सुप्रीम कोर्ट : टेंडर नोटिस में मांगे ही नहीं गए दस्तावेज़ की गैर-प्रस्तुति पर बोली खारिज नहीं की जा सकती

Amir Ahmad

10 Sept 2025 4:18 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट : टेंडर नोटिस में मांगे ही नहीं गए दस्तावेज़ की गैर-प्रस्तुति पर बोली खारिज नहीं की जा सकती

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (9 सितंबर) को कहा कि नोटिस इन्वाइटिंग टेंडर (NIT) के तहत मांगे ही नहीं गए किसी दस्तावेज़ की गैर-प्रस्तुति के आधार पर किसी बोली को खारिज करना न्यायसंगत नहीं है।

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि टेंडर प्राधिकरण उन शर्तों को लागू नहीं कर सकते, जो टेंडर दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से लिखी ही नहीं गई हों।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बोलीदाता की अयोग्यता केवल इसलिए बरकरार रखी गई थी कि उसने जॉइंट वेंचर एग्रीमेंट प्रस्तुत नहीं किया, जबकि NIT में उसकी अनिवार्यता का कोई उल्लेख नहीं था।

    खंडपीठ ने कहा,

    "हम मानते हैं कि प्रथम प्रतिवादी ने NIT की शर्तों के विपरीत जाकर अपीलकर्ता की बोली केवल इसलिए अस्वीकार कर दी कि उसने JV एग्रीमेंट प्रस्तुत नहीं किया, जबकि क्लॉज़ 5(D) में इसकी अनिवार्यता नहीं थी।"

    मामला

    मध्यप्रदेश पावर जेनरेटिंग कंपनी लिमिटेड ने कोयला बेनिफिकेशन और लॉजिस्टिक्स के लिए टेंडर जारी किया था। अपीलकर्ता महा मिनरल ने हिंद महा मिनरल LLP में 45% हिस्सेदारी के अनुभव के आधार पर अपनी बोली प्रस्तुत की। इसके समर्थन में उसने महाराष्ट्र स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन (MSMC) द्वारा जारी वर्क एक्ज़िक्यूशन सर्टिफिकेट भी जमा किया, जिसमें उसकी 45% हिस्सेदारी का उल्लेख था और JV एग्रीमेंट का संदर्भ भी था।

    इसके बावजूद टेंडर समिति ने तकनीकी बोली यह कहते हुए खारिज कर दी कि JV एग्रीमेंट का प्रस्तुत करना अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने भी इस अयोग्यता को बरकरार रखा।

    सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि जब NIT में JV एग्रीमेंट प्रस्तुत करने की शर्त ही नहीं थी तो केवल वर्क एक्ज़िक्यूशन सर्टिफिकेट देने पर बोली को खारिज नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने अपील को आंशिक रूप से मंज़ूर करते हुए मामला हाईकोर्ट को वापस भेज दिया ताकि वह क्लॉज़ 5(B) से संबंधित वॉशरी क्षमता के मुद्दे पर दो माह के भीतर निर्णय ले।

    अदालत ने कहा कि यह आपत्ति लिखित बहस में पहली बार उठाई गई, जिससे अपीलकर्ता को प्रतिवाद का अवसर नहीं मिला और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत था।

    टाइटल: Maha Mineral Mining & Benefication Pvt. Ltd. versus Madhya Pradesh Power Generating Co. Ltd. anr

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