकील का यह तर्क कि राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में की गई प्रतिबद्धताएं, जो अंततः बड़े पैमाने पर जनता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, उस पार्टी के उम्मीदवार द्वारा भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आएंगी, बहुत दूर की बात है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। किसी भी मामले में इन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में हमें इस तरह के प्रश्न पर विस्तार से विचार करने की आवश्यकता नहीं है।''

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा कि वर्तमान मामले में प्रश्न से विस्तृत रूप से निपटने की आवश्यकता नहीं है और कानून के उपरोक्त प्रश्न को उचित मामले में निर्णय लेने के लिए खुला छोड़ दिया है। गौरतलब है कि राजनीतिक दलों को चुनावी घोषणापत्रों में 'मुफ्त' का वादा करने से रोकने की मांग करने वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

    यह अपील कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई, जिसमें चामराजपेट विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता शशांक जे श्रीधर द्वारा दायर चुनाव याचिका खारिज कर दी गई थी। इसमें कर्नाटक राज्य विधानमंडल के लिए 2023 में हुए चुनावों में सफल उम्मीदवार बी जेड ज़मीर अहमद खान के चयन को चुनौती दी गई।

    मुख्य तर्क यह था कि घोषणापत्र में दी गई गारंटी भ्रष्ट आचरण है। इस कारण से यह प्रार्थना की गई कि खान का चुनाव, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) से विजयी उम्मीदवार था, उसको रद्द कर दिया जाए।

    इसके विपरीत, खान ने प्रस्तुत किया कि उनके खिलाफ कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाया गया। याचिकाकर्ता का तर्क केवल पार्टी के घोषणापत्र पर आधारित था। इसके आधार पर यह तर्क दिया गया कि कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र नीतिगत मामला है और इसे भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता।

    इससे सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने माना कि किसी पार्टी द्वारा उस नीति की घोषणा जिसे वे लाने का इरादा रखते हैं, उसको जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के प्रयोजन के लिए भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता।

    इसे मजबूत करने के लिए जस्टिस एम आई अरुण की एकल न्यायाधीश पीठ ने एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार, (2013) 9 एससीसी 659 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया।

    उक्त फैसले में कहा गया,

    “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पांच गारंटी को सामाजिक कल्याण नीतियों के रूप में माना जाना चाहिए। वे आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या नहीं, यह पूरी तरह से अलग पहलू है। यह अन्य दलों को दिखाना है कि किस प्रकार उक्त योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य के खजाने के दिवालियापन के समान है और इससे केवल राज्य में कुशासन हो सकता है। यह संभव है कि मामले के दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों के तहत उन्हें गलत नीतियां कहा जा सकता है, लेकिन भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता है।''

    इन तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पांच गारंटियों को सामाजिक कल्याण नीतियों के रूप में माना जाना होगा। वे आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या नहीं, यह पूरी तरह से अलग पहलू है। इसके अलावा, यह अन्य दलों को दिखाना है कि कैसे उक्त योजनाओं के कार्यान्वयन से केवल राज्य में कुशासन हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    यह संभव है कि मामले के दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों के तहत उन्हें गलत नीतियां कहा जा सकता है, लेकिन भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता।

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