Farmers' Protest | दिल्ली की सीमाओं से प्रदर्शनकारियों को हटाने की पूर्व BJP विधायक की याचिका खारिज की
Shahadat
13 March 2024 11:04 AM IST
अपनी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य की गारंटी की मांग को लेकर चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 मार्च) को जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार किया। उक्त याचिका में दिल्ली की सीमाओं से किसानों को तत्काल हटाने की मांग की गई थी।
सोशल एक्टिविस्ट और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने सीमावर्ती क्षेत्रों को खाली कराने के लिए इस याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार किया। इसके बजाय, उन्होंने याचिकाकर्ता को इस मामले को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में संबोधित करने का निर्देश दिया, जहां यह मुद्दा वर्तमान में विचाराधीन है।
याचिकाकर्ता द्वारा दी गई दलील
एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड मुकेश कुमार सिंह एंड कंपनी के माध्यम से भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर डॉ. गर्ग की याचिका में उन किसानों को हटाने की प्रार्थना की गई, जो दिल्ली को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों से जोड़ने वाली मुख्य सड़कों और राजमार्गों को बाधित कर रहे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि इन विरोध प्रदर्शनों ने आम जनता के लिए बड़ी कठिनाइयां पैदा की हैं, जिससे उनकी आजीविका, स्वास्थ्य आपात स्थिति, शैक्षिक गतिविधियां और अन्य आवश्यक कार्य प्रभावित हुए।
उन्होंने चिंता व्यक्त की कि इस तरह के विरोध प्रदर्शन एक बार-बार होने वाला मुद्दा बन गए, जिससे आम लोगों को बंधक बना लिया गया, जिसे उन्होंने किसानों द्वारा 'अवैध हठधर्मिता' कहा। याचिका में तर्क दिया गया कि विरोध प्रदर्शन कानून के शासन पर सीधा हमला है, जो भारतीय लोकतंत्र की नींव है।
याचिका में आगे कहा गया,
"यह प्रस्तुत किया गया कि इस प्रकार का आंदोलन या विरोध डेजा वु बन गया। सरकार को नए कानून बनाने के लिए मजबूर करके देश के आम लोगों को अवैध घुसपैठ के लिए बंधक बनाया जा रहा है, जो उनकी मांगों के अनुरूप है। आम लोगों को हो रही परेशानी पर यह प्रस्तुत किया गया कि इस प्रकार का विरोध कानून के शासन पर सीधा हमला है, जो हमारे लोकतांत्रिक देश की नींव है।...विरोध न केवल अज्ञात क्षेत्रों में आयोजित किया जाता है, बल्कि सार्वजनिक रास्ते में अतिरिक्त रुकावट भी होती है, जिससे यात्रियों को बड़ी असुविधा होती है.।"
सार्वजनिक स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के अधिकार के संबंध में कानूनी मिसालों और अदालती फैसलों का हवाला देते हुए डॉ. गर्ग ने जोर देकर कहा कि इस तरह के विरोध प्रदर्शन करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है और यह उचित प्रतिबंधों के अधीन है।
उन्होंने प्रदर्शनकारियों और आम जनता के अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता पर भी जोर दिया,
“प्रदर्शनकारी इस अदालत द्वारा समय-समय पर पारित आदेश और निर्णय सहित नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जिसमें कहा गया कि सार्वजनिक स्थानों को देश के अन्य आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों में बाधा डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। किसानों के भेष में असामाजिक तत्व भी हजारों कृषि ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के साथ दिल्ली की एनसीटी की सीमाओं पर एकत्र हुए हैं, सरकारी एजेंसियों को धमका रहे हैं, राष्ट्र-विरोधी नारे लगा रहे हैं, सामान्य स्थिति को रोकने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ रहे हैं और लात मार रहे हैं।”
न केवल प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ निषेधाज्ञा, बल्कि याचिकाकर्ता ने ऐसे विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों पर प्रतिबंध से संबंधित 'व्यापक और संपूर्ण दिशानिर्देश' की भी मांग की, जिससे सार्वजनिक स्थानों में बाधा उत्पन्न होती है।
केस टाइटल- नंद किशोर गर्ग बनाम भारत संघ एवं अन्य। | रिट याचिका (सिविल) नंबर 162/2024