बाल तस्करी व नाबालिगों के यौन शोषण पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
Praveen Mishra
20 Dec 2025 11:06 AM IST

भारत में बाल तस्करी और व्यावसायिक यौन शोषण को एक “गंभीर और विचलित करने वाली वास्तविकता” बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (19 दिसंबर) को नाबालिग पीड़ितों की गवाही के मूल्यांकन को लेकर महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में पीड़िता की गवाही को मामूली विरोधाभासों या रूढ़िवादी सामाजिक धारणाओं के आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जोयमाल्य बागची की खंडपीठ ने यह दिशानिर्देश बेंगलुरु के एक व्यक्ति और उसकी पत्नी को नाबालिग लड़की की तस्करी और यौन शोषण के मामले में दोषी ठहराते हुए दिए। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसलों को बरकरार रखा, जो भारतीय दंड संहिता और अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के तहत दिए गए थे।
पीड़िता की गवाही के मूल्यांकन पर दिशानिर्देश
कोर्ट ने कहा कि नाबालिग तस्करी पीड़ितों की गवाही का आकलन करते समय अदालतों को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
पीड़िता की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कमजोरियों को समझा जाए, विशेषकर जब वह हाशिए पर रहने वाले समुदाय से हो।
बाल तस्करी संगठित अपराध का हिस्सा होती है, जिसमें भर्ती, परिवहन, ठहराव और शोषण अलग-अलग लेकिन आपस में जुड़ी प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पीड़िता स्पष्ट रूप से बयान न कर पाए, यह स्वाभाविक है।
शोषण के अनुभव को अदालत के सामने दोहराना स्वयं में पीड़िता के लिए पीड़ादायक होता है, विशेषकर जब वह नाबालिग हो और सामाजिक बदनामी, धमकी या असुरक्षा का डर हो।
यदि संवेदनशील और यथार्थपरक दृष्टिकोण से देखने पर पीड़िता की गवाही विश्वसनीय प्रतीत होती है, तो केवल उसी के आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है। नाबालिग यौन तस्करी पीड़िता को सह-अपराधी नहीं माना जा सकता, बल्कि उसकी स्थिति घायल गवाह के समान होती है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला नवंबर 2010 का है, जब एक एनजीओ की सूचना पर पुलिस ने बेंगलुरु के पीण्या इलाके में एक मकान पर छापा मारा। वहां से एक नाबालिग लड़की को बचाया गया, जिसे वेश्यावृत्ति के लिए रखा गया था। पुलिस ने मौके से नकद राशि और अन्य आपत्तिजनक सामग्री भी बरामद की।
पीड़िता ने बयान दिया कि उसे जबरन वहां लाया गया, बंदी बनाकर रखा गया और व्यावसायिक यौन शोषण किया गया। उसकी गवाही को एनजीओ कर्मियों, डिकॉय गवाह, स्वतंत्र गवाह और बरामद सबूतों से पुष्टि मिली। ट्रायल कोर्ट ने 2013 में आरोपियों को दोषी ठहराया और हाईकोर्ट ने 2025 में उनकी अपील खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में पीड़िता की गवाही में कथित विरोधाभासों और प्रक्रिया संबंधी खामियों का हवाला देकर सजा को चुनौती दी। कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि ये विरोधाभास मामूली हैं और मुकदमे को प्रभावित नहीं करते।
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि नाबालिग की उम्र निर्धारण के लिए प्राथमिक रूप से स्कूल रिकॉर्ड पर भरोसा किया जाना चाहिए और चिकित्सीय जांच केवल वैकल्पिक उपाय है।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाबालिग पीड़िता की गवाही विश्वसनीय और पर्याप्त रूप से पुष्ट है। अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि न्यायालयों की विशेष जिम्मेदारी है कि वे बाल यौन शोषण के पीड़ितों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करें।

