सुप्रीम कोर्ट ने उधार सीमा को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ केरल के मुकदमे को संविधान पीठ के पास भेजा, अंतरिम राहत देने से इनकार किया
Shahadat
1 April 2024 1:57 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (1 अप्रैल) को केरल राज्य द्वारा भारत संघ के खिलाफ राज्य की उधार लेने की क्षमता पर लगाई गई सीमा को चुनौती देने वाले मुकदमे को 5-जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया।
साथ ही कोर्ट ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए अतिरिक्त उधारी के लिए राज्य द्वारा मांगी गई अंतरिम राहत पर आदेश पारित करने से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद राज्य को केंद्र से वित्तीय वर्ष के लिए पर्याप्त राहत मिली है। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया मामला और सुविधा का संतुलन केंद्र सरकार के पक्ष में है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि राज्य द्वारा दायर मुकदमे ने संविधान की व्याख्या से संबंधित मुद्दों को उठाया और मामले को अनुच्छेद 145 (3) के संदर्भ में 5-जजों वाली संविधान पीठ को भेज दिया।
पीठ ने कहा कि यह मुकदमा संविधान के अनुच्छेद 131 और 293 की व्याख्या से संबंधित मुद्दे उठाता है। एक अन्य मुद्दा यह है कि क्या अनुच्छेद 293 राज्यों को सरकार और अन्य स्रोतों से उधार लेने का प्रवर्तनीय अधिकार देता है और यदि हां, तो इसे संघ द्वारा किस हद तक विनियमित किया जा सकता है। क्या राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा उधार और सार्वजनिक खातों से उत्पन्न देनदारियों को संविधान के अनुच्छेद 293(3) के दायरे में शामिल किया जाना चाहिए और राजकोषीय नीति के संबंध में न्यायिक पुनर्विचार का दायरा अन्य मुद्दे हैं।
यह देखते हुए कि संविधान के अनुच्छेद 293 को अब तक किसी भी आधिकारिक घोषणा के अधीन नहीं किया गया, पीठ ने मामले को 5-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजना उचित समझा।
अंतरिम राहत पर
अंतरिम राहत के सवाल पर कोर्ट ने कहा कि उसने (i) प्रथम दृष्टया मामला, (ii) सुविधा का संतुलन और (iii) अपूरणीय चोट के ट्रिपल परीक्षण लागू किए।
न्यायालय ने कहा कि वह प्रथम दृष्टया संघ के इस तर्क को स्वीकार करने के लिए इच्छुक है कि यदि किसी वित्तीय वर्ष में किसी राज्य द्वारा उधार सीमा का अधिक उपयोग किया जाता है तो बाद के वर्षों में इसी तरह की कटौती हो सकती है।
न्यायालय ने कहा कि सुविधा का संतुलन केंद्र सरकार पर निर्भर है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद राज्य को काफी राहत दी गई।
न्यायालय ने कहा कि उसने केंद्र द्वारा लगाई गई इस शर्त को अस्वीकार कर दिया कि राज्य को 13,608 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी के लिए सहमति प्राप्त करने के लिए मुकदमा वापस लेना चाहिए। साथ ही 8 मार्च को हुई बैठक में यूनियन ने 5000 करोड़ रुपये पर सहमति की पेशकश की थी। 19 मार्च को संघ ने 8742 करोड़ रुपये और 4866 करोड़ रुपये की सहमति दी, जो कुल मिलाकर 13,608 करोड़ रुपये है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि राज्य ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए पर्याप्त राहत हासिल की है।
उल्लेखनीय है कि मौजूदा मामले में न्यायालय 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले केरल की तत्काल वित्तीय जरूरतों का समाधान खोजने की कोशिश कर रहा था।
केंद्र शुरू में 13,608 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी की अनुमति देने पर सहमत हुआ, बशर्ते कि केरल राज्य अपना मुकदमा वापस ले ले। हालांकि, इसे पीठ की आपत्तियों का सामना करना पड़ा, जजों ने यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 131 के मद्देनजर बेलआउट की शर्त के रूप में लंबित मुकदमे को वापस लेने पर जोर नहीं दे सकती है। केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए केरल राज्य ने बताया कि 13,608 करोड़ रुपये की राशि केरल की तत्काल वित्तीय आवश्यकताओं का केवल एक अंश ही पूरा कर सकती है।
ऐसे में बातचीत के जरिए विवाद को सुलझाने की कोर्ट की सिफारिश के बावजूद राज्य और केंद्र सरकार में गतिरोध बना हुआ है। इससे न्यायालय को वर्तमान आदेश के माध्यम से अंतरिम राहत के प्रश्न पर निर्णय लेने की आवश्यकता उत्पन्न हुई, जिसे 22 मार्च को आरक्षित किया गया।
केस टाइटल: केरल राज्य बनाम भारत संघ | मूल सूट नंबर 1/2024